रांची.
वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने झारखंड हाईकोर्ट में पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की ओर से दलीलें रखी। सोरेन को जमानत देने की मांग करते हुए सिब्बल ने कहा कि झामुमो नेता को ईडी ने झूठा फंसाया है। सिब्बल ने दलील दी कि सोरेन पर रांची के बार्गेन क्षेत्र में 8.86 एकड़ के भूखंड पर कब्जा करने का गलत आरोप लगाया गया है। यह कृत्य मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम के तहत अपराध नहीं बनता है, जिसके लिए सोरेन को हिरासत में लिया गया है।
सिब्बल ने जवाब दिया कि जमीन के मालिकों ने तब कोई शिकायत नहीं की जब उनकी जमीन कथित तौर पर ली गई। इन लोगों ने ना ही अधिकारियों से संपर्क किया। जबरन बेदखली की यह घटना 2009-10 में घटित हुई बताई जाती है, लेकिन रिपोर्ट 2023 में ही तैयार की गई। यदि सोरेन के खिलाफ सभी आरोप सही भी हों, तो भी यह जबरन बेदखली का दीवानी केस है ना कि आपराधिक मामला। सिब्बल ने दावा किया कि आपराधिक मामला सोरेन को सलाखों के पीछे रखने के गुप्त उद्देश्य से प्रेरित था। ईडी ने सबूतों के साथ छेड़छाड़ की और सोरेन को फंसाने के लिए झूठे दस्तावेज तैयार किए। बता दें कि हेमंत सोरेन ने 27 मई को हाईकोर्ट में जमानत के लिए एक याचिका दायर की थी। ईडी इस मामले में सुनवाई की अगली तारीख 12 जून को जवाब देगी। सोरेन को कथित भूमि घोटाले से जुड़े धन शोधन मामले में ईडी ने 31 जनवरी को गिरफ्तार किया था। उन्होंने हाईकोर्ट से शीघ्र सुनवाई का अनुरोध किया है। सिब्बल ने दलील दी कि सोरेन पर रांची के बार्गेन क्षेत्र में 8.86 एकड़ के भूखंड पर कब्जा करने का गलत आरोप लगाया गया है और यह कृत्य धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत अपराध नहीं बनता है, जिसके लिए सोरेन को हिरासत में लिया गया है। ईडी ने आरोप लगाया है कि भूमि दस्तावेजों में फेरबदल किया गया और सोरेन ने मूल भूस्वामियों को जबरन बेदखल कर दिया। मूल भूस्वामी राज कुमार पाहन ने पहले ही भूमि को अपने नाम पर बहाल करने के लिए आवेदन कर दिया है, जिस पर कार्रवाई की जा रही है। नवनिर्वाचित गांडेय विधायक और सोरेन की पत्नी कल्पना भी बहस के दौरान अदालत में मौजूद थीं। शाम चार बजे शुरू हुई सुनवाई शाम छह बजे तक चली।
हाईकोर्ट ने ईडी को मामले पर जवाब देने का निर्देश दिया। कोर्ट ने 12 जून के लिए अगली सुनवाई तय की। 28 मई को हाईकोर्ट ने ईडी को सोरेन की जमानत याचिका पर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था। न्यायमूर्ति रोंगोन मुखोपाध्याय की पीठ के समक्ष पेश हुए सिब्बल ने पहले दलील दी थी कि झामुमो नेता राजनीतिक साजिश का शिकार हैं और उन्हें बिना सबूत के फंसाया गया है। सोरेन को 22 मई को सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं मिली थी।