जांजगीर-चाम्पा। कुछ समय पहले की बात है। जिला मुख्यालय में होने वाली मीटिंग कई अधिकारियों के लिए मुसीबत तो कुछ के लिए मौज के समान हो जाती थी। कलेक्टोरेट में होने वाली बैठकों में शामिल होने के लिए अनेक अधिकारियों को जहाँ लंबी दूरी तय करनी पड़ती थी, वहीं आने-जाने में पूरा दिन निकल जाता था। इस बीच आमनागरिको को भी समस्याओं का सामना करना पड़ता था। उन्हें अधिकारी दफ्तर में नहीं मिलते थे।
आॅफिस जाने पर उन्हें बताया जाता था कि अधिकारी मीटिंग में गए हैं। इस तरह जिला मुख्यालय में मीटिंग के नाम पर अधिकारी भी समय पर दफ्तर में नहीं मिलते थे और आने जाने में उनके द्वारा सरकारी वाहन प्रयुक्त किए जाने से हर महीने लाखों रुपये का डीजल तथा पेट्रोल जलता था। कलेक्टर तारन प्रकाश सिन्हा के जिले में पदस्थ होने के पश्चात उनके द्वारा लागू की गई नई व्यवस्थाओं से अब जिले में मीटिंग का बहाना बनाना और गायब रहना आसान नहीं रह गया है। कलेक्टर की पहल से अधिकारियों को जहां जिला मुख्यालय नहीं आना पड़ रहा है, वहीं वीडियो कान्फ्रेसिंग से जुड़कर बैठक अटैण्ड करने की अनिवार्यता से अधिकारियों के आने-जाने में जलने वाले पेट्रोल-डीजल के लाखों रुपए भी बचने लगे हैं।
जांजगीर-चाम्पा जिले के दूरस्थ ब्लॉक डभरा, सक्ती, जैजैपुर, मालखरौदा, अकलतरा, नवागढ़, पामगढ़, शिवरीनारायण, बम्हनीडीह, बलौदा सहित सहित चाम्पा क्षेत्र के अधिकारियों को जिला मुख्यालय में प्रति सप्ताह मंगलवार को होने वाली समय-सीमा की बैठक से लेकर अन्य महत्वपूर्ण बैठकों में अपनी प्रत्यक्ष उपस्थिति देनी पड़ती थी। इन बैठकों में आने के लिए अधिकारी अपने कार्यालय से एक या दो घण्टे पहले ही निकल जाया करते थे। जिला मुख्यालय में दो-तीन घण्टे की मीटिंग के बाद यहा से निकलने के बाद कई अधिकारियों को अपने कार्यालय पहुचते या तो शाम हो जाती थी या फिर कलेक्टर की मीटिंग होने की बात कहकर कई अधिकारी उस दिन अपने कार्यालय में भी नहीं मिलते थे।
इस तरह आम नागरिकों को किसी महत्वपूर्ण अधिकारी से भेंट-मुलाकात मुश्किल हो जाता था, वहीं लंबी दूरी तय कर मुख्यालय आने-जाने में एक अधिकारी 500 रुपए से लेकर 2500 रुपए तक का डीजल-पेट्रोल फूंक दिया करते थे। कलेक्टर तारन प्रकाश सिन्हा ने जिले में पदभार ग्रहण करने के साथ जिला मुख्यालय में होने वाली समय-सीमा की बैठक सहित अन्य बैठकों में अधिकारियों को सभाकक्ष में प्रत्यक्ष बुलाने की बजाय वीडियो कान्फ्रेसिंग से जुड़कर बैठक अटैण्ड करने के निर्देश जारी कर दिए। कलेक्टर की इस छोटी सी पहल का असर अब यह हो रहा है कि समय-सीमा या अन्य बैठक के नाम पर कुछ अधिकारियों के कार्यालय से गायब रहने की प्रवृत्ति पर लगाम लगा है, वहीं महीने में 5000 हजार से 15 हजार रूपए बैठक के नाम पर डीजल-पेट्रोल में जला देने वाले अधिकारियों के नहीं आने से उन्हें आराम के साथ शासन के लाखों रूपए भी बचने लगे हैं।