जयपुर। एनडीए के राष्ट्रपति उम्मीदवार दौपद्री मुर्मू से राजस्थान में सियासी समीकरण गड़बड़ा गए है। भाजपा सियासी मुद्दा बनाकर कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक में सेंध लगाने की तैयारी कर रही है। राजस्थान की राजनीति में परंपरागत तौर पर आदिवासी कांग्रेस का वोट बैंक माना जाता है, लेकिन इस बार भाजप ने बड़ा सियासी खेलते हुए आदिवासी महिला को राष्ट्रपति का उम्मीदवार बना दिया। कांग्रेस ने हाल में आदिवासियों के महाकुंभ बैणेश्वर धाम में राहुल गांधी की जनसभा कर आदिवासियों का साधने का प्रयास किया था।
25 सीटें एसटी के लिए रिजर्व
राजस्थान में 200 विधानसभा सीटों में से 25 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जो एसटी वर्ग के लिए आरक्षित हैं। वहीं 6 गैर आरक्षित सीटों पर भी एसटी वर्ग के विधायकों ने जीत दर्ज की थी। इनमें से अकेले आदिवासी बहुल वांगड़ अंचल के चार जिलों डूंगरपुर, बांसवाड़ा, उदयपुर और प्रतापगढ़ जिले की 16 सीटें एसटी वर्ग के लिए रिजर्व हैं जबकि जयपुर जिले की दो , करौली की दो, दौसा की एक, अलवर जिले की एक, सिरोही की एक, बारां की एक और सवाई माधोपुर जिले की 1 सीट भी आरक्षित वर्ग के लिए रिजर्व है। राजस्थान की कुल 200 विधानसभा सीटों में से 40 पर आदिवासी हार-जीत का फैसला करते रहे हैं। राजस्थान में तकरीबन 40 सीटें ऐसी हैं जहां पर आदिवासी मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं। राजस्थान में अधिकांशतः आदिवासियों को कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक माना जाता है, ऐसे में संभावना यही है कि क्या देश की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति के जरिए बीजेपी कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक में सेंध लगा पाएगी। राष्ट्रपति के चुनाव में एनडीए की आदिवासी उम्मीदवार को लेकर कांग्रेस के आदिवासी विधायक असमंजस की स्थिति में हैं। कांग्रेस विधायकों के सामने परेशानी यह है कि वह आदिवासी कैंडिडेट का समर्थन करें या फिर पार्टी व्हिप का, हालांकि अभी तक कांग्रेस के विधायक पार्टी व्हिप की पालना की ही बात कर रहे हैं।
कांग्रेस-बीजेपी का फोकस आदिवासियों पर
राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023 से पहले कांग्रेस और भाजपा आदिवासी वोटर्स को लुभाने की कोशिश कर रही है। कांग्रेस ने राहुला गांधी की रैली करवाई। जबकि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा पूर्वी राजस्थान में एसटी सम्मेलन कर चुके हैं। दोनों ही दल आदिवासियों को वोट बैंक की अहमियत जानते हैं। आदिवासियों के तीर्थस्थल बैणेश्वर धाम में राहुल गांधी की जनसभा का आयोजन आदिवासी वोटबैंक पर कड़ी नजर को दिखाता है। वहीं दूसरी और सियासी मैदान में उभरी नई भारतीय ट्राइबल पार्टी यानी बीटीपी कांग्रेस और बीजेपी के लिए परेशानी का सबब बन गई है। आलम यह है कि बीटीपी के बढ़ते प्रभाव से चिंतित सीएम अशोक गहलोत ने कई आदिवासियों के लिए कई योजनाएं शुरू की। विधानसभा चुनाव 2018 में धौलपुर, करौली, भरतपुर, सवाई माधोपुर, अलवर और दौसा जिले की 35 विधानसभा सीटों में बीजेपी को 3 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। जबकि कांग्रेस के खाते में 27 सीट आई थी।