नई दिल्ली
वजूद में आने के एक दशक के भीतर ही राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा। नेताओं, कार्यकर्ताओं और समर्थकों का चरम पर उत्साह। इसी बीच पार्टी मुखिया के गृह राज्य में चुनाव। चुनाव से ठीक पहले पार्टी सुप्रीमो का जेल से बाहर आना। लोकलुभावन वादों की झड़ी। उम्मीदों का पंख लगना, लेकिन नतीजे आए बिल्कुल उलट। अबतक तो आप समझ ही गए होंगे कि यहां बात हो रही है हरियाणा विधानसभा चुनाव और आम आदमी पार्टी की। दिल्ली एक्साइज पॉलिसी केस में जेल में बंद अरविंद केजरीवाल अपने गृह राज्य हरियाणा में वोटिंग से कुछ दिन पहले ही जेल से बाहर आए तो पार्टी को उम्मीदें थीं कि इस बार न सिर्फ खाता खोलेगी बल्कि किंगमेकर बनेगी। लेकिन ऐसा हो न सका। पार्टी 2 प्रतिशत वोट शेयर के आंकड़े तक को नहीं छूती दिख रही।
आम आदमी पार्टी हरियाणा को एक ऐसे राज्य के तौर पर देखती आई है जहां उसके लिए मौका हो सकता है। एक तो ये दिल्ली और पंजाब से सटा हुआ है जहां आम आदमी पार्टी की सरकारें हैं, और दूसरा ये कि हरियाणा आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल का गृह राज्य है। AAP इसी आत्मविश्वास के साथ कांग्रेस के साथ चुनाव पूर्व समझौते की कोशिश की लेकिन सीट शेयरिंग पर बात फंस गई।
आम आदमी पार्टी ने भी ज्यादा इंतजार नहीं किया और अपने उम्मीदवारों की लिस्ट जारी करना शुरू कर दिया। हरियाणा की 90 में से 89 सीटों पर चुनाव लड़ी लेकिन इस बार भी खाता नहीं खोल पाई। पार्टी के लिए संतोष की बात सिर्फ ये हो सकती है कि हरियाणा में पिछली बार आम आदमी पार्टी NOTA तक से कम वोट हासिल कर पाई थी लेकिन इस बार NOTA से ज्यादा वोट मिलते दिख रहे हैं।
हरियाणा में आम आदमी पार्टी का वोट शेयर डेढ़ प्रतिशत के आस-पास दिख रहा है। चुनाव के दौरान अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया जैसे आम आदमी पार्टी के दिग्गजों ने हरियाणा में अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। धुआंधार रोड शो और चुनावी रैलियां हुईं लेकिन पार्टी खाता तक खोलने में नाकाम दिख रही है। वैसे तो काउंटिंग अभी चल ही रही है लेकिन गिनती पूरी होने के बाद सभी सीटों पर आम आदमी पार्टी की अगर जमानत जब्त होती है तो इसमें ताज्जुब जैसी कोई बात नहीं होगी।
इस पर 89 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली आम आदमी पार्टी ने 2019 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में 46 सीटों पर ताल ठोकी थी। तब भी पार्टी खाता खोलने में नाकाम रही थी, अब भी खाता खोलती नहीं दिख रही।