नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा ने शुक्रवार को तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के फैसले को निराशाजनक करार देते हुए विपक्षी एकता का आह्वान किया है। राष्ट्रपति चुनाव में व्यापक स्तर पर हुई क्रॉस वोटिंग ने विपक्षी एकजुटता के दावों को हिलाकर रख दिया है। मार्गरेट अल्वा की यह टिप्पणी टीएमसी द्वारा यह कहने के एक दिन बाद आई है कि वह 6 अगस्त को उपराष्ट्रपति चुनाव से ममता की पार्टी दूर रहेगी। टीएमसी का कहना है कि अल्वा को विपक्ष के उम्मीदवार के रूप में चुने जाने से पहले उनसे सलाह नहीं ली गई थी। वहीं, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेताओं ने कहा है कि 17 सांसदों और विपक्षी खेमे के 126 विधायकों ने राष्ट्रपति चुनाव में द्रौपदी मुर्मू का समर्थन में क्रॉस वोटिंग किया है। बीजेपी का यह दावा विपक्षी खेमे में गहरी दरार को उजागर करता है। अल्वा ने अपने एक ट्वीट में कहा, “टीएमसी का उपराष्ट्रपति चुनाव में मतदान से दूर रहने का निर्णय निराशाजनक है। यह अहंकार या क्रोध का समय नहीं है। यह साहस, नेतृत्व और एकता दिखाने का समय है। मेरा मानना है कि ममता बनर्जी, जो साहस की प्रतिमूर्ति हैं, विपक्ष के साथ खड़ी रहेंगी।”
18 जुलाई को 17 विपक्षी दलों के नेताओं ने राजस्थान और उत्तराखंड के पूर्व राज्यपाल मर्गरेट अल्वा को चुनावी मैदान में उतारने का फैसला किया। इस दौरान टीएमसी और आम आदमी पार्टी (आप) के नेता मौजूद नहीं थे। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) प्रमुख शरद पवार ने बाद में कहा कि वह टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी और आप अध्यक्ष अरविंद केजरीवाल दोनों के संपर्क में हैं। उन्हें उनका समर्थन मिलने का भरोसा है। टीएमसी और आप ने राष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी उम्मीदवार यशवंत सिन्हा का समर्थन किया था। हालांकि, इस चुनाव में टीएमसी ने अलग स्टैंड लिया है।
टीएमसी के महासचिव अभिषेक बनर्जी ने कहा, “एनडीए उम्मीदवार का समर्थन करने का सवाल ही नहीं उठता है। जिस तरह से विपक्षी उम्मीदवार का फैसला एक पार्टी से बिना उचित परामर्श और विचार-विमर्श के किया गया है उस वजह से हमने सर्वसम्मति से मतदान प्रक्रिया से दूर रहने का फैसला किया है। दोनों सदनों में टीएमसी के 35 सांसद हैं।”
टीएमसी ने आगे कहा, “हमने तीन से चार नामों का प्रस्ताव दिया था और एक परामर्श प्रक्रिया में था। लेकिन उन्होंने टीएमसी के साथ चर्चा और परामर्श किए बिना उम्मीदवार की घोषणा की। आखिरी समय में जिस तरह से उन्होंने फैसला किया, उस पर हमें आपत्ति है।” तृणमूल के राज्यसभा के फ्लोर लीडर डेरेक ओ’ब्रायन ने बाद में कहा, “इस उम्मीदवार पर फैसला दिल्ली में लोगों ने किया है। हमें सिर्फ 10 मिनट का नोटिस दिया गया। आप हमें हल्के में नहीं ले सकते हैं। हमारे साथ बराबारी के साथ व्यवहार करें।”
दो विपक्षी नेताओं ने दावा किया कि ममता बनर्जी ने पहले कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को आश्वासन दिया था कि टीएमसी उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए विपक्षी दलों के किसी भी आम उम्मीदवार का समर्थन करेगी। विपक्षी नेता ने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए कहा “15 जुलाई को दोपहर लगभग 2.30 बजे सोनिया गांधी ने उप-राष्ट्रपति चुनाव पर चर्चा करने के लिए ममता बनर्जी को फोन किया। तृणमूल नेता ने गांधी को बताया कि उनके मन में कोई उम्मीदवार नहीं है और वह विपक्षी दलों द्वारा चुने गए संयुक्त उम्मीदवार का समर्थन करेंगी।”
एक अन्य वरिष्ठ नेता के अनुसार, अगली शाम एनडीए द्वारा पश्चिम बंगाल के राज्यपाल धनखड़ को अपना कैंडिडेट उम्मीदवार घोषित करने के बाद सोनिया गांधी ने उप-राष्ट्रपति चुनाव पर लगभग 8.30 बजे ममता बनर्जी को एक संदेश भेजा, लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।
18 जुलाई को जब विभिन्न विपक्षी दल विपक्ष के उम्मीदवार को अंतिम रूप देने के लिए पवार के घर पर मिले तो टीएमसी बैठक में शामिल नहीं हुई। बैठक में मौजूद एक नेता ने कहा, ‘शरद पवार ने ममता बनर्जी को फोन करने की कोशिश की लेकिन उनके कार्यालय ने कहा कि वह एक बैठक में व्यस्त थीं। बंगाल के सीएम से बात करने के लिए विपक्षी नेताओं ने करीब आधे घंटे तक इंतजार किया। लेकिन कोई संपर्क नहीं हो सका।”