कुशीनगर। यूपी का चुनाव निर्णायक पड़ाव की ओर चल पड़ा है। गोरखपुर मंडल इस लिहाज से बेहद अहम है। यहां पूरब में बुद्ध हैं तो पश्चिम की ओर बाबा गोरखनाथ। किसी जमाने में पड़ोसी जिले से अटल बिहारी वाजपेयी भी ताल ठोक चुके हैं। इस क्षेत्र में वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का रसूख लंबे अर्से से कायम है। कुशीनगर। अपनी महा-परिनिर्वाण स्थली में तथागत लेटे हैं। साथ चल रहे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के कर्मी बताते हैं- ‘यह बुद्ध की अपनी तरह की अकेली प्रतिमा है। इसकी लंबाई 21 फीट है। जब खुदाई में मिली थी, तब इसके तीन टुकड़े थे। समुचित मरम्मत के बाद उसे यहां स्थापित किया गया। पैर पर चक्र का निशान देखिए, वे चक्रवर्ती सम्राट थे। यहां से उनके चेहरे की ओर देखिए। लगता है, बुद्ध चिंतन कर रहे हैं।’ इसके बाद मुझे उनके सिरहाने पर खड़ा कर कहता है कि अब चेहरा देखिए, वे मुस्कुरा रहे हैं।
कौन कहता है कि प्रतिमाएं बोलती नहीं हैं?
मंदिर के एक कोने में पीतवर्णी कषाय धारण किये साधु ध्यानमग्न बैठा है। मंदिर के कोलाहल और सांसारिक मायाजाल से परे, वह वैचारिक शून्य में पहुंच चुका है। मैं दूसरा कोना पकड़ लेता हूं। आंखें बंद कर जातक कथाओं को याद करता हूं कि कपिल मुनि ने जन-जागृति के लिए कैसे काम किए। इसी बीच पैर की उंगलियों में कोई कपड़ा फंसने की अनुभूति होती है। एक बुर्कानशीं के बुर्के का किनारा अंगूठे में अड़ता हुआ आगे निकल गया था। आंखें खुल जाती हैं और मैं अपनी दुनिया में लौट आता हूं।
कुछ मिनट बाद पाता हूं, मंदिर की सीढ़ियों पर दो बुर्काधारी महिलाएं तीन छोटे बच्चों और अपने-अपने पतियों के साथ फोटो खिंचवाने में मशगूल हैं। इन्हीं में से किसी एक ने मेरा ध्यान भंग किया होगा। रुककर उनमें से एक शख्स से पूछता हूं कि आप मंदिरों में जाते हैं? ‘हां, क्यों नहीं? हम तो हिन्दू मंदिरों में भी जाते हैं, बस पूजा नहीं करते’ -सीधा जवाब मिलता है।
मेरा अगला सवाल था कि आप ऐसा क्यों करते हैं? उनका जवाब था कि बच्चों को तो बताना है कि हमारा हिन्दुस्तान कैसा है। यहां भी बच्चों को दिखाया और समझाया है। मैं अभिभूत हो उठता हूं। हिन्दुस्तान का मर्म रिसालों और पढ़े-लिखों के साथ रसचर्चा में देखने को नहीं मिलता। उसके लिए ‘इंडिया’ से ‘भारत’ आना ही पड़ता है।