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महंगाई और बेरोजगारी के लिए मोदी सरकार की गलत आर्थिक नीतियां जिम्मेदार-डॉ. रागिनी

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रायपुर। एक समय था जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की जनता को महंगाई और बेरोजगारी से मुक्त भविष्य का सपना दिखाया था। इसके विपरीत आज उन्होंने लोगों को रिकॉर्ड तोड़ मूल्य वृद्धि और 45 वर्षों में सबसे अधिक बेरोजगारी की भयावह स्थिति में डाल दिया है।कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ. रागिनी नायक ने महंगाई पर केन्द्र सरकार का पूरा लेखा जोखा रखते हुए कहा कि आखिर कब मिलेगी राहत,जनता पूछ रही।
पिछले आठ वर्षों में मोदी सरकार का रिकॉर्ड इस सच्चाई को उजागर करता है:
2014 में एलपीजी 410 प्रति सिलेंडर, 2022 में 1,053-1,240 रुपये प्रति सिलेंडर, 156 प्रतिशत वृद्धि
2014 में पेट्रोल 71 रुपये प्रति लीटर, 2022 में 95-112 रुपये प्रति लीटर, 40 प्रतिशत वृद्धि
2014 में डीजल 55 रुपये प्रति लीटर, 2022 में 90-100 रुपए प्रति लीटर, 75 प्रतिशत वृद्धि
2014 में सरसों का तेल 90 रुपये प्रति किलो, 2022 में 200 रुपए प्रति किलो, 122 प्रतिशत वृद्धि
2014 में गेहूं का आटा 22 रुपये प्रति किलो, 2022 में 35-40 रुपए प्रति किलो 81 प्रतिशत वृद्धि
2014 में दूध 35 रुपये प्रति लीटर, 2022 में 60 रुपए प्रति लीटर 71 प्रतिशत वृद्धि
2014 में सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री मोदी केवल महंगाई को नियंत्रित करने में ही असफल नहीं हुए बल्कि उनकी गलत नीतियों और धोखेबाजी ने वास्तव में लोगों की पीड़ा को और बढ़ा दिया है।
प्रधानमंत्री ने 2019 में मतदाताओं के सामने इस बात का दंभ भरा था कि खाद्यान्न, दही, लस्सी और छाछ जैसी आवश्यक वस्तुओं को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है लेकिन 2022 में उन्होंने उन्हीं वस्तुओं पर जीएसटी लगा दी। उन्होंने 2019 के चुनाव में लोगों से वोट लेने के लिए उज्ज्वला योजना का खूब प्रचार किया लेकिन चुनावों के तुरंत बाद उन्होंने संवेदनहीनता दिखाते हुए रसोई गैस पर सब्सिडी को खत्म कर दिया। रसोई गैस की कीमतों में दोगुनी से अधिक वृद्धि करके उसे 1,053-1200 रुपये प्रति सिलेंडर तक पहुंचा दिया और करोड़ों उपभोक्ता आज अपने खाली गैस सिलेंडर को फिर से भराने की स्थिति में नहीं हैं। ये उन तमाम मामलों में से सिर्फ दो ऐसे उदाहरण हैं जहां प्रधानमंत्री ने भारत के लोगों का वोट प्राप्त करने के लिए उन्हें धोखा दिया और फिर अपनी डूब मरो की विचारधारा का पालन करते हुए उनकी पीठ में छुरा घोंप दिया।
हर कीमत पर अपने खजाने को भरने की मोदी सरकार की हताशा ने उसे अप्रत्याशित ईंधन कर लगाने के लिए प्रेरित किया, जिससे भारतीय उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति को और आघात पहुंचा है। पेट्रोल, डीजल और एलपीजी की वैश्विक कीमतें 2021-22 की तुलना में 2013-14 में बहुत अधिक थीं लेकिन उपभोक्ता आज एक लीटर ईंधन या एलपीजी सिलेंडर के लिए यूपीए शासन काल की तुलना में कहीं अधिक भुगतान कर रहा है।
मई 2014 में कच्चा तेल 106 $/बैरल, पेट्रोल की कीमत 71 रू./लीटर, डीजल की कीमत 55 रू./लीटर, अगस्त 2022 में कच्चा तेल 97.01 $/बैरल, पेट्रोल की कीमत 95-112 रू./लीटर, डीजल की कीमत 71 रू./लीटर, 2013-14 में एलपीजी 881 $/मीट्रिक टन, एलपीजी की कीमत 410 रू./सिलेंडर, अगस्त 2022 में में एलपीजी 670 $/मीट्रिक टन, एलपीजी की कीमत 1053-1240 रू./सिलेंडर, कच्चे तेल और रसोई गैस की अंतर्राष्ट्रीय कीमतें पिछले कुछ महीनों से कम हो रही हैं, लेकिन उपभोक्ताओं को इसका लाभ नहीं दिया जा रहा है। इसके विपरीत जब-जब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कीमतों में वृद्धि होती है तो ये सरकार पेट्रोल, डीजल और एलपीजी की कीमतों को बढ़ाना कभी नहीं भूलती। सरकार की युवा विरोधी नीतियों के कारण केंद्र सरकार में 10 लाख पद खाली पड़े हैं जो कि कुल स्वीकृत पदों का 24 प्रतिशत हैं।
पत्रकार वार्ता में मंत्री डॉ. शिवकुमार डहरिया, प्रदेश कांग्रेस संचार विभाग के अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला, प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी महामंत्री संगठन अमरजीत चावला, अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष महेन्द्र छाबड़ा, प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर, घनश्याम राजू तिवारी, विकास तिवारी, सुरेन्द्र वर्मा, वंदना राजपूत, नितिन भंसाली, अमित श्रीवास्तव, अजय गंगवानी उपस्थित थे।