नई दिल्ली। यूक्रेन-रूस के संकट को लेकर भारत की भूमिका काफी अहम मानी जा रही है. एक तरफ, यूक्रेन, अमेरिका और पश्चिमी देश भारत से यूक्रेन पर रूस के हमले की निंदा करने का दबाव डाल रहे हैं तो दूसरी तरफ रूस ने भी भारत का साथ मिलने की उम्मीद जाहिर की है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में शुक्रवार को यूक्रेन पर रूस के हमले की आलोचना करने वाला एक प्रस्ताव पेश किया जाने वाला है. समाचार एजेंसी के मुताबिक, रूस के शीर्ष राजनयिक रोमन बाबुश्किन ने कहा है कि रूस को उम्मीद है कि भारत इस बैठक में रूस का समर्थन करेगा.
अमेरिका और उसके सहयोगियों की ओर से लाए जाने वाले प्रस्ताव के मसौदे में यूक्रेन पर रूस की सैन्य कार्रवाई की आलोचना की जाएगी. हालांकि, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में इस प्रस्ताव का पास होना मुश्किल है क्योंकि परिषद के स्थायी सदस्य रूस के पास वीटो पावर है. शीर्ष राजनयिकों ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा है कि प्रस्ताव को करीब 11 देशों का समर्थन मिल सकता है.
भारत में रूस के सबसे शीर्ष राजनयिक बाबुश्किन ने प्रस्ताव को लेकर कहा, हमें उम्मीद है कि रूस को भारतीय साझेदारों का समर्थन मिलेगा.
प्रस्ताव के मसौदे के जरिए यूक्रेन की क्षेत्रीय संप्रभुता, स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखंडता को लेकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद अपनी प्रतिबद्धता को दोहराएगा. इसके साथ ही, रूस से यूक्रेन से सैन्य बलों की तत्काल और बिना शर्त के वापसी की मांग की जाएगी.
भारत के विदेश सचिव हर्ष श्रृंगला ने गुरुवार को मीडिया ब्रीफिंग में कहा कि भारत प्रस्ताव के अंतिम रूप लेने के बाद ही कोई फैसला करेगा. उन्होंने कहा कि भारत ने अभी प्रस्ताव का ड्राफ्ट देखा है लेकिन उसमें अभी कई बदलाव होने की संभावना है.
भारत का संतुलित रुख
भारत अभी तक यूक्रेन में रूस की सैन्य कार्रवाई की आलोचना करने से बचता रहा है. चाहे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक हो या फिर यूक्रेन में रह रहे भारतीयों के लिए जारी की गई एडवाइजरी, भारत ने रूस का जिक्र नहीं किया है. भारत ने सभी पक्षों के वैध हितों का ध्यान रखे जाने की बात कही है.
भारत ने संयुक्त राष्ट्र में अपने बयान में कहा कि ये अफसोस की बात है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय की यूक्रेन-रूस संकट मुद्दे का कूटनीतिक समाधान निकालने की कोशिशों के लिए थोड़ा और वक्त दिए जाने की मांग को नहीं सुना गया. हालांकि, यहां भी भारत ने किसी देश का नाम नहीं लिया.
भारत के बयानों को अमेरिका और रूस के साथ अपने रिश्तों में संतुलन साधने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है. हालांकि, अमेरिका समेत कई पश्चिमी देश भारत पर दबाव बना रहे हैं कि वह साफ शब्दों में रूस की सैन्य कार्रवाई की आलोचना करे.
अमेरिकी प्रतिबंधों का भारत पर असर
रूस के राजनयिक बाबुश्किन ने कहा, व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से फोन पर बातचीत की है. उन्होंने कहा, हमें पूरा विश्वास है कि हमारे भारतीय साझेदार अपने ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की वजह से हालात को अच्छी तरह से समझते हैं. हमें ये भी यकीन है कि भारत रूस के नेतृत्व के फैसले को समझता है.
रूस के राजनयिक ने कहा कि भारत और रूस के बीच तमाम क्षेत्रों में जारी सहयोग अमेरिकी प्रतिबंधों की वजह से प्रभावित नहीं होगा।
बाबुश्किन ने कहा, ‘रूस और भारत ऐसे एकतरफा प्रतिबंधों को मान्यता नहीं देते हैं जो यूएन चार्टर और अंतरराष्ट्रीय नियमों के खिलाफ हैं. पश्चिमी देश दुनिया को एकध्रुवीय बनाए रखने के लिए और दूसरे देशों पर दबाव डालने के लिए प्रतिबंधों का सहारा लेते हैं. ये केवल कल की बात नहीं है, रूस सालों से इसका सामना करता आया है. रूस की व्यवस्था इतनी मजबूत है कि वह इन प्रतिबंधों से निपट सकती है. इससे भारत के साथ रक्षा समेत तमाम क्षेत्रों में जारी सहयोग पर कोई असर नहीं पड़ेगा. हमने अपनी परियोजनाओं के लिए दूसरे रास्तों का इस्तेमाल करना सीख लिया है।
रूस को यूएनएससी में भारत से समर्थन की उम्मीद – रूसी राजनयिक
नई दिल्ली। यूक्रेन-रूस के संकट को लेकर भारत की भूमिका काफी अहम मानी जा रही है. एक तरफ, यूक्रेन, अमेरिका और पश्चिमी देश भारत से यूक्रेन पर रूस के हमले की निंदा करने का दबाव डाल रहे हैं तो दूसरी तरफ रूस ने भी भारत का साथ मिलने की उम्मीद जाहिर की है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में शुक्रवार को यूक्रेन पर रूस के हमले की आलोचना करने वाला एक प्रस्ताव पेश किया जाने वाला है. समाचार एजेंसी के मुताबिक, रूस के शीर्ष राजनयिक रोमन बाबुश्किन ने कहा है कि रूस को उम्मीद है कि भारत इस बैठक में रूस का समर्थन करेगा.
अमेरिका और उसके सहयोगियों की ओर से लाए जाने वाले प्रस्ताव के मसौदे में यूक्रेन पर रूस की सैन्य कार्रवाई की आलोचना की जाएगी. हालांकि, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में इस प्रस्ताव का पास होना मुश्किल है क्योंकि परिषद के स्थायी सदस्य रूस के पास वीटो पावर है. शीर्ष राजनयिकों ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा है कि प्रस्ताव को करीब 11 देशों का समर्थन मिल सकता है.
भारत में रूस के सबसे शीर्ष राजनयिक बाबुश्किन ने प्रस्ताव को लेकर कहा, हमें उम्मीद है कि रूस को भारतीय साझेदारों का समर्थन मिलेगा.
प्रस्ताव के मसौदे के जरिए यूक्रेन की क्षेत्रीय संप्रभुता, स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखंडता को लेकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद अपनी प्रतिबद्धता को दोहराएगा. इसके साथ ही, रूस से यूक्रेन से सैन्य बलों की तत्काल और बिना शर्त के वापसी की मांग की जाएगी.
भारत के विदेश सचिव हर्ष श्रृंगला ने गुरुवार को मीडिया ब्रीफिंग में कहा कि भारत प्रस्ताव के अंतिम रूप लेने के बाद ही कोई फैसला करेगा. उन्होंने कहा कि भारत ने अभी प्रस्ताव का ड्राफ्ट देखा है लेकिन उसमें अभी कई बदलाव होने की संभावना है.
भारत का संतुलित रुख
भारत अभी तक यूक्रेन में रूस की सैन्य कार्रवाई की आलोचना करने से बचता रहा है. चाहे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक हो या फिर यूक्रेन में रह रहे भारतीयों के लिए जारी की गई एडवाइजरी, भारत ने रूस का जिक्र नहीं किया है. भारत ने सभी पक्षों के वैध हितों का ध्यान रखे जाने की बात कही है.
भारत ने संयुक्त राष्ट्र में अपने बयान में कहा कि ये अफसोस की बात है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय की यूक्रेन-रूस संकट मुद्दे का कूटनीतिक समाधान निकालने की कोशिशों के लिए थोड़ा और वक्त दिए जाने की मांग को नहीं सुना गया. हालांकि, यहां भी भारत ने किसी देश का नाम नहीं लिया.
भारत के बयानों को अमेरिका और रूस के साथ अपने रिश्तों में संतुलन साधने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है. हालांकि, अमेरिका समेत कई पश्चिमी देश भारत पर दबाव बना रहे हैं कि वह साफ शब्दों में रूस की सैन्य कार्रवाई की आलोचना करे.
अमेरिकी प्रतिबंधों का भारत पर असर
रूस के राजनयिक बाबुश्किन ने कहा, व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से फोन पर बातचीत की है. उन्होंने कहा, हमें पूरा विश्वास है कि हमारे भारतीय साझेदार अपने ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की वजह से हालात को अच्छी तरह से समझते हैं. हमें ये भी यकीन है कि भारत रूस के नेतृत्व के फैसले को समझता है.
रूस के राजनयिक ने कहा कि भारत और रूस के बीच तमाम क्षेत्रों में जारी सहयोग अमेरिकी प्रतिबंधों की वजह से प्रभावित नहीं होगा।
बाबुश्किन ने कहा, ‘रूस और भारत ऐसे एकतरफा प्रतिबंधों को मान्यता नहीं देते हैं जो यूएन चार्टर और अंतरराष्ट्रीय नियमों के खिलाफ हैं. पश्चिमी देश दुनिया को एकध्रुवीय बनाए रखने के लिए और दूसरे देशों पर दबाव डालने के लिए प्रतिबंधों का सहारा लेते हैं. ये केवल कल की बात नहीं है, रूस सालों से इसका सामना करता आया है. रूस की व्यवस्था इतनी मजबूत है कि वह इन प्रतिबंधों से निपट सकती है. इससे भारत के साथ रक्षा समेत तमाम क्षेत्रों में जारी सहयोग पर कोई असर नहीं पड़ेगा. हमने अपनी परियोजनाओं के लिए दूसरे रास्तों का इस्तेमाल करना सीख लिया है।