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पुरानी पेंशन योजना को राज्य में लागू करने की मांग संघ ने फिर दोहराई

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रायपुर। छत्तीसगढ़ प्रदेश तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी संघ ने राज्य में पुरानी पेंशन योजना को फिर से लागू किये जाने की अपनी मांग को दोहराई है। संघ ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मांग की है कि पश्चिम बंगाल,झारखंड और राजस्थान में वहां कि राज्य सरकारों ने कर्मचारियों के हित में पुरानी पेंशन योजना को लागू किया हुआ है। संघ ने कहा है कि इस योजना के लागु किये जाने से राज्य सरकार पर किसी भी प्रकार को कोई अतिरिक्त आर्थिक भार नहीं पड़ेगा। बल्कि कर्मचारियों का भविष्य अंधकारमय होने से बच जायेगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से बारंबार मांग करने के बाद भी देश में पेंशन योजना को लेकर भेंदभाव की नीति प्रभावशील है।
संघ के प्रांतीय अध्यक्ष विजय कुमार झा एवं जिला शाखा अध्यक्ष इदरीश खॉन ने बताया है कि 2004 के बाद नियुक्त प्रदेश के शासकीय सेवकों के वेतन से मूल वेतन व मंहगाई भत्ता पर 14 प्रतिशत् अंशदान सरकार को देना पड़ रहा है। दूसरी तरफ पुरानी पेंशन वाले शासकीय सेवक जो 2004 के पूर्व नियुक्त हुए है वे अपने मूल वेतन व मंहगाई भत्ता पर 12 प्रतिशत् कटौती कर भविष्य निधि खाते में जमा कर रहे है। इस प्रकार नवीन अशदायी पेंशन योजना में सरकार को नगद जमा करना पड़ रहा है, पुरानी पेंशन योजना में शासन के खजाने में कर्मचारी जमा करेगें। इसके अतिरिक्त 2004 के बाद पेंशन लागू करने पर आगामी 20-30 वर्षो तक सरकार को पेंशन नहीं देना है, बल्कि भविष्य निधि खाते में कर्मचारियों से राशि जमा कराना है। कर्मचारियों व उनके परिजनों के वृद्वावस्था में बुढ़ापे का सहारा पेंशन है। अभी एक 2004 के बाद नियुक्त डिप्टी कलेक्टर के मूल वेतन 56000/- व उस पर 17 प्रतिशत् मंहगाई भत्ता 9520/-रू. इस राशि पर सरकार को 14 प्रतिशत् अंशदान देना पड़ रहा है, जो लगभग8-9 हजार रुपए होता है। इस गणना के आधार पर प्रदेश सरकार को प्रतिमाह लाखों शासकीय सेवकों को अंशदान देना पड़ रहा है। इससे जो राशि बचेगी उससे सरकार कर्मचारियों को लंबित 14 प्रतिशत् मंहगाई भत्ता तथा केन्द्रीय कर्मचारियों के समान 20 प्रतिशत् 7 वें वेतनमान् में गृहभाड़ा भत्ता प्रदान कर सकती है। चूंकि हमारे प्रदेश के मुखियां केन्द्र सरकार के प्रत्येक गलत नीतियों का विरोध करती है।