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फिल्मों को लोकप्रिय बनाने में आइडिया की अहम भूमिका

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भोपाल। विज्ञान फिल्म उत्सव में तीसरे दिन प्रतियोगी डॉक्यूमेंटरी फिल्मों के प्रदर्शन के साथ ही विशेषज्ञों ने विश्वविद्यालयों में पत्रकारिता और जनसंचार में अध्ययनरत विद्यार्थियों को फिल्म की पटकथा लेखन (स्क्रिप्ट राइटिंग) के बारे में विस्तार से जानकारी दी। अधिकांश विशेषज्ञों ने अपने व्याख्यान में फिल्मों के निर्माण में नये आइडिया पर सबसे अधिक जोर दिया।
प्रात: सत्र में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की संस्था ‘विज्ञान प्रसार’, नई दिल्ली के कन्सलटेंट डॉ. वी.के. त्यागी ने ‘विज्ञान फिल्मों में पटकथा लेखन’ विषय पर व्याख्यान में बताया कि विज्ञान फिल्में आम लोगों में विज्ञान की समझ बढ़ाती हैं। वैज्ञानिक साक्षरता को प्रोत्साहित करती हैं। उन्होंने बताया कि विज्ञान की शैक्षणिक फिल्में विज्ञान और स्वस्थ मनोरंजन (एड्यूटेनमेंट) का उद्देश्य पूरा करती हैं। डॉ. त्यागी ने विज्ञान फिल्मों के प्रकारों की चर्चा करते हुए बताया कि डाक्यूड्रामा, साइंस न्यूज कैप्सूल, डाक्यूमेंटरी, साइंस फिक्सन आदि के रूप में विज्ञान फिल्मों का निर्माण किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि सीमित बजट में अच्छी विज्ञान फिल्मों का निर्माण किया जा सकता है।
आईआईटी, गांधीनगर के प्रोफेसर समीर सहस्त्रबुद्धे ने ‘अंडरस्टेंडिंग द यूज ऑफ कॉपीराइट फ्री कंटेट इन फिल्म मेकिंग’ विषय पर विचार व्यक्त करते हुए बताया कि पुस्तक प्रकाशन जगत की तरह फिल्मों में कॉपीराइट का महत्व है। एथिकल फिल्म मेकर्स का कॉपीराइट पर विशेष जोर रहता है। वर्तमान में अति बुद्धिमान मशीनें आ चुकी हैं, जो कॉपीराइट का पता लगाकर मौलिक रचना की चोरी को रोकने में सहायक हो सकती हैं।
भोपाल में विज्ञान फिल्मों के निर्माण के लिए भारी संभावनाएँ हैं। यहाँ अनुसंधान करने वाले अनेक वैज्ञानिक संस्थान हैं। ये विचार एनडीटीवी, नई दिल्ली के पूर्व साइंस एडीटर और विज्ञान संचारक पल्लव बागला ने पैनल परिचर्चा के दौरान व्यक्त किये। उन्होंने दर्शकों को विज्ञान प्रसार के इंडिया साइंस वायर के लिए बनाई गई दो विज्ञान फिल्मों-‘अटल टनल’ और भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र, मुम्बई द्वारा बनाई ईसीजी मशीन की फिल्म क्लीपिंग्ज दिखाईं। श्री बागला ने कहा कि दिसंबर में कड़ाके की सर्दी में अटल टनल की शूटिंग एक बड़ी चुनौती थी, लेकिन उन्होंने इसका सामना किया। उन्होंने बताया कि आम लोगों में यह धारणा है कि भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र में परमाणु बम बनाने की सामग्री पर रिसर्च होती है। लेकिन यह वही संस्थान है जहाँ परमाणु अनुसंधान का उपयोग शांतिपूर्ण कार्यों के लिए हो रहा है। यहाँ परमाणु विज्ञान की मदद से ईसीजी जैसी चिकित्सा मशीन का निर्माण किया गया है। श्री बागला ने बताया कि उन्होंने यहाँ विभिन्न अड़चनों और चुनौतियों को दृढतापूर्वक पार करते हुए ईसीजी मशीन का स्वयं पर परीक्षण कर विज्ञान फिल्म का निर्माण किया। उन्होंने बताया कि भोपाल गैस त्रासदी के वैज्ञानिक पहलुओं को प्रस्तुत करने के लिए फिल्म बनाई है। पल्लव बागला विज्ञान की लोकप्रिय राष्ट्रीय पत्रिका ‘साइंस रिपोर्टर’ के संपादक भी रह चुके हैं।
देश के विख्यात साइंस कार्टून विशेषज्ञ और लखनऊ स्थित सीएसआईआर-सीडीआरआई के वैज्ञानिक डॉ. प्रदीप श्रीवास्तव ने पैनल चर्चा में कहा कि फिल्मकारों को विज्ञान फिल्मों में साइंस कार्टून शामिल करना चाहिये। उन्होंने कहा कि साइंस कार्टून विज्ञान विषयों को रोचक और सरल बनाता है। डॉ. प्रदीप श्रीवास्तव ने साइंस कार्टून के लिए एक शब्द की रचना की है, जिसे ‘सिनटून’ कहते हैं। उन्होंने ‘बायो इंस्पायर इंजीनियरिंग’ फिल्म को दिखाया, जिसमें प्रकृति में मौजूद परिन्दों सहित अन्य जीव-जन्तुओं से प्रेरणा लेकर बनाये गये उपकरणों और मशीनों को भी दिखाया।
दोपहर में ‘बेस्ड वेज टू डील विथ साइंटिफिक कंटेंट फॉर साइंस फिल्म’ आयोजित परिचर्चा में फिल्म निर्माता सीमा मुरलीधर, मुंबई, प्रो. अभिरूप दत्ता, आईआईटी, इंदौर, डॉ.एस. मिश्रा, सीएसआईआर-एम्प्री, भोपाल, डॉ.एन. मोहन रामानुजन, आईआईए, बेंगलूरू आदि ने व्याख्यान दिये। परिचर्चा के समन्वयक साकेत सिंह कौरव, प्रोजेक्ट को-ऑर्डिनेटर, रीजनल साइंस सेंटर भोपाल थे।
रवीन्द्र भवन में आयोजित चार सत्रों में 27 प्रतियोगी फिल्मों का प्रदर्शन किया गया। इनमें सबसे अधिक फिल्में अंग्रेजी और हिन्दी भाषा में थी। उपस्थित दर्शकों को मराठी और मलयालम भाषा की एक-एक फिल्म देखने का मौका भी मिला।
द जर्नी ऑफ सिल्क शीर्षक से के. गोपीनाथ द्वारा निर्मित फिल्म में रेशम बनाने के लिए बड़े स्तर पर सिल्कवर्म के उत्पादन से जुड़े वैज्ञानिक पहलुओं को रोचक ढंग से चित्रित किया गया है। फिल्म निदेशक ने सिल्कवर्म के जीवन चक्र में अंडा बनने की शुरूआत से लेकर ककून‘’ फॉरमेशन तक की अवस्था को आकर्षक ढंग से दर्शाया है। विश्व में भारत अकेला देश है, जो पाँच तरह के व्यावसायिक रेशम का उत्पादन करता है। रेशम के विविध व्यावसायिक उपयोग हैं। इसका बायोमेडिकल मटेरियल के रूप में भी उपयोग हो रहा है।
मनोज पटेल द्वारा निर्देशित फिल्म ‘सरकार’ में महान भारतीय वैज्ञानिक डॉ. महेन्द्रलाल सरकार के विशेष योगदान और उपलब्धियों को दर्शाने का प्रयास किया गया है। महेन्द्रनाथ सरकार ने आजादी के पहले अंग्रेज शासकों के खिलाफ संघर्ष करने और भारत में अनेक वैज्ञानिक संस्थानों की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने इंडियन एसोसिएशन फॉर कल्टीवेशन ऑफ साइंस की स्थापना की थी। यह वही संस्था है, जिसने देश में ही वैज्ञानिक रिसर्च करने वाले वैज्ञानिकों को प्रोत्साहन प्रदान किया था। फिल्म में बताया गया है कि डॉ. महेन्द्रलाल सरकार ने एलोपैथी और होम्योपैथी दोनों प्रकार की चिकित्सा पद्धति के विकास में समान रूप से महत्व दिया था। मनोज पटेल ने इस फिल्म की पटकथा लिखने के साथ सम्पादन भी किया है।
‘कहानी नमक की’ सीमा मुरलीधरा और एच.बी. मुरलीधरा द्वारा संयुक्त रूप से निर्देशित डाक्यूमेंटरी है, जिसमें नमक के उत्पादन में साल्ट फारमर्स और वैज्ञानिकों की भूमिका को प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। इसमें भावनगर स्थित सेंट्रल सॉल्ट एंड मरीन केमिकल रिसर्च इंस्टीटयूट द्वारा नमक बनाने और संबंधित प्रौद्योगिकी विकास के क्षेत्र में किये गये कार्य को प्रस्तुत किया गया है। यह सीएसआईआर की प्रयोगशाला है, जिसने नमक के र्फोटिफिकेशन और स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों से मुकाबले के लिए नमक को पोषण प्रचुर बनाने में सराहनीय योगदान किया है।
‘विलेज ऑन व्हील्स’ मराठी भाषा में बनाई गई फिल्म है, जिसका निर्देशन श्वेता दत्ता ने किया है। यह फिल्म दर्शकों को गाँव के वास्तविक स्वरूप से रू-ब-रू कराती है। नवोदित फिल्मकार ने राजस्थान के एक गाँव को फिल्माया है। इसमें यह बताने का प्रयास किया गया है कि यह गाँव शहरी भारत की तुलना में अधिक विकसित है। सांस्कृतिक कार्यक्रमों में आज गणेश वंदना, शिव स्तुति, गणगौर नृत्य, पणिहारी नृत्य, झालरिया नृत्य, देशभक्ति एकल नृत्य, बुंदेली नृत्य प्रस्तुत किये गए |
12वें राष्ट्रीय विज्ञान फिल्म उत्सव में आज
फिल्म उत्सव में 25 अगस्त को 13 प्रतियोगी फिल्मों का प्रदर्शन किया जायेगा। प्रातःकालीन सत्र में विज्ञान भारती, नई दिल्ली के राष्ट्रीय संगठन सचिव जयंत सहस्त्रबुद्धे ‘स्वतंत्रता संग्राम और विज्ञान’ विषय पर विशेष व्याख्यान देंगे। दोपहर के सत्र में ‘ट्रांसफॉर्मिंग इंडीव्युजल एटीट्यूड एंड बिहेवियर थ्रू साइंस बेस्ड फिल्म’ विषय पर पैनल परिचर्चा होगी। इसी सत्र में विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों के लिए डीएसटी राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विजेता जलाउद्दीन बाबा‘इंटेट,कंटेट एंड ट्रीटमेंट ऑफ साइंस फिल्म मेकिंग’ विषय पर व्याख्यान देंगे।