नई दिल्ली
राजधानी दिल्ली में अक्सर अपनी मांगों को लेकर कई तरह के संगठन धरना प्रदर्शन करते हैं. अपनी बात सरकार तक पहुंचाते हैं. कई बार विरोध में भी प्रदर्शन किए जाते हैं. दिल्ली में इस तरह के धरना प्रदर्शन यूं तो आम बात हैं. लेकिन रविवार को जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम के बाहर एक ऐसा प्रदर्शन हुआ, जिसने सबका ध्यान अपनी तरफ खींचा. खासकर प्रदर्शनकारियों के नारों और तख्तियों ने. दरअसल, ये प्रदर्शन किसी सियासी संगठन या पार्टी का नहीं था, बल्कि ये था पत्नियों से पीड़ित पतियों का प्रदर्शन. ये लोग मैरिटल रेप को लेकर प्रस्तावित कानून का विरोध कर रहे थे.
– शादी के खेल में, हर पति जाएगा जेल में.
– बीवी करे तो प्यार, पति करे तो बलात्कार.
– पत्नी के प्यार में, पति गया तिहाड़ में.
– अगले जन्म मोहे बेटा ना कीजो.
..और ना जाने ऐसे ही कितने नारे रविवार को दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम के बाहर गेट पर प्रदर्शन कर रहे करीब 75 लोग लगा रहे थे. ये नारे लिखी तख्तियां भी उनके हाथों में थीं. स्टेडियम के बाहर प्रदर्शन करने वाले वो लोग थे, जो किसी ना किसी हाल में अपनी पत्नियों से पीड़ित हैं. उनके उत्पीड़न का शिकार बनें हैं या फिर उनकी ब्लैकमेलिंग का. इन लोगों में कुछ लोग तो ऐसे थे, जो कई साल से अपने बच्चों से भी नहीं मिले हैं. क्योंकि उनकी पत्नियों नें उन्हें घर से बाहर निकाल दिया है. और कुछ बच्चों को उनके पिता से भी मिलने की इजाजत नहीं देती हैं. कुछ पति ऐसे हैं, कि वो अपना घर होते हुए भी किराए के मकानों में रहते हैं.
दरअसल, ये सारे पत्नी पीड़ित प्रदर्शनकारी मैरिटल रेप को लेकर प्रस्तावित कानून का विरोध करने के लिए वहां जमा हुए थे. ये सभी अपने नारों और तख्तियों की वजह से लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींच रहे थे. दिल्ली हाई कोर्ट के अधिवक्ता मनीष सिंधवानी इस प्रोटेस्ट का नेतृत्व कर रहे थे. वह खुद पत्नी पीड़ित रह चुके हैं. उन्होंने खुद शिकार बनने के बाद ऐसे लोगों की मदद करने का फैसला किया था, जो पत्नी से पीड़ित हैं. इसी के चलते उन्होंने न्याय प्रयास फॉउन्डेशन का आगाज किया.
प्रदर्शन के दौरान अधिवक्ता मनीष सिंधवानी ने कहा कि अगर ये कानून पास हो गया तो हर घर में रहने वाले पुरुषों को रेपिस्ट बता कर जेल भेजा जा सकता है. मामूली झगड़े पर भी पत्नी पति को जेल भिजवा सकती है. पति को ब्लैकमेल किया जा सकता है. सहमति से संबंध की बात बात कही जाती है, लेकिन सवाल ये है कि सहमति कौन तय करेगा? रात की सहमति अगले दिन किसी भी विवाद या झगड़े के बाद बदली जा सकती है.
मनीष सिंधवानी का कहना था कि पहले से ही महिलाओं की सुरक्षा के नाम पर बने कानूनों का जमकर दुरुपयोग होता आया है. चाहे घरेलू हिंसा हो या दहेज उत्पीड़न या फिर यौन हिंसा. अधिकांश मामलों में महिलाएं इन कानून के नाम पर पति का उत्पीड़न करती आई हैं. ऐसे मे अगर ये नया कानून भी पास हो गया तो महिलाओं को पुरुषों के खिलाफ मिसयूज करने के लिए एक और कानून मिल जाएगा.
एक प्रर्दशनकारी सुमित सिन्हा का कहना था कि अगर पुरुषों के खिलाफ एक तरफा ऐसे ही कानून बनते रहे, तो आने वाले वक्त में युवा शादी के नाम से भी कतराने लगेंगे और शादी जैसी संस्था भी बदनाम हो जाएगी. सुमित का दावा है कि पत्नी के कारण वो पिछले तीन साल से अपनी 6 साल की बेटी से मिल नहीं पाए हैं.
न्याय प्रयास फॉउन्डेशन पीड़ित पतियों की कानूनी सहायता के लिए काम कर रही है. जिसमें बहुत से ऐसे पीड़ित पति भी आए हैं, जो खुद हिंसा और ब्लैकमेलिंग का शिकार हैं. जिनसे उनकी पत्नियां लगातार पैसे की मांग करती हैं. पैसा नहीं देने पर वे अपने पति और उनके माता-पिता के खिलाफ झूठे मुकदमें दर्ज कराती रहती हैं. कई मामलों में तो ऐसा भी देखा गया है कि पति को घर से बाहर निकाल कर उनकी संपत्ति पर भी कब्जा कर लिया गया.
आपको बता दें कि मैरिटल रेप को लेकर कानून अभी तक नहीं बना है और इस पर भारत के सर्वोच्च न्यायालय में विचार-विमर्श चल रहा है. जिस पर अगली सुनवाई 22 अक्टूबर को होनी है. न्याय प्रयास फाउंडेशन इस कानून को पारित न किए जाने की मांग कर रही है. और लगातार इस कानून का विरोध कर रही है. संस्था का मानना है कि इस कानून सबसे अधिक दुरुपयोग होगा और विवाह संस्था विफल हो जाएगी.