रायपुर। अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ. दिनेश मिश्र ने कोरबा जिले उरगा थाना क्षेत्र के नवापारा पकरिया ग्राम से सामाजिक बहिष्कार की घटना पर चिंता जताई है। कोरबा जिला में एक परिवार का सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया है जिसके कारण उक्त परिवार परेशानी में फंस गया है। डॉ. मिश्र ने प्रशासन को पत्र लिखकर परिवार को न्याय दिलाने की एवं शासन से सामाजिक बहिष्कार के विरोध में एक सक्षम कानून बनाने की मांग की है।
डॉ दिनेश मिश्र ने बताया उन्हें जानकारी मिली है कि कोरबा जिले के उरगा थाना क्षेत्र नवापारा पकरिया के मनीराम कंवर चन्द्रवंशी के परिवार का सामाजिक पंचों ने मनमानी करते हुए सामाजिक बहिष्कार कर दिया है। बहिष्कार के कारण उनका हुक्का पानी बंद हो गया है और उन्हें गांव में रहने में परेशानियों के कारण,वे दूसरे गांव में रहने पर मजबूर हो गए हैं। उन्होंने अपनी बड़ी बेटी की शादी स्वजातीय युवक से ही की थी ,पर उसके बाद भी समाज से ना पूछने के करण उन्हें समाज से बहिष्कृत कर दिया गया है? । इस कारण उन्हें अपना गांव मेंअपन मकान छोड़कर के किराए के मकान में भी रहना पड़ रहा है। बहिष्कार के सार्वजनिक प्रचार के कारण उनकी छोटी बेटी की भी शादी नहीं हो पा रही है। सामाजिक प्रताड?ा यहां तक है कि जब उनकी बहू अपने उनके घर आई तो उसे भी गांव में नहीं आने दिया। गुजर बसर में परेशानी के चलते उन्हें गाँव छोड?ा पड़ा। मनीराम व उसके परिवार ने इस मामले की शिकायत स्थानीय स्तर पर की है पर अब तक कोई कार्यवाही नहीं हो पाई है।
डॉ. मिश्र ने कहा कि,हमारे यहाँ सामाजिक और जातिगत स्तर पर सक्रिय पंचायतों द्वारा सामाजिक बहिष्कार के मामले लगातार सामने आते रहते हैं। ग्रामीण अँचल में ऐसी घटनाएँ बहुतायत से होती है जिसमें जाति व समाज से बाहर विवाह करने, समाज के मुखिया का ककहना न मानने, पंचायतों के मनमाने फरमान व फैसलों को सिर झुकाकर न पालन करने पर किसी व्यक्ति या उसके पूरे परिवार को समाज व जाति से बहिष्कार कर दिया जाता है व उसका समाज में हुक्का पानी बंद कर दिया जाता है। ककुछ मामलों में तो स्वच्छता मित्र बनने पर, तो ककहीं आर.टी.आई. लगाने पर भी समाज से बहिष्कृत कर दिया गया है। पूरे प्रदेश में 30 हजार से अधिक व्यक्ति सामाजिक बहिष्कार जैसी ककुरीति के शिकार हैं।.इसी प्रकार हमारे प्रदेश में भी सामाजिक बहिष्कार प्रतिषेध अधिनियम की महती आवश्यकता महसूस की जा रही है।
डॉ. मिश्र ने कहा कि सामाजिकक बहिष्कार होने से दंडित व्यक्ति व उसका परिवार गाँव में बड़ी मुश्किल में पड़ जाता है। पूरे गाँव-समाज में कोई भी व्यक्ति बहिष्कृत परिवार से न ही ककोई बातचीत करता है और न ही उससे किसी प्रकार का व्यवहार रखता है। उस बहिष्कृत परिवार को हैन्ड पम्प से पानी लेने, तालाब में नहाने व निस्तार करने, सार्वजनिक कार्यक्रमों में शामिल होने, पंगत में साथ बैठने की मनाही हो जाती है। यहाँ तक उसे गाँव में किराना दुकान में सामान खरीदने, मजदूरी करने, नाई, शादी-ब्याह जैसे सामाजिक सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी शामिल होने से वंचित कर दिया जाता है जिसके कारण वह परिवार गाँव में अत्यंत अपमानजनकक स्थिति में पहुँच जाता है तथा गाँव में रहना मुश्किल हो जाता है। सामाजिक पंचायतें कभी-कभी सामाजिक बहिष्कार हटाने के लिए भारी जुमार्ना, अनाज, शारीरिक दंड व गाँव छोडऩे जैसे फरमान जारी कर देती है।
डॉ. मिश्र ने आगे ककहा कि सामाजिक बहिष्कार के कारण विभिन्न स्थानों से आत्महत्या, हत्या, प्रताडऩा व पलायन की खबरें लगातार समाचार पत्रों में आती रहती है। इस संबंध में अब तक कोई सक्षम कानून नहीं बन पाया है इसलिए ऐसे मामलों में कोई उचित कार्यवाही नहीं हो पाती है न ही रोकथाम का कोई प्रयास होता है। सामाजिक बहिष्कार के मामलों के आँकड़े कको लेकर नेशनलक्राइम रिकार्ड ब्यूरो, राज्य सरकार, पुलिस विभाग के पास कोई अब तक रिकार्ड जानकारी नहीं है ऐसी जानकारी सूचना के अधिकार के अंतर्गत प्राप्त हुई है। जबकि ऐसी घटनाएँ लगातार होती है। इस संबंध में सरकार सामाजिकक बहिष्कार प्रतिषेध अधिनियम को आगामी विधानसभा सत्र में सामाजिक बहिष्कार के संबंध में सक्षम ककानून बनाने के लिए पहल करें ताकि अनेक प्रताड़ितों को न्याय मिल सके।