जगदलपुर। महान सूफी संत गौसे आजम के वंशज सैयद हाशिमुद्दीन अल गिलानी बगदाद से 2 दिन के बस्तर प्रवास पर पहुंचे हैं। जगदलपुर में उन्होंने कहा कि गौसे आजम महान सूफी संत थे। उन्हें पूरी दुनिया में सूफीवाद की एक बड़ी हस्ती के रूप में जानती है। आज उनके मानने वालों के बीच आकर उन्हें बहुत खुशी महसूस हुई। कहा कि उनकी पीढ़ी का यह पहला बस्तर दौरा है। जिस तरह से बस्तरवासियों ने उनका स्वागत किया इससे वे काफी खुश हैं। सभी बस्तरवासियों के सलामत की उन्होंने दुआ मांगी है।
सैयद हाशिमुद्दीन अल गिलानी से जब हिजाब को लेकर सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि हिजाब इस्लाम धर्म का एक जरूरी हिस्सा है। जैसे हर धर्म का अपना पहनावा होता है वैसे ही इस्लाम का भी अपना पहनावा है। इसमें कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। हिजाब पर राजनीति गलत बात है। हर किसी को अपने धर्म के मुताबिक चलने की आजादी है। हम आध्यात्मिक गुरु हैं और सभी के अमन चैन की दुआ मांगते हैं ताकि सब खुश रहें। उन्होंने कहा कि इंसानियत और धर्म एक साथ चल सकते है। दोनों को अलग और अपंग होने की जरूरत नहीं है।
सैयद हाशिमुद्दीन अल गिलानी ने कहा कि उनका भारत से एक हजार साल पुराना रिश्ता है। गुजरात के मर्चेंट्स इराक आते रहे हैं। उन्होंने सभी क्षेत्र वासियों को अमन चैन से रहने की अपील भी की है। सैयद हाशिमुद्दीन अल गिलानी शनिवार रात शहर के जमाल मील मैदान में जलसा कार्यक्रम में भी शामिल हुए। धर्म-गुरु को सुनने के लिए हजारों की संख्या में लोगों की भीड़ इकठ्ठा हुई है। बस्तर ही नहीं बल्कि पूरे देश के कोने-कोने से बड़ी संख्या में मुस्लिम समाज के लोग जगदलपुर पहुंचे हैं।
मानवता और भाईचारे के लिए जानती है दुनिया
गौसे आजम को मानवता और भाईचारे के पैगाम के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है। गरीब और भूखों को खाना खिलाना और बेसहारों की मदद करना जैसे बातें इनकी मुख्य सीख में से एक है। पूरी दुनिया में मुस्लिम समाज 11वीं के नाम से गौसे आजम का लंगर चलाया जाता है। विभिन्न धर्मों के बीच भाईचारे का पैगाम लेकर गौसे आजम के वंशज इस्लामिक धर्मगुरु बस्तर आए हैं।