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SDM ने तालाब के मेड़ का किया नियम विरुद्ध डायवर्सन… अब हो रहा अवैध निर्माण… नपा से अनुज्ञा नहीं…कई बार नोटिस जारी पर कोई असर नहीं…कलेक्टर जनदर्शन में शिकायत के बाद भी अवैध निर्माण जारी…तालाब पर अतिक्रमण, अवैध निर्माण और गंदगी को लेकर हाईकोर्ट में लगेगी याचिका…

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मुंगेली/ सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के स्पष्ट आदेश के बावजूद भी शहर में ऑन रिकॉर्ड मौजूद तालाब पर अवैध कब्जा कर बड़ी -बड़ी इमारतें बन गईं, जिस पर न तो जिला प्रशासन कार्यवाही की हैं और न ही नगर पालिका। यह कहा जा सकता लंबे समय से मुंगेली जिला प्रशासन और नगर पालिका द्वारा सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के निर्देशों की खुली अवहेलना की जा रही हैं। अभी भी मुंगेली शहर के स्थित तालाबों के हिस्से को पाट कर उसका स्वरूप बदलने की कोशिश की जा रही हैं साथ ही नियम विरुद्ध तालाब के मेड़, पार पर अवैध निर्माण कर अतिक्रमण किया जा रहा हैं, साथ ही यहां घरों के गंदे नाली का पानी भी गिराया जा रहा हैं, जिससे तालाब का उपयोग करने वाले लोगों, मवेशियों तथा पशु-पक्षियों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा हैं। इसे रोकने जिला प्रशासन और नगर पालिका कोई ठोस कदम नहीं उठा रही हैं। कलेक्टर और नगर पालिका में शिकायत के बाद भी यहां अतिक्रमण अवैध निर्माण जारी हैं।
लेकिन अब तालाब पर भवन बनाने वालों और पूर्व निर्मित इमारतों की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं, क्योंकि शंकर मंदिर स्थित तालाब को संरक्षित और अतिक्रमण मुक्त करने कुछ लोगों ने टीम बनाकर हाईकोर्ट में जनहित याचिका लगाई जा सकती हैं, जिसकी तैयारी लगभग पूरी हो चुकी हैं।

SDM ने नियम विरुद्ध किया डायवर्सन…

शंकर वार्ड स्थित शंकर मंदिर के बगल में स्थित तालाब पार, मेड़ के एक खसरे का 2021 में डायवर्सन कर दिया गया।प्राप्त जानकारी के अनुसार तत्कालीन अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व) ने मुंगेली में स्थित खसरा नम्बर 722/36 (शामिल 722/37) रकबा 0.012 हेक्टेयर क्षेत्रफल 1530 वर्गफुट का व्यावसायिक प्रयोजन हेतु दिनांक 19/01/2021 को आदेश पारित कर डायवर्सन कर दिया गया। जानकर बताते हैं कि जो इस खसरे नम्बर का डायवर्सन तत्कालीन एसडीएम द्वारा किया गया हैं वह खसरा तालाब का मेड़, पार हैं, और छत्तीसगढ़ भूराजस्व संहिता 1959 की धारा 172 (14) (4) में स्पष्ट उपबन्धित हैं कि वह भूमि जो तालाब, नदी, नाला, झील के जल भराव के अंतर्गत आने वाली भूमि या पगडण्डी या कब्रिस्तान या ग्राम के तालाब के अंतर्गत धारित भूमि भले ही उनका ग्राम के राजस्व नक्शों या राजस्व अभिलेख में कोई विवरण न हो, उसके व्यपवर्तन की अनुमति नहीं दी जायेगी।
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने भी तालाबों के संरक्षण के लिए फैसला दिया हैं। जल संरक्षण के लिए जलाशयों को बचाने के लिए शासन-प्रशासन को काफी मशक्कत करनी पड़ती है, इनमें अवैध कब्जे के मामले जिस गति से बढ़ रहे थे, उससे तालाबों के अस्तित्व पर भी संकट के बादल मंडराने लगे हैं, सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी अधिकारियों ने दरकिनार कर दिया हैं।
मुंगेली शंकर मंदिर तालाब स्थित भूमि खसरा नंबर 722/36 (शामिल 722/37) रकबा 0.012 हेक्टेयर क्षेत्रफल 1530 वर्गफुट का व्यवसायिक, प्रयोजन के उद्देश्य से व्यपवर्तन करने पर अब व्यपवर्तन करने वाले एसडीएम के खिलाफ शिकायत की तैयारी चल रही हैं क्योंकि इनके द्वारा भूराजस्व सहिंता के नियमों और सुप्रीम कोर्ट के निर्देश-आदेश की अवहेलना कर इस तालाब के मेड़ का डायवर्सन किया गया।

शिकायत, रिमाइंडर और कलेक्टर जनदर्शन में शिकायत के बाद भी कार्यवाही नहीं, अवैध निर्माण जारी….

आपको बता दें कि मुंगेली निवासी अधिवक्ता स्वतंत्र तिवारी ने तालाब पार में हो रहे अतिक्रमण और अवैध निर्माण को लेकर मुंगेली नगर पालिका और कलेक्टर से शिकायत की गई थी, कार्यवाही न होने पर नगर पालिका में रिमाइंडर दिया गया तथा कलेक्टर जनदर्शन में भी शिकायत की गई, लेकिन अभी भी अवैध निर्माण जारी हैं, केवल नोटिस की कार्यवाही की गई जिसका अवैध निर्माण करने वालों पर कोई असर नहीं हो रहा हैं। मामले को लेकर तालाबों व जलाशयों के संरक्षण के एक टीम जल्द ही हाईकोर्ट में जनहित याचिका लगा सकती हैं।

सुप्रीम कोर्ट में यह था मामला…

सिविल अपील संख्या- 4787/2001, हिंचलाल तिवारी बनाम कमलादेवी, ग्राम उगापुर, तालुका आसगांव, जिला संतरविदास नगर, उत्तर प्रदेश के मामले में तालाब को सार्वजनिक उपयोग की भूमि के तहत समतलीकरण कर यह करार दिया गया था कि वह अब तालाब के रूप में उपयोग में नहीं है। तालाब की ऐसी भूमि को आवासीय प्रयोजन हेतु आवंटन कर दिया गया था। इस मामले में 25 जुलाई 2001 को पारित हुए आदेश में कोर्ट ने कहा कि जंगल, तालाब, पोखर, पठार तथा पहाड आदि को समाज के लिए बहुमूल्य मानते हुए इनके अनुरक्षण को पर्यावरणीय संतुलन हेतु जरूरी बताया है। निर्देश है कि तालाबों को ध्यान देकर तालाब के रूप में ही बनाये रखना चाहिए। उनका विकास एवं सौंदर्यीकरण किया जाना चाहिए, जिससे जनता उसका उपयोग कर सके, आदेश है कि तालाबों के समतलीकरण के परिणामस्वरूप किए गए आवासीय पट्टों को निरस्त किए जाए। आबंटी स्वयं निर्मित भवन को 6 माह के भीतर ध्वस्त कर तालाब की भूमि का कब्जा ग्रामसभा को लौटाएं।
यदि वे स्वयं ऐसा नहीं करता है, तो प्रशासन इस आदेश का अनुपालन सुनिश्चित कराये। तालाब, पोखरे के अनुरक्षण के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के उक्त आदेश का संज्ञान लेते हुए परिषद ने नये सिरे से 8 अक्तूबर को एक महत्वपूर्ण शासनादेश जारी किया।