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हिजाब विवाद से यूपी के 26 जिलों पर भाजपा की नजर, चुनाव में कैसे पड़ सकता है असर

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नई दिल्ली। कर्नाटक के उडुपी में एक सरकार कॉलेज में हिजाब पहनने को लेकर विवाद काफी गहरा गया है। मामला हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के पास सुनवाई के लिए पहुंच चुका है। उडुपी बले ही लखनऊ से काफी दूर है, लेकिन हिजाब विवाद एक भावनात्मक मुद्दा है जो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को यूपी चुनाव में मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने में मदद कर सकता है।
मुस्लिम छात्राओं द्वारा हिजाब पहनने को राष्ट्रीय मुद्दा बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है। इस मुद्दे को सड़कों पर, हाईकोर्ट में, राजनेताओं द्वारा सोशल मीडिया के साथ-साथ संसद में भी उठाया जा रहा है। कर्नाटक में हिंदुत्व के पैरोकार निजता के अधिकार और किसी की पोशाक चुनने के मौलिक अधिकार पर पुट्टुस्वामी के फैसले से परेशान नहीं हैं। यहां तक ​​​​कि 8 पार्टियों के विपक्षी सांसदों ने भी यह कहते हुए वॉक आउट किया कि हिजाब पहनना कोई अपराध नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि देश में डर का माहौल बनाया जा रहा है।
बीजेपी को मिल सकता है ध्रुवीकरण का फायदा
बीजेपी को ऐसे मुद्दे की सख्त जरूरत है। यहां तक ​​कि विपक्ष को भी इसकी जरूरत है। विपक्ष को इस बात का अंदाजा है कि राज्य की एक बड़ी आबादी सांप्रदायिक आधार पर वोट करती थी। राज्य में हिंदू मतदाता ‘भ्रमित’ हैं। वे यह तय करने में असमर्थ हैं कि बढ़ती कीमतों, युवा बेरोजगारी, कृषि में गिरती आय और किसानों के मुद्दे को सामने धार्मिक भावनाओं को प्राथमिकता दी जाए या नहीं।
यूपी चुनाव जीतने के लिए भाजपा को न केवल समाजवादी पार्टी (सपा)-राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) गठबंधन द्वारा बनाए गए ओबीसी-जाट जाति के एकीकरण को तोड़ने की आवश्यक्ता है, बल्कि मुस्लिम वोटों को गठबंधन को समर्थन देने से रोकना होगा। पश्चिमी यूपी के 26 जिलों में 136 सीटें हैं, जहां मुस्लिम आबादी 26 प्रतिशत से थोड़ी अधिक है।
यूपी जीतने के लिए जीतना होगा पश्चिमी यूपी
पश्चिमी यूपी बीजेपी के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। 2017 में भगवा पार्टी को पूरे यूपी में 41 फीसदी वोट मिले थे। वहीं, पश्चिमी यूपी में उसका वोट शेयर 44.14 फीसदी था, जो आंशिक रूप से कैराना से हिंदुओं के धार्मिक प्रचार का नतीजा था। 2019 के आम चुनाव में पूरे यूपी में बीजेपी का वोट शेयर 50 फीसदी था। वहीं, पश्चिमी यूपी में यह 52 फीसदी था।
भाजपा ने नहीं दिए हैं एक भी मुसलमान को टिकट
भाजपा ने इस क्षेत्र में एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को मैदान में नहीं उतारा है। इस इलाके में 10 और 14 फरवरी को मतदान होना है। सपा ने 12, कांग्रेस ने 11, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने 16 मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं। वहीं, एआईएमआईएम ने भी 9 मुसलमानों को मैदान में उतारा है। मुस्लिम वोटों को विभाजित करके असदुद्दीन ओवैसी वही भूमिका निभाते नजर आ रहे हैं, जो उन्होंने 2015 के बिहार विधानसभा चुनावों में निभाई थी। उन्हें “बीजेपी की बी-टीम” कहा गया था। मायावती भी बड़ी संख्या में मुस्लिम उम्मीदवार उतारकर मुस्लिम वोट बांटने में मदद करेंगी।