कीव। यूक्रेन के दूसरे सबसे बड़े शहर खारकीव में रूसी सेना के हमले में एक भारतीय छात्र की मौत हो गई है। अंदेशा जताया जा रहा है कि इस शहर में मौजूद दूसरे भारतीय छात्र भी अब गंभीर संकट में फंस चुके हैं। खारकीव में रहने वाले विदेशी छात्र खाने-पीने के लिए स्थानीय होटल, रेस्टोरेंट्स और मेस पर निर्भर थे। ऐसे में इन लोगों के पास न तो खाना बचा है और न ही पानी। शहर के अंदर की सड़कों पर लड़ाई छिड़ने के कारण लोग घरों से बाहर तक नहीं निकल पा रहे हैं। शहर के अंदर हालात इतने खराब हैं कि स्थानीय प्रशासन ने विदेशी छात्रों को निकालने को लेकर हाथ खड़े कर दिए हैं। इस कारण न सिर्फ भारत, बल्कि, पाकिस्तान और चीन के छात्र भी खारकीव में फंस गए हैं।
खारकीव के छात्रों की मदद क्यों नहीं कर पा रहे दूतावास
खारकीव रूसी सीमा के बिलकुल पास स्थित है। इस शहर के बिलकुल नजदीक रूस के सबसे बड़े मिलिट्री बेस में से एक बेलगोरोद स्थित है। ऐसे में रूसी सेना ने खारकीव शहर की भीषण घेराबंदी की हुई है। अगर किसी विदेशी को खारकीव से बाहर निकलना हो तो उसे पूरे यूक्रेन को पार कर रोमानिया, हंगरी, स्लोवाकिया या पोलैंड की सीमा तक जाना पड़ेगा। इसके बाद ही संबंधित देश अपने नागरिकों की मदद कर पाएगा। वर्तमान हालात के कारण न सिर्फ विदेशी बल्कि यूक्रेनियन नागरिक भी अपने देश को छोड़कर दूसरे यूरोपीय देशों का रुख कर रहे हैं। इस कारण सभी बॉर्डर पोस्ट पर लोगों की लंबी लंबी लाइनें लगी हुई हैं।
भारतीय दूतावास लगातार जारी कर रहा था अलर्ट
यूक्रेन में मौजूद भारतीय दूतावास शुरुआती दिनों से ही लगातार हालात पर नजर बनाए हुए था। इसी कारण दूतावास ने पिछले एक महीने में कई बार एडवाइजरी जारी कर भारतीय नागरिकों को तुरंत यूक्रेन छोड़ने की सलाह भी दी थी। इन एडवाइजरियों में किराया बढ़ने और फ्लाइट की कमी का हवाला भी दिया गया था। इसके बावजूद यूक्रेन में भारतीयों की संख्या इतनी ज्यादा थी कि वे बेहद कम समय में यूक्रेन से बाहर नहीं निकल पाए। रूस के यूक्रेन पर हमला करने के बावजूद कीव में मौजूद भारतीय दूतावास ने हर संभव अपने देश के नागरिकों की मदद की। भारतीय विदेश मंत्रालय ने हेल्पलाइन नंबर जारी किया, ग्राउंड पर अधिकारियों ने मोर्चा संभाला। यही कारण है कि अभी तक 1 हजार से ज्यादा छात्रों को यूक्रेन से निकाला जा चुका है।
अब कैसे की जाएगी फंसे छात्रों की मदद
विदेशी जमीन पर युद्ध के बीच मदद पहुंचाना किसी भी देश के लिए आसान बात नहीं होती है। वो भी तब, जब स्थानीय सरकार अपने से कहीं ताकतवर दुश्मन के हमले का सामना कर रही हो। ऐसे में माना यही जा रहा है कि खारकीव में भारतीय छात्रों तक मदद तभी पहुंच सकती है, जब युद्ध थमे या हमले की रफ्तार कम हो। इसके बावजूद खारकीव के हालात पर भारत की नजर बनी हुई है।