कृषि की समृद्धि पर निर्भर है भारतवर्ष का स्वर्णिम कल
बेरोजगारी, पलायन और कृषि की महत्ता पर केन्द्रित है रचना
बीजापुर। नैमेड़ शासकीय उमावि में व्याख्याता एवं मिंगाचल निवासी ओमेश्वरी देवांगन को उनके उपन्यास मेरे सपने मेरा गांव के लिए ग्लोबल स्कॉलर फाउंडेशन द्वारा साहित्य रत्न सम्मान से सम्मानित किया गया है। उन्हें यह सम्मान 6 फरवरी को पुने में दिया गया है। श्रीमती देवांगन का ननिहाल मूलत: धमतरी जिला है। एक समृद्ध कृषक परिवार में पली-बढ़ी श्रीमती देवांगन ने अपने उपन्यास मेरे सपने मेरा गांव समृद्ध कृषि प्रधान राष्ट की कल्पना को लेकर है। उनका मानना है कि कृषि की समृद्धि से देश की अर्थव्यवस्था ना सिर्फ सुदृढ़ होगी बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी, पलायन जैसी समस्या का हल भी निकलेगा। अपने उपन्यास में श्रीमती देवांगन ने काल्पनिक किरदार के रूप में एक शिक्षित युवती का उल्लेख किया है, जिसका प्रेम प्रसंग एक गांव के युवक से होता है, परंतु कई एकड़ जमीन खेतीहर जमीन के बाद भी युवक खुद को बेरोजगार बताते युवती के विवाह के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करता, लेकिन युवती को अपनी मिट्टी, गांव , संस्कृति के प्रति लगाव उसे गांव में रहकर कृषि की तरक्की के साथ उसे रोजगार के बड़े स्त्रोत के रूप में निरूपित करने में प्रोत्साहित करती है। उपन्यास में जैसे कृषि समृद्ध गांव की कल्पना की गई है, वर्तमान प्रदेश सरकार की नरवा, गरूवा, घुरवा, बाड़ी योजना उससे काफी हद तक मेल भी खाती है।
मंगलवार को पत्रकार भवन में पत्रकारों से चर्चा करते श्रीमती देवांगन ने बताया कि उनके प्रेरणा उनके पिता है। रविवि से स्नातोकत्तर के साथ इग्नु से बीएड और बवि से वर्तमान में शोधार्थी भी है। कवि सम्मेलनों में भागीदारी के साथ 2003 में प्रथम छत्तीसगढ़ी उपन्यास कोन बाढिस का प्रकाशन के अलावा बसेरा, तलाश नामक हिंदी उपन्यास का प्रकाशन हुआ है, इसके अलावा उनके आने वाली रचनाओं में चाह, उलझन भरी राहें, उपन्यास कलम से हत्या, काव्य रचना मेरे हमसफर, कहानी संग्रह अस्तित्व शामिल है।
पत्रकारों से चर्चा में श्रीमती देवांगन का कहना था कि आधुनिक पीढ़ी कृषि की महत्ता से दूर भाग रही हैं। व्यवसायिक शिक्षा के जरिए मल्टीनेशनल कंपनियों में मोटे पैकेज पर जॉब पाने की होड़ मची है। ऐसी स्थिति में ग्रामीण भारत का स्वर्णिम इतिहास ओझल होता जा रहा है। चूंकि भारत देश एक कृषि प्रधान देश रहा है, लेकिन युवा पीढ़ी का कृषि के प्रति मोहभंग होने और रोजगार के लिए गांवों से शहरों की ओर पलायन की समस्या कही ना कही विकराल रूप धारण करती जा रही है। ऐसी स्थिति में विकासशील से विकसित देश बनने की राह आसान प्रतीत नहीं होती। अगर गांवों के स्वर्मिम इतिहास को वर्तमान में पुर्नजीवित किया जाए तो निश्चित ही देश की इकोनॉमी ग्रोथ के साथ समृद्ध गांव की कल्पना भी निश्चित साकार होगी।