Home मध्यप्रदेश महाकाल मंदिर में 70 फीट लंबी विशाल यज्ञशाला बनकर तैयार, होगा छह...

महाकाल मंदिर में 70 फीट लंबी विशाल यज्ञशाला बनकर तैयार, होगा छह दिवसीय सौमिक अनुष्ठान महायज्ञ शुरू

22
0

उज्जैन
सुवृष्टि के लिए ज्योतिर्लिंग महाकाल मंदिर में आज से छह दिवसीय सौमिक अनुष्ठान (महायज्ञ) शुरू होगा। परिसर में स्थित ओंकारेश्वर मंदिर के सामने 70 फीट लंबी विशाल यज्ञशाला तैयार की गई है। यज्ञ स्थल पर गाय व बकरी भी बांधी जाएंगी। विद्वान व यजमान आहुति देने के लिए इसी स्थान पर बैलगाड़ी के नीचे बैठकर औषधियुक्त हवन सामग्री तैयार करेंगे। बता दें कि देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में सौमिक अनुष्ठान किया जाना है। अब तक सोमनाथ व ओंकारेश्वर में अनुष्ठान संपन्न हो चुका है। महाकाल तीसरा ज्योतिर्लिंग है, जहां अनुष्ठान हो रहा है।

 ऊपर से खुली रहेगी यज्ञशाला
सौमिक यज्ञ की अग्नि करीब 10 से 12 मीटर ऊपर उठती है, इसलिए यज्ञशाला ऊपर से खुली रहेगी। यज्ञ की विशिष्ट परंपरा व पद्धति के कारण ही इसका आयोजन जूना महाकाल मंदिर परिसर में सीमेंट कांक्रीट से बनी यज्ञशाला में नहीं किया गया है।

मुख्य यजमान दंपती छह दिन अन्न ग्रहण नहीं करेंगे
यज्ञ का आयोजन महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति द्वारा कराया जा रहा है, लेकिन यजमान महाराष्ट्र के रत्नागिरी निवासी एक दंपती को बनाया जा रहा है। सौमिक अनुष्ठान में वही व्यक्ति यजमान बन सकता है, जो नित्य अग्निहोत्र करता हो। यज्ञ के मुख्य यजमान दंपती छह दिन यज्ञ स्थल पर रहेंगे। इस दौरान वे केवल फल, जूस, दूध आदि लेंगे, अन्न ग्रहण नहीं करेंगे।

विद्वानों को निर्माल्य द्वार से मिलेगा प्रवेश
यज्ञ में शामिल होने आ रहे विद्वान व यजमानों को मंदिर के निर्माल्य द्वार से परिसर में प्रवेश मिलेगा। इन्हें मंदिर प्रशासन द्वारा विशेष पास भी जारी किए जाएंगे। सहायक प्रशासक मूलचंद जूनवाल ने बताया कि चूंकि यज्ञ परिसर में जलस्तंभ के समीप हो रहा है, इसलिए मंदिर की दर्शन व्यवस्था प्रभावित नहीं हो रही है। ऐसे में दर्शन व अन्य व्यवस्थाओं में परिवर्तन नहीं किया गया है।

वेद व उपनिषद में उल्लेख
यज्ञाचार्य पं. चैतन्य नारायण काले ने बताया कि यज्ञ का उल्लेख वेद व उपनिषदों में मिलता है। इस यज्ञ को करने से उत्तम वर्षा तथा सामाजिक समरसता की प्राप्ति होती है। यज्ञ संपादित करने वाले यजमानों के साथ संपूर्ण समाज को इसका लाभ प्राप्त होता है।

युगयुगादि परंपरा
अनुष्ठानकर्ता ज्योतिर्विद पं. अमर डब्बावाला के अनुसार सोमिक यज्ञ की परंपरा युगयुगादि है। चतुर्वेद में प्रथम ऋग्वेद में सोम शब्द की प्राप्ति होती है। ऋग्वेद की ऋचाओं में सोमयज्ञ की कंडिकाओं को दर्शाया गया है। यजुर्वेद के मंत्रों में सोमयज्ञ की पूर्णता का उल्लेख है। पूर्व में वैदिक परंपरा के निर्वहन का उल्लेख त्रेता युग से मिलता है। द्वापर युग में धर्मराज युधिष्ठिर ने सोमयज्ञ किया था। इसके बाद राजा-महाराजा सुवृष्टि के लिए निरंतर यज्ञ संपादित करते रहे हैं। सोमयज्ञ से अच्छी वर्षा के साथ उत्तम धान्य की प्राप्ति होती है। साथ ही राष्ट्र की प्रजा सुखी व संपन्न जीवन व्यतीत करती है।

यज्ञ की रक्षा के लिए बैलगाड़ी का उपयोग
यज्ञाचार्य के अनुसार पूर्व में आसुरी शक्तियां यज्ञ आदि को सफल नहीं होने देती थीं। इसलिए सोमयज्ञ की सफलता के लिए बैलगाड़ी के नीचे बैठकर सोमरस तैयार करने की परंपरा है। बैलगाड़ी से यज्ञ की रक्षा होती है, इसलिए इसे यज्ञ स्थल पर रखा जाता है तथा इसी के नीचे बैठकर सोमरस तैयार किया जाता है। महाकाल में होने वाले अनुष्ठान में भी सर्वप्रथम सोम राजा (प्रतीकात्मक रूप से एक भक्त) को बैलगाड़ी में बैठाकर यज्ञशाला का भ्रमण कराया जाएगा। इसके बाद बैलगाड़ी को निश्चित स्थान पर खड़ा किया जाएगा। सोम राजा इसके नीचे बैठकर रस तैयार करेंगे।

गाय व बकरी के दूध से तैयार होता है सोमरस
सोमयज्ञ में सोमरस से आहुति का विशेष महत्व है। दुर्गम पहाड़ों में मिलने वाली सोमवल्ली वनस्पति को कूट-पीस कर इसका रस निकाला जाता है। इसके बाद इसे गाय के देशी घी में उबाला जाता है। फिर इसमें गाय व बकरी का दूध मिलाकर मिश्रण तैयार किया जाता है। इसी से यज्ञ में आहुति दी जाती है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here