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जैश और लश्कर को अफगानिस्तान में तालिबान दे रहा मदद: संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट

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संयुक्त राष्ट्र। अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद से ही पाकिस्तान से संबंध रखने वाले आतंकवादी समूहों ने यहां महत्वपूर्ण उपस्थिति बना रखी है, लेकिन तालिबान हमेशा इससे इनकार करता रहा है। इसी बीच पाकिस्तान-आधारित और भारत को निशाना बनाने वाले इन विदेशी आतंकवादी समूहों को लेकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने बड़ा खुलासा किया है।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) की प्रतिबंध समिति की निगरानी टीम (एमटी) की एक रिपोर्ट के अनुसार, तालिबान द्वारा बार-बार इनकार करने के बावजूद, पाकिस्तान से संबंध रखने वाले इन आतंकवादी समूहों ने अफगानिस्तान में महत्वपूर्ण उपस्थिति बना रखी है।
तालिबान प्रतिबंध समिति 1988 की निगरानी टीम की ने जो रिपोर्ट यूएनएससी के सदस्य देशों के सामने पेश किया है उसके अनुसार, तालिबान सीधे तौर पर आठ में से तीन आतंकी शिविरों को नियंत्रित कर रहा है। जैश ए-मोहम्मद (जेईएम) अभी भी अपना शिविर अफगानिस्तान के नंगरहार में चला रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि लश्कर ए-तैयबा ने कुनार और नंगरहार में ऐसे तीन कैंप बनाए हुए हैं।
निगरानी टीम की यह 13वीं रिपोर्ट है और पिछले साल 15 अगस्त को तालिबान द्वारा काबुल पर नियंत्रण करने के बाद से यह पहली रिपोर्ट है। रिपोर्ट में जो निष्कर्ष निकाला गया है वह सदस्य-राज्यों के परामर्श पर आधारित है। तालिबान प्रतिबंध समिति की अध्यक्षता वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति कर रहे हैं।
दोहा में तालिबान के राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख, सुहैल शाहीन ने पिछले हफ्ते बताया था कि काबुल की सरकार किसी को भी “किसी भी पड़ोसी और क्षेत्रीय देश” के खिलाफ अफगानिस्तान की धरती का उपयोग करने की अनुमति नहीं दी है। हालांकि, भारत अफगानिस्तान में पाकिस्तान स्थित आतंकी समूहों की गतिविधियों और तालिबान के साथ उनके संबंधों को लेकर चिंतित है।
वहीं, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की एक अन्य रिपोर्ट में अफगानिस्तान आधारित तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) से पाकिस्तान की सुरक्षा को लगातार खतरे की ओर ध्यान आकृष्ट किया गया है और कहा गया है कि खूंखार आतंकी संगठन के साथ चल रही शांति प्रक्रिया के सफल होने की संभावनाएं क्षीण हैं।
तालिबान प्रतिबंध समिति 1988 की निगरानी टीम की वार्षिक रिपोर्ट में अफगान-तालिबान के साथ टीटीपी के संबंधों का उल्लेख किया गया है और यह बताया गया है कि पिछले साल गनी शासन के पतन से इस समूह को कैसे फायदा हुआ और इसने अफगानिस्तान से संचालित अन्य आतंकवादी समूहों के साथ अपने संबंध कैसे जोड़े।
पाकिस्तान के डॉन अखबार के मुताबिक, रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रतिबंधित टीटीपी में अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा पर पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी इलाकों में 4,000 लड़ाके हैं तथा वहां इसने विदेशी लड़ाकों का सबसे बड़ा समूह बना लिया है।
रिपोर्ट में तालिबान की आंतरिक राजनीति, उसके वित्तीय मामलों, अलकायदा, दाएश और अन्य आतंकवादी समूहों के साथ इसके संबंधों तथा सुरक्षा परिषद के प्रतिबंधों के कार्यान्वयन पर ध्यान केंद्रित किया गया है। यह रिपोर्ट ऐसे समय प्रकाशित हुई जब पिछले गुरुवार को पाकिस्तान सरकार और टीटीपी के बीच तीसरे दौर की बातचीत की शुरुआत हुई है।
पिछले साल नवंबर में हुई पहले दौर की वार्ता के परिणामस्वरूप एक महीने का संघर्षविराम हुआ था, लेकिन बाद में टीटीपी ने पाकिस्तान पर वादाखिलाफी का आरोप लगाते हुए संघर्षविराम खत्म कर दिया था। टीटीपी ने बाद में पाकिस्तानी सेना के खिलाफ हमले फिर से शुरू कर दिए हैं।
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि “समूह (टीटीपी) पाकिस्तान सरकार के खिलाफ एक दीर्घकालिक अभियान पर ध्यान केंद्रित कर रहा है”, जिसका अर्थ है कि “संघर्षविराम समझौतों की सफलता की सीमित संभावना है।”