लखनऊ। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के आखिरी चरण के मतदान में दोनों प्रमुख प्रतिद्वंदी दलों भाजपा और सपा के साथ उनके सहयोगी दलों की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी हुई है। यहां पर भाजपा के सहयोगी अपना दल और निषाद पार्टी की अग्नि परीक्षा होनी है। वहीं, सपा के सहयोगी दलों से सुभासपा और जनवादी पार्टी की ताकत भी सबसे ज्यादा यहीं पर मानी जाती है। आजमगढ़ तो सपा का बड़ा गढ़ है, जहां पिछली बार भाजपा 10 सीटों में से केवल एक सीट ही जीत पाई थी।
उत्तर प्रदेश में अब तक छह चरणों में 349 विधानसभा सीटों के लिए मतदान का काम पूरा हो चुका है। अब आखरी सातवें चरण में पूर्वांचल के आजमगढ़ से वाराणसी तक के नौ जिलों की 54 विधानसभा सीटों पर सात मार्च को मतदान होना है। इन जिलों में मऊ, गाजीपुर, जौनपुर, मिर्जापुर, भदोही, चंदौली और सोनभद्र भी शामिल हैं। खास बात यह है कि इस चरण में भाजपा और सपा के साथ-साथ उनके सहयोगी दलों की भी परीक्षा होनी है। आजमगढ़ और जौनपुर जिले को सपा का गढ़ माना जाता है तो मऊ और गाजीपुर में उसके सहयोगी सुभासपा के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर और जनवादी पार्टी के प्रमुख संजय चौहान का असर है। बाकी जिलों में भाजपा और उसके सहयोगी अपना दल की अनुप्रिया पटेल व निषाद पार्टी के संजय निषाद का प्रभाव माना जाता है।
वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में इन 54 सीटों में से भाजपा और उसके सहयोगियों ने 36 सीटें जीती थीं, जिनमें भाजपा को 29, अपना दल को चार और सुभासपा को तीन सीटें मिली थी। तब सुभासपा नेता ओमप्रकाश राजभर भाजपा के साथ थे, जो अब इस चुनाव में सपा के साथ चले गए हैं। वहीं, सपा ने 11, बसपा ने छह और निषाद पार्टी ने एक सीट जीती थी। जबकि, कांग्रेस यहां खाता भी नहीं खोल सकी थी।
आजमगढ़ में भाजपा को चुनौती
मतदान के आखिरी चरण में आजमगढ़ ही ऐसा जिला है, जहां भाजपा कमजोर मानी जाती है। यहीं से सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव सांसद हैं। पिछले चुनाव में आजमगढ़ की 10 सीटों में से भाजपा को केवल एक सीट मिली थी। जबकि, सपा को पांच और बसपा को चार सीटों पर जीत मिली थी। इसके अलावा जौनपुर जिले में भी भाजपा को अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाई थी। यहां की नौ सीटों में से भाजपा को चार सीटें ही मिल पाई थीं। जबकि, सपा को तीन, बसपा को एक और अपना दल को भी एक सीट मिली थी। गाजीपुर की सात सीटों में भी भाजपा को तीन ही सीटें मिली थी। हालांकि, वाराणसी की आठ सीटों में सभी भाजपा और उसके सहयोगी दलों को मिली थी, जिनमें भाजपा की अपनी छह सीटें शामिल थीं। अन्य जिलों में भी भाजपा अपने विरोधी दलों पर भारी पड़ी थी।