रायगढ़ से सुशिल पांडेय की रिपोर्ट
हाथी रहवास एरिया सहित दुर्लभ जीव का वास …..
फिर भी जनसुनवाई के लिए कर दिया कुरचना और बैठ गए प्रबंधन की गोद में ….
प्रकृति से सबसे बड़े दुश्मन बन बैठे ….
रायगढ़। जिले के घरघोड़ा ब्लॉक के टेंडा नवापारा में फील कोल वाशरी संचालित है अब इसका विस्तार ढाई गुना से अधिक क्षमता का विस्तार के लिए जनसुनवाई 21 अप्रेल को कराया जा रहा है। इसकी जनसुनवाई इतनी गुपचुप तरीके से कराने का षड्यंत्र रचा गया था कि चंद दिनों पहले तक इसका किसी को भनक तक नहीं था यहां तक कि प्रभावित ग्रामीणों तक को इसकी जानकारी नहीं लगने दिया गया। लेकिन इतने बड़े उद्योग का विस्तार किया जाना है कहीं न कहीं से चिंगारी बन कर निकलेगी ही इसे ज्यादा दिनों तक छुपाए रखना सम्भव नहीं हुआ और आखरी आखरी समय मे इसकी जानकारी खुल कर बाहर आ गई तब प्रभावित ग्रामीण व ग्रामीण जनप्रतिनिधियों द्वारा इसे लेकर हल्ला शुरू किया और आनन फानन में ग्रामीण एकत्रित होकर पोल खोल अभियान शुरू किया और इसके ईआईए रिपोर्ट का अध्ययन किया तब पता चला कि फील कोल वाशरी की ढाई गुना से अधिक क्षमता का विस्तार किया जा रहा है और जैव विविधता सहित स्थानीय जंगल मे बड़ी संख्या में वन्य जीवों का वास है इस जंगल में दुर्लभ वन्य जीव है । हाथी रहवास क्षेत्र होने की जानकारी सभी को है एक दुर्लभ जंतु हाल में कुत्तों की वजह से कुंए में गिर कर काल कवलित हो चुका है। पहले ही यहां पर अन्य स्थित कोल वाशरी की वजह से टेंडा, नवापारा चारमार सहित आसपास के कुछ और गांव व जंगल फ्लाई ऐश की वजह से बुरी तरह प्रदूषण की चपेट में है। फ्लाई ऐश सहित अन्य औद्योगिक हानिकारक तत्वों की वजह से यहां की कृषि व उद्यनिकी फसल पूरी तरह तबाह व बरबाद हो चुकी है । वन्य जैव विविधता खतरे में है हाथी व दूसरे वन्य जीवों का जीवन अस्तित्व खतरे में पड़ता ज रहा है। इसके बाद भी पर्यावरण विभाग व फारेस्ट के जिम्मेदार नुमाइंदों द्वारा हरि झंडी की चिड़िया बैठा दिया । जबकि यहां की वस्तु स्थिति को देखते हुए आपत्ति दर्ज कर जन सुनवाई के खिलाफ चिड़िया बैठाना चाहिए था। जिस जिम्मेदार वाली पद पर बैठे हैं उन्हें भी अपनी जिम्मेदारियों का एहसास होना चाहिए । ऐसे ही अधिकारियों की वजह से जिला भयानक औद्योगिक प्रदूषण की चपेट में है। और भयानक प्रदूषण की वजह से जिले वासी चर्म रोग समेत सांस, लंग्स कैंसर जैसे घातक बीमारी की चपेट में तेजी आ रहे हैं। प्रदूषण होता है तो होने दो हमें क्या जंगल काटते है तो काटने दो हमें क्या हम तो नौकरी करने आये हैं और नौकरी कर रहे है। जंगल खत्म हो बचे खुचे वन्य जीव भी खत्म हो जाएं हमें क्या। जनजातियों की वनोपज आधारित जीवन खत्म होती है हो हमे क्या … ।
फिलहाल ग्रामीणों व जानकारों द्वारा इसके ईआईए रिपोर्ट पर ही सवालिया निशान लगा दिया है। क्षेत्र में काम करने वाले समाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा भी बताया गया कि भूगौलिक पृष्ठभूमि को इनका ईआईए रिपोर्ट झुठलाता है जन सुनवाई पूरी तरह से विनाशक साबित होगा।