लखीमपुर खीरी/कानपुर। बशीर बद्र का मशहूर शेर अगर बाघों के लिए लिखा जाता तो यह कुछ यूं होता। कुछ तो मजबूरियां रही होंगी, यूं कोई आदमखोर नहीं होता। दुधवा के जंगल से पकड़ी गई मझरा और फर्रुखाबाद से पकड़े गए प्रशांत इस मजबूरी के उदाहरण हैं। इन पर विशेषज्ञों के अध्ययन ने बाघ के आदमखोर बनने की मजबूरी उजागर की है। दोनों ने जंगलों की भिड़ंत में अपने दांत गंवाए। बड़े जानवरों का शिकार करने लायक नहीं रहे और आदमखोर हो गए।
इस बार विश्व बाघ दिवस पर गोरखपुर में मझरा पर स्टडी पेश की जाएगी। बाघों का एक भी लंबा दांत (कैनाइन टीथ) टूट जाए तो उनका व्यवहार बदल जाता है। दुधवा की बाघिन के साथ यही हुआ। एक दांत टूटा तो वह आदमखोर हो गई। जानवरों के शिकार में लाचार होने पर उसने इसी साल जून में तिकुनिया में 15 दिन में पांच लोगों को मार डाला। बमुश्किल पकड़ी गई। जांच में उसका एक कैनाइन टूटा और दूसरा घिसा हुआ निकला। उसका नाम मझरा रखा गया। अब वह लखनऊ प्राणि उद्यान में है।
शांत हुआ स्वभाव तो प्रशांत रख दिया बाघ का नाम
फर्रुखाबाद के जंगल में बाघ ने 12 साल पहले आठ लोगों को मार डाला था। उसे पकड़कर कानपुर जू लाया गया। पूर्व पशु चिकित्सक डा. आरके सिंह बताते हैं, बिना संघर्ष भोजन मिला तो वह शांत होने लगा। इसलिए उसका नाम प्रशांत रख दिया गया। बाघिन त्रुशा संग प्रशांत की जोड़ी बनवाई गई।