बॉलीवुड एक्ट्रेस रकुल प्रीत सिंह की हालिया रिलीज फिल्म ‘डॉक्टर जी’ और ‘थैंक ‘गॉड’ रही, जबकि अपकमिंग फिल्मों में ‘छतरीवाली’ सहित दो और फिल्में आने वाली हैं। हाल ही में रकुल ने बातचीत के दौरान अपनी पर्सनल-प्रोफेशनल लाइफ के बारे में बात की। साथ ही उन्होंने बताया कि वो जल्द ही ‘इंडियन 2’ और ‘लेडीज नाइट’ में भी दिखाई देने वाली हैं, लेकिन ये फिल्में कब रिलीज होंगी खुशी और एक्साइटमेंट तो होती ही है। इसके अलावा नर्वसनेस भी होती है कि लोगों को फिल्म पसंद आएगी, आपका काम पसंद आएगा या नहीं आएगा। आपकी कितनी भी फिल्में रिलीज हो जाएं, पर हर फ्राइडे को वो एक नर्वसनेस तो जरूर होती है। लेकिन रिलीज के बाद मैं न हो जाती हूं। अगर अच्छा हो, तो उससे बहुत खुश मत हो और बुरा हो तो उससे बहुत ज्यादा दुखी भी मत हो। मैं जनरली कोशिश करती हूं कि एक ही खुशी के लेवल पर रहूं ताकि मैं खुश ही रहूं। मैं खुद को लकी मानती हूं कि मैं कम से काम काम तो कर रही हूं। अभी फिल्म न चले, पर मैंने 100% किया न! फिल्म का चलना या न चलना, मेरे हाथ में नहीं है, वो तो आडियंस के हाथ में है। एक्टर के हाथ में सिर्फ अपना काम होता है। मैं वही करती हूं। अब आॅडियंस भरोसे और भगवान भरोसे है। कभी रोल बहुत एक्साइटेड करता है। हो सकता है कि रोल इतना बड़ा न हो, पर फिल्म की स्टोरी अच्छी लगती है, तब लगता है कि हमें इस फिल्म का हिस्सा बनना है। कई बार होता है कि डायरेक्टर या प्रोडयूसर के साथ काम करना है। कभी कोई एक्टर होता है, जिसके साथ काम करना चाहती हूं। कभी कोई कॉन्सेप्ट होता है, जैसे ‘थैंक गॉड’ है। जब मैंने इसका नरेशन सुना, तब लगा कि इस सोच के साथ मुझे अटैच होना चाहिए। आज के टाइम में हम लोग अपनी जिंदगी में इतना बिजी हो गए हैं कि हम अच्छे इंसान बनना भूल ही गए हैं। अच्छा इंसान क्या होता है, उसकी डेफिनेशन भूल गए हैं। मैंने जब स्क्रिप्ट पढ़ी, तब लगा कि हम सब सही हैं। लेकिन क्या हमें कभी गुस्सा नहीं आता? आता है। क्या हमें कभी जेलसी फील नहीं होगी, शायद होती है। क्या हमें कभी भ्रम नहीं होगा, शायद होता है। यही तो भगवान ने बोला है। भगवान की रियल टीचिंग वही है और हम कहीं न कहीं इसे भूल गए हैं। मुझे उस टाइम जो भी गट फीलिंग आती है, तो मैं उसके साथ जाती हूं। देखिए, ये हम सब जज करने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या चलेगा और क्या नहीं चलेगा। मैं कहना चाहूंगी कि ऐसा नहीं है कि हिंदी फिल्में नहीं चल रही हैं। मैं गलत भी हो सकती हूं, पर मुझे ये लगता है कि दो साल महामारी का था। हम लकी थे कि हमारे पास घर था, खाने के लिए खाना था। सोचना नहीं पड़ा कि अगले 6 महीने कैसे चलेंगे। लेकिन लोगों के जॉब चली गई, सैलरी आधी हो गई, सेविंग नहीं थी। आधे से ज्यादा दुनिया ने बहुत मुश्किल समय देखा है। अब दुनिया नॉर्मल हो रही है, तब क्या वो हर फ्राइडे आकर फिल्म देख सकते हैं या फिल्म देखने के लिए उनके पास पैसे कम हैं। ऐसे में वो महीने में सिर्फ एक फिल्म को चुनेंगे। अब हर सप्ताह फिल्में रिलीज भी ज्यादा हो रही हैं, क्योंकि 2 साल से नहीं हुईं। ये एक टेस्टिंग टाइम है।