Home Uncategorized बच्चों को मात्र पीठ पर बस्ते लादकर स्कूल मत भेजो,घर में भी...

बच्चों को मात्र पीठ पर बस्ते लादकर स्कूल मत भेजो,घर में भी संस्कार की कक्षा लगाओ : आचार्यश्री विशुद्ध सागर जी महाराज

31
0

रायपुर। शरद पूर्णिमा के दिन रविवार को आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज का जन्मदिवस महोत्सव आचार्यश्री विशुद्ध सागर जी महाराज के ससंघ सानिध्य में धूमधाम से मनाया गया। पूजा,भक्ति के साथ सभी ने पद्मप्रभ दिगंबर जैन मंदिर लाभांडी में जारी चातुर्मासिक प्रवचनमाला में धर्मलाभ लिया। कार्यक्रम में विशेष अतिथि छत्तीसगढ़ शासन के संस्कृति मंत्री अमरजीत भगत उपस्थित रहे। आचार्यश्री ने अपनी मंगल देशना में कहा कि मात्र पीठ पर बस्ते लादकर अपने बच्चों को स्कूल मत भेजो,अपने घर में भी संस्कार की कक्षा लगाओ। आचार्यश्री ने कहा कि संसार में प्राण छूट जाए लेकिन भक्ति न छूटे,प्राण छूट जाए लेकिन विश्वास न छूटे। प्राण पुन: पुन: मिल जाएंगे, यदि आस्तिक हो। मित्र मंत्री भगत जी चाहे धर्मसभा हो या राजनीति की सभा हो,अपनी बात कहने में डर नहीं रखना चाहिए। बच्चे-बच्चे को समझाओ कि बेटा पुनर्भव होता है, यदि पुनर्भव आप अपने बच्चे को नहीं समझा पाए तो आपके मठ -मंदिर सब बेकार होंगे,क्योंकि आपके बेटे ने कहा कि मंदिर मत जाओ,किसने देखा है स्वर्ग, किसने देखा है नर्क, मंदिर जाने से क्या मिलता है ? उसी समय आप अपना सिर्फ पटक लेना और कहना मुझे नहीं मालूम था कि मेरे कुल में नास्तिक का जन्म हो गया है।
आचार्यश्री ने कहा कि देश के माता-पिता को आज ही सूचना दे दो कि बच्चा स्कूल जाएगा तो धन कमाएगा और घर में सीखेगा तो धर्म कमाएगा। केवल बच्चे को बस्ता दे देना यही कर्तव्य की पूर्ति नहीं है, मित्र किसान बुआई के बाद घर में नहीं बैठता,वह मेड़ पर घूमने भी जाता है। चाहे मंत्री भगत हो या जितने श्रावक बैठे हैं, सब से पूछ लेना कि 2 दिन खाने और जाने को नहीं मिले तो चलेगा क्या ? विश्वास मानिए 2 दिन खाने को नहीं मिला तो आदमी मरेगा नहीं उसे तकलीफ नहीं होगी, लेकिन जाने को नहीं मिला तो जाने की जगह ढूंढेगा और यदि निकलना ही बंद हो जाए तो डॉक्टर से मिलेगा। मित्र अंदर जाए या न जाए बाहर निकलना जरूरी है। पेट साफ हो गया तो कष्ट शरीर को नहीं होगा और मन साफ हो गया तो कष्ट आत्मा को नहीं होगा।
आचार्यश्री ने कहा कि ये बात देश के नागरिकों से कह दो कि किसान धान बोने के बाद,धान जब तक घर में नहीं पहुंचाता, तब तक प्रतिदिन सुबह-शाम खेत की मेड़ पर घूमता है। किसान आपको व आचार्य परमेष्ठी को भी शिक्षा देता है, माता-पिता और देश के राजनेता को भी शिक्षा देता है। किसान फसल बोने के बाद मेड़ पर घूमता है, जब तक अंकुर नहीं होते और पौधे हो गए तो पशु न चर जाएं। ऐसे ज्ञानियों केवल बस्ता पकड़ा दिया आपने बच्चों को तो उस किसान से सीखो, बच्चों को केवल पढ?े मत भेजो, बच्चों को सुबह-शाम देखना सीखो, उनके अंदर कुसंस्कारों की चिडि?ा तो नहीं चुग गई,उनके भीतर पशु तो प्रवेश नहीं कर गया है।
आचार्यश्री ने कहा कि किसान से आचार्य परमेष्ठी भी सीखें कि आपने दीक्षा तो दे दी लेकिन दीक्षा के उपरांत मुनिराजों के भीतर अहंकार के पशु तो प्रवेश नहीं कर गए, शिथलाचार्य के पक्षी तो प्रवेश नहीं कर रहे हैं,नहीं तो चारित्र के धान नष्ट हो जाएंगे,इसलिए हमेशा देखते रहना चाहिए। भारत देश संस्कारों का देश है, यह देश साधु-संतों,श्रमणों का देश है। मेरे मित्र दुनिया के लोग समय खाली होता है तो सिनेमा हॉल जाते हैं और भारत के लोग जो संस्कारवान होते हैं वह सिनेमा हॉल नहीं जाते, साधुओं के चरणों में जाते हैं।