नई दिल्ली.
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि वकीलों की 'खराब सेवा' के लिए उपभोक्ता अदालत में केस नहीं चलाया जा सकता है। वकील उपभोक्ता संरक्षण कानून के दायरे में नहीं आते हैं। जस्टिस बेला एम त्रवेदी और जस्टिस पंकज मित्तल की बेंच ने कहा कि फीस देकर कोई भी काम करवाने को कंज्यूमर प्रोटेक्शन ऐक्ट की 'सेवा' के दायरे में नहीं रखा जा सकता। अदालत ने कहा कि वकील जो भी सेवा देते हैं वह अपने आप में अलग तरह की है। ऐसे में इस कानून से उन्हें बाहर रखा जाना चाहिए।
बेंच ने कहा कि लीगल प्रोफेशन की तुलना बाकी किसी काम के साथ नहीं की जा सकती। किसी वकील और क्लाइंट के बीच सामंजस्य एक तरह की निजी अनुबंधित सेवा होती है। ऐसे में अगर कोई कमी होती है तो वकील को उपभोक्ता अदालत में नहीं खींचा जा सकता है। हालांकि अगर वकील गड़बड़ करते हैं तो उनके खिलाफ समान्य अदालतों में मुकदमा चलाया जा सकता है। उपभोक्ता आयोग का फैसला रद्द सुप्रीम कोर्ट ने 2007 के कंज्यूमर कमीशन का फैसला रद्द कर दिया। इस फैसले में कहा गया था कि उपभोक्ता के अधिकारों का ध्यान रखते हुए अगर वकील ठीक से सेवा नहीं देते तो उन्हें उपभोक्ता अदालत में लाया जा सकता है। इस फैसले में कहा गया था कि वकीलों की सेवा भी सेक्शन 2 (1) O के तहत आती है ऐसे में उपभोक्ता अदालत में उनके खिलाफ मुकदमा चलाया जा सकता है। हालांकि अप्रैल 2009 में ही सुप्रीम कोर्ट ने उपभोक्ता आयोग के इस फैसले पर रोक लगा दी थी।
बता दें कि इस समय बार काउंसिल ऑफ इंडिया के डेटा के मुताबिक देश में करीब 13 लाख वकील हैं। वकीलों कीई संस्थाओं ने कमीशन के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी थी। वकीलों का कहना है कि उन्हें अपना काम करने के लिए सुरक्षा और स्वतंत्रता की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट ऐडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड्स असोसिएशन (SCAORA) का कहना था कि कानूनी सेवा किसी वकील के नियंत्रण में नहीं होती है। वकीलों को एक निर्धारित फ्रेमवर्क में काम करना होता है। फैसला भी वकीलों के अधीन नहीं होता है। ऐसे में किसी केस के रिजल्ट के लिए वकीलों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।