नई दिल्ली। सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (Armed Forces Tribunal) ने वायुसेना के जवानों के लिए बड़ा फैसला सुनाया है, जिसके बाद अब वायुसेना के जवानों को यूपीएससी परीक्षाओं में शामिल होने और सिविल सेवा अधिकारी बनने से कोई नहीं रोक पाएगा। सैन्य अदालत ने भारतीय वायुसेना से यूपीएससी परीक्षा पास करने वाले जवान को नौकरी छोड़ने और सिविल सेवा अधिकारी के रूप में शामिल होने की अनुमति देने को कहा है।
आर्म्ड फोर्सेज ट्रिब्यूनल ने दिए आदेश
ऐसे मामले में जहां भारतीय वायु सेना के अधिकारी यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षाओं और राज्य स्तरीय सिविल सेवा परीक्षाओं को पास करने वाले जवानों को नौकरी छोड़ने और प्रथम श्रेणी के अधिकारी के रूप में शामिल होने की अनुमति नहीं दे रहे थे। उनको सशस्त्र बल न्यायाधिकरण ने भारतीय वायुसेना को दो हफ्ते के भीतर उन्हें छोड़ने और सिविल सेवा में शामिल होने के लिए कहा है।
मिलिट्री कोर्ट ने कही ये बात
जस्टिस राजेंद्र मेनन की अध्यक्षता में सशस्त्र बल न्यायाधिकरण की प्रधान पीठ ने भी भारतीय वायु सेना को बल के बाहर ग्रेड ए सेवा परीक्षा के लिए आवेदन करने के लिए वायु योद्धाओं को अनुमति देने के लिए अपने नियमों और शर्तों को बदलने के लिए कहा है। यह मामला कॉर्पोरल आयुष मौर्य और सार्जेंट कुलदीप विभूति ने अपने वकील अंकुर छिब्बर के माध्यम से दायर किया था, क्योंकि मौर्य ने 2021 के लिए यूपीएससी परीक्षा उत्तीर्ण की है, जबकि विभूति ने बिहार सरकार की राज्य स्तरीय परीक्षा उत्तीर्ण की है।
नहीं मिल रही थी एनओसी
याचिका में छिब्बर ने बताया कि उनके मुवक्किल ने कहा था कि उन्होंने अनुमति के लिए ऑनलाइन आवेदन करने की कोशिश की, लेकिन ऐसा नहीं कर सके क्योंकि केवल उन्हीं कर्मियों को अनुमति दी जाती है, जिनके पास कौशल ग्रेड में ‘ए’ श्रेणी है। हालांकि, उन्होंने अपनी परीक्षाएं दीं और उन्हें पास कर लिया और उन्हें पिछले साल दिसंबर में लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी में शामिल होना था। हालाकि, उन्होंने एक ऑफलाइन आवेदन दायर करने के बाद IAF द्वारा यह कहते हुए अनापत्ति प्रमाणपत्र (No Objection Certificate) नहीं दिया कि कॉर्पोरल ने नागरिक नौकरी के लिए पूर्व अनुमति नहीं मांगी थी।
अपनी दलीलों में वकील छिब्बर ने अदालत को बताया कि दिल्ली हाई कोर्ट ने पहले ही असैन्य क्षेत्र में नौकरियों के लिए कर्मियों को आवेदन करने की अनुमति देने के लिए कौशल ग्रेड ए की आवश्यकता को अनुचित मानते हुए रद्द कर दिया है, जिस पर सैन्य अदालत ने कहा कि वह दोनों दलीलों को सही मानते हुए प्रतिवादियों को आदेश देती है कि दो हफ्ते के भीतर दोनों आवेदकों को जरूरी एनओसी जारी कर दी जाए। साथ ही दोनों आवेदकों को जरूरी निर्वहन का आदेश भी दिया जाता है।