नई दिल्ली। बरसाने में होली महोत्सव की शुरुआत आज लड्डू फेक होली से शुरू होगी। लड्डू होली की शुरुआत लाडली मंदिर से होगी। इस होली में देश-विदेश से आए राधा-कृष्ण के भक्त एक दूसरे पर लड्डू और अबीर-गुलाल उड़ाते हैं। ऐसा माना जाता है कि लड्डू की होली खेलने की परंपरा श्रीकृष्ण के बालपन से जुड़ी है। कहा जाता है कि जब भगवान श्रीकृष्ण और नंद गांव के सखाओं ने बरसाना में होली खेलने का न्योता स्वीकार कर लिया था, तब पहले वहां खुशी में लड्डू की होली खेली गई थी। यही परंपरा आज भी चली आ रही है। इस परंपरा के तहत भक्त पहले राधा रानी मंदिर के पुजारियों पर लड्डू फेंकते हैं और उसके बाद अपने साथ लाए लड्डुओं को एक दूसरे पर फेंकते हैं। वे नाचते गाते गुलाल उड़ाते हैं।
4 और 5 मार्च को लट्ठमार होली – बरसाने और वृंदावन
बरसाने में 4 मार्च को और नंदगांव में 5 मार्च को लठमार होली खेली जाएगी। नंदगांव से सखा बरसाने आते हैं और बरसाने की गोपियां उन पर लाठियां बरसाती हैं। बरसाना के अलावा मथुरा, वृंदावन, नंदगांव में लठमार होली खेली जाती है। बरसाने की गोपियां यानी महिलाएं सखाओं को प्रेम से लाठियों से पीटती हैं और सखा उनसे बचने की कोशिश करते हैं। इस दौरान गुलाल-अबीर उड़ाया जाता है। अगले दिन बरसाने वाले वृंदावन की महिलाओं के संग होली खेलने जाते हैं। इस तरह की होली बरसाने और वृंदावन के मंदिरों में खेली जाती हैं। इस होली की खासियत ये है कि इसमें दूसरे गांव से आए लोगों पर ही लाठियां बरसती हैं। अपने गांव वालों पर लाठियां नहीं चलाई जातीं।
6 मार्च को वृंदावन में फूलों की होली
बांके बिहारी मंदिर में रंगभरनी एकादशी पर फूलों की होली खेली जाती है। ये सिर्फ 15 से 20 मिनट तक चलती है। इस होली में बांके बिहारी मंदिर के कपाट खुलते ही पुजारी भक्तों पर फूलों की वर्षा करते हैं। इस होली के लिए खासतौर से कोलकाता और अन्य जगहों से भारी मात्रा में फूल मंगाए जाते हैं। भगवान बांके बिहारी जिस रंग से होली खेलते हैं उसके लिए एक क्विंटल से ज्यादा सूखे फूलों से रंग तैयार किया जाता है। सबसे पहले भगवान पर रंग का शृंगार होता है। इसके बाद भक्तों पर गेंदा, गुलाब, रजनीगंधा जैसे सुगंधित फूलों की पंखुड़ियां और रंग बरसाए जाते हैं।
7 मार्च को गोकुल की छड़ीमार होली
गोकुल बालकृष्ण की नगरी है। यहां उनके बालस्वरूप को ज्यादा महत्व दिया जाता है। इसलिए श्रीकृष्ण के बचपन की शरारतों को याद करते हुए गोकुल में छड़ीमार होली खेली जाती है। यहां फाल्गुन शुक्लपक्ष द्वादशी को प्रसिद्ध छड़ीमार होली खेली जाती है। जिसमें गोपियों के हाथ में लट्ठ नहीं, बल्कि छड़ी होती है और होली खेलने आए कान्हाओं पर गोपियां छड़ी बरसाती हैं। मान्यता के अनुसार बालकृष्ण को लाठी से चोट न लग जाए, इसलिए यहां छड़ी से होली खेलने की परंपरा है।
गोकुल में होली द्वादशी से शुरू होकर धुलेंडी तक चलती है। दरअसल, कृष्ण-बलराम ने यहां ग्वालों और गोपियों के साथ होली खेली थी। कहा जाता है कि इस दौरान कृष्ण भगवान सिर्फ एक दिन यानी द्वादशी को बाहर निकलकर होली खेला करते थे। गोकुल में बाकी दिनों में होली मंदिर में ही खेली जाती है।
8 से 10 मार्च तक रंगों की होली
8 मार्च यानी चतुर्दशी से 3 दिन तक रंग वाली होली खेली जाती है। रंगों का ये उत्सव मंदिरों में भी मनाया जाता है। इसमें सूखे फूलों के रंगों के साथ ही अबीर, गुलाल और अन्य रंग भी उड़ाए जाते हैं। ब्रज के फालेन गांव में होलिका दहन पर पुरोहित बिना कपड़ों के नंगे पैर जलती होली के बीच में से निकलता है। इस तरह ब्रज का होली उत्सव मनाया जाता है।