रायपुर। अग्रणी कंपनियों में शामिल टाटा कंपनी में 12 लाख रुपये सालाना की अच्छी-खासी नौकरी को छोड़ने का जोखिम लेना और फिर इसकी जगह घास कटाई मशीन बनाकर स्टार्टअप शुरू करने वाले को लोग सनकी ही कहेंगे, लेकिन इस सनक को जुनून तक पहुंचाने का काम किया है नेहरूनगर, भिलाई निवासी हर्ष जैन ने, जो एनआईटी रायपुर से इलेक्ट्रिकल में स्नातक हैं।
उन्होंने न केवल अपना स्टार्टअप शुरू किया, बल्कि सिर्फ तीन साल में ही अपनी कंपनी के टर्नओवर को करोड़ पार तक पहुंचाकर अब वे एक सफल उद्यमी बन चुके हैं। इन तीन वर्ष में तीन करोड़ रुपये का कारोबार करने के साथ ही अपनी कंपनी में उन्होंने 24 लोगों को रोजगार भी दिया है। उनकी बनाई मशीन के खरीदारों की पंक्ति में देश की अग्रणी कंपनियां शामिल हैं। वे अब तक अडाणी, टाटा प्रोजेक्ट, रीन्यू, जूवी जैसे मल्टीमिलेनियर कंपनियों को अपनी मशीनें बेच चुके हैं।
हर्ष के इसी जुनून को देखकर अब भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने उनके स्टार्टअप को देश के चुनिंदा अव्वल 300 कृषि स्टार्टअप के लिए चयनित किया है। इतना ही नहीं, 17 अक्टूबर को नई दिल्ली के पुसा में होने वाले राष्ट्रीय स्टार्टअप कान्क्लेव और किसान मेले में शामिल होने के लिए बुलावा भी भेजा है, जिसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी करने जा रहे हैं। जहां वे इन स्टार्टअप के नवाचार को देखने वाले हैं।
हर्ष बताते हैं कि 2015 में एनआइटी रायपुर सें इलेक्ट्रिकल में स्नातक के बाद टाटा की अधिगृहीत सोलर कंपनी एज्योर में सीनियर एक्जीक्यूटिव का काम कर रहे थे। यहां उन्होंने देखा कि गंदगी जमने की समस्या से पैनल पूरी क्षमता से काम नहीं करते तो इसकी सफाई के लिए रोबोटिक ब्रश बनाया, जो बिना पानी के सफाई करता था। एक्सोसोलर नाम से स्टार्टअप कंपनी बनाई और स्टार्टअप इंडिया में रजिस्ट्रेशन भी करा लिया। इसी बीच बुंदेलखंड के जालोर में सोलर पैनल की सफाई के दौरान देखा कि एक मजदूर घास काटने की पेट्रोल चलित मशीन शुरू नहीं कर पा रहा था। अधिक ठंड की वजह से यह समस्या हो रही थी। उन्होंने कहा, इससे बेहतर बैटरी चलित मशीन से काम कर लेते। मजदूर ने जवाब दिया- ऐसी कोई मशीन ही नहीं है। यहीं से बैटरी आधारित घास कटाई मशीन बनाने का विचार आया और फिर क्या नई मशीन बना डाली और इसका भारत सरकार के उद्योग एवं वाणिज्य मंत्रालय में पेटेंट भी करा लिया।
हर्ष ने बताया कि पहली बैटरी आधारित मशीन उन्होंने घर के आसपास की साफ-सफाई के लिए बनाई थी। इस बीच टाटा की एज्योर कंपनी ने 10 घास कटाई मशीन के लिए निविदा जारी की। उन्होंने टेंडर भर दिया और घर में ही हाथों से मशीन बनाकर सप्लाई कर दी। दो लाख रुपये भी कमाए। पेट्रोल आधारित मशीनों से बेहतर काम करने पर 30 मशीन के और आर्डर मिले। क्षमता नहीं होने से बाहर के लोगों से काम करवाकर मशीनें आपूर्ति की तो पैसे नहीं बचे। ऐसे में मित्र सोमेश, देवेंद्र और पिता अनिल जैन को साथ लेकर इलेक्ट्रीशियन और वेल्डरों की टीम बनाई और खुद मशीनों का उत्पादन शुरू किया। तब से लेकर अब तक डेढ़ हजार मशीनें वे विभिन्ना कंपनियों को बेच चुके हैं।
हर्ष यहीं नहीं रुके। इसके बाद से वे 12 अन्य बैटरी आधारित कृषि मशीनें बना चुके हैं। इनमें से नौ मशीनें ऐसी हैं, जिन्हें उन्होंने भारत सरकार के उद्योग एवं वाणिज्य मंत्रालय के बौद्धिक संपदा भारत विभाग से पेटेंट करा चुके हैं। इसमें आरा मशीन, अर्थ अगर, स्प्रेयर, हेज ट्रिमर, टीलर, वीडर, सोलर पैनल क्लीनर, लान मूवर व प्राइम मूवर शामिल हैं। तीन अन्य मशीन के पेटेंट के लिए आवेदन किया है।