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आनंद और उत्साह के साथ नई डिजाइन में पोशाक बनाते है इमरान

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अलीगढ़

मेराज, आबिद नईम, इमरान और जावेद इन दिनों दिन-रात राधा कृष्ण की पोशाक तैयार करने में लगे हैं। वैसे तो इनका पोशाक बनाने का काम साल भर चलता है लेकिन जन्माष्टमी के करीब आते ही ऑर्डर पूरा करने के लिए अतिरिक्त कारीगर लगाने पड़ते हैं। पोशाक तैयार करने में दो से तीन दिन लग जाते हैं। इन मुस्लिम कारीगरों की बारीक कलाकारी कौमी एकता के धागे को मजबूती के साथ पिरोने का भी काम कर रही है।

महावीरगंज निवासी इमरान तीन पीढि़यों से लड्डू गोपाल की पोशाक तैयार करते आ रहे हैं। पूरे आनंद और उत्साह के साथ नई नई डिजाइन में पोशाक बनाते हैं। सर्दियों की अलग रहती है और गर्मियों की अलग। भगवान कृष्ण के मुकुट, बांसुरी, चूड़ी, कुंडल से लेकर उनकी साज सज्जा की सभी चीजें तैयार कर रहे हैं। इसी इलाके के रहने वाले आबिद नईम का कहना है कि हमारे खानदान में तो पचास साल से भी अधिक समय से राधा-कृष्ण की पोशाक तैयार करने का काम किया जा रहा है। हमारे दादा भी बनाते थे। जन्माष्टमी के करीब आते ही काम बढ़ जाता है। ऊपरकोट निवासी मेराज का कहना है कि अलीगढ़, हाथरस, मथुरा, आगरा, बुलंदशहर तक उनके यहां से दुकानदारों को पोशाक भेजी जाती है।

महावीरगंज के जावेद के अनुसार, पिछले करीब दो दशक से जिले भर के प्रमुख मंदिरों के अलावा मथुरा-वृंदावन, हाथरस, एटा, कासगंज, आगरा, मैनपुरी, फिरोजाबाद, बुलंदशहर, बदायूं आदि जनपदों के प्रमुख मंदिरों में देवी-देवताओं की आदमकद मूर्तियों की पोशाक बनाने का काम कर रहे हैं। जन्माष्टमी को लेकर इस बार भी काफी संख्या में आर्डर मिल चुके हैं। काम इतना अधिक है कि अब आर्डर लेना बंद कर दिया है। जन्माष्टमी से पहले तक काम पूरा करके देना भी है।

यहां से मिले हैं ऑर्डर
आगरा, बुलंदशहर, हाथरस, मेरठ, मुजफ्फरनगर, गाजियाबाद, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और मध्यप्रदेश के कई जिले हैं।

कान्हा की पोशाक एवं शृंगार सामग्री के रेट
कान्हा व राधा की सबसे छोटी पोशाक की न्यूनतम कीमत 30 रुपये की है, जबकि पांच हजार रुपये तक की पोशाक बेची जा रही हैं। कान्हा का मुकुट, पटका, राधा रानी का लहंगा, ओढ़नी, कुंडल, बेल्ट, चूड़ी, बांसुरी भी 20 रुपये से लेकर तीन हजार रुपये तक में हैं। इसमें कारीगरों की मजदूरी, लागत आदि शामिल हैं।

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