नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव से मुलाकात करके अमेरिका और पश्चिमी देशों को स्पष्ट संदेश दे दिया है कि रूस भारत का पुराना मित्र है और बदलती भू-राजनीतिक स्थितियों में भी इस दोस्ती में कहीं भी कमी नहीं आएगी। विदेश मामलों के जानकारों का कहना है कि रूस-यूक्रेन रुख पर संयुक्त राष्ट्र में भारत के तटस्थ रुख के बाद अमेरिका और पश्चिमी देशों की तरफ से भारत पर लगातार दबाव बनाने की कोशिश हो रही है कि वह रूस से तेल की खरीद को नहीं बढ़ाए। चूंकि यूरोपीय देशों द्वारा तेल की खरीद नहीं किए जाने के बाद रूस के पास तेल की उपलब्धता बढ़ेगी, इसलिए इसे वह भारत एवं चीन को बेच सकता है। लेकिन भारत ने इस दबाव की परवाह नहीं की है। इतना ही नहीं अमेरिका व्यापार के लिए डॉलर की जगह वैकल्पिक मुद्रा के इस्तेमाल के भी खिलाफ है। लेकिन रूस ने इसके इतर संकेत दिए हैं, जिन पर सहमत होना भारत के लिए मुश्किल नहीं होगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को रूसी विदेश मंत्री सर्गेई से करीब 40 मिनट तक बातचीत की। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि पिछले एक पखवाड़े में करीब आधा दर्जन देशों के विदेश मंत्री या वरिष्ठ अधिकारी भारत आए हैं। लेकिन पीएम ने उनमें से किसी से भी मुलाकात नहीं की। एक दिन पहले ही ब्रिटेन की विदेश मंत्री आई हुई थीं। इससे पूर्व चीन और मैक्सिको के विदेश मंत्री भी भारत का दौरा कर चुके हैं। अधिकारियों में अमेरिका, जर्मनी और नीदरलैंड के सुरक्षा सलाहकार या इसके समकक्ष भारत आए हैं, लेकिन प्रधानमंत्री से उनकी मुलाकात नहीं हुई।
रूस के विदेश मंत्री की भारत यात्रा के दौरान एक जो महत्वपूर्ण बात हुई है, उसमें भारत के उस सोच को बल मिला है कि रूस-यूक्रेन के बीच शांति स्थापना के प्रयासों के लिए वह कोई भी योगदान देने को तैयार है। बताया जाता है कि यह बात पीएम ने रूस के राष्ट्रपति पुतिन से भी बातचीत में कही थी और आज रूस के विदेश मंत्री के समक्ष फिर दोहराया। इस बैठक से कुछ घंटे पहले ही रूसी विदेश मंत्री एक सवाल के जवाब में यह कहकर हटे थे कि भारत मध्यस्थता करने में सक्षम हो सकता है। इसलिए दोनों पक्षों के बयानों को देखा जाए और आगे यूक्रेन भी इस पर सहमत हो तो इस विवाद को खत्म करने में भारत एक बड़ी भूमिका निभा सकता है।