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संसार जिसे प्राप्ति मानता है वह दुख के साधनों का संयोजन है : मैथिलीशरण भाईजी

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रायपुर। बुद्धि, कीर्ति, गति, प्रशंसा और जीवन में भलाई यदि किसी को प्राप्त है तो यह मानना चाहिए कि उस साधक ने सत्संग किया है। सत्संग का गवार्धान भी सुमति को जन्म देता है और फिर जितने प्रकार की संपत्ति लौकिक और पारमार्थिक सब की सब व्यक्ति को मिल जाती है और व्यक्ति सब पाकर आनंदित हो जाता है और सब समर्पित करके धन्य हो जाता है। भगवान के नाम का ही स्मरण पर्याप्त है,किसी अनुष्ठान की आवश्यकता नहीं है। आज सभी अपने-अपने धर्म को श्रेष्ठ साबित करने में लगे हुए हैं। भौतिक वस्तुओं के प्रति तो निष्ठा है पर धर्म के प्रति नहीं जिस दिन आ जायेगी उस दिन धर्मान्तरण जैसी कोई बात आयेगी ही नहीं।
समता कॉलोनी स्थित महाराजा अग्रसेन कॉलेज के आडिटोरियम में 16 से 22 नवंबर तक तुलसीकृत श्रीरामचरित मानस पर प्रवचन आयोजित किया गया है जिसमें युग तुलसी श्रीरामकिंकर के शिष्य स्वामी मैथिलीशरण भाईजी बालकाण्ड की दो चौपाईयों पर सात दिन तक व्याख्या करेंगे। पत्रकारों से चर्चा करते हुए मैथिलीशरण भाईजी ने कहा कि ये जो पांच वस्तुएं है – मति, कीर्ति, गति, प्रशंसा और भलाई। रामचरित मानस के माध्यम से आज के समाज में ऐसा लगता है कि न जाने कितने लोगों को मिल जाती है या मिल रही है पर इनके मिलने से वास्तविक सार्थकता कब मानी जाए ये गोस्वामी तुलसीदास जी ने नाना पुराण और वेदों से सम्मत इस रामायण में प्रस्तुत किया है। उन्होंने कहा कि संसार जिस संसार की प्राप्ति को प्राप्ति मानता है, वास्तव में यह प्राप्ति न होकर दुख के साधनों का संयोजन है। यदि सुख के लिए कर रहा था तो वह यह क्यों नहीं कहता है कि मैं बहुत आनंदित हूं और धन्यता को प्राप्त हो चुका हूं।
उन्होंने कहा कि जब तक पाने की इच्छा बनी हुई है तब तक पाया नहीं है, सुख का आधार जब तक कर्म नहीं देखते रहेंगे पर ज्यो ही वास्तविकता की नींद खुलेगी तब हम जहां के तहां दिखाई देंगे। संसार के अधिकांश लोग इस दौड़ में दौड़ रहे है, पर पहुंच कहीं रहे है। कल्पित सुख की मिथ्या कल्पना में डूबे हुए है, वास्तविक सुख कर्म में और कर्म के समर्पण में है।
कथा आज 16 नवंबर की संध्या 7 बजे से रात्रि 8.30 बजे तक 22 नवंबर तक रोजाना कथा प्रवचन होगा, प्रवचन से पूर्व संध्या 6.30 से 7 बजे तक मिथिला और चित्रकूट से आए पंडित अनिल पाठक और पंडित विक्रम मिश्र सुमधुर भजन प्रस्तुत करेंगे।