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भ्रष्टाचार में रंगे अधिकारियों के हाथ…कायदे-कानून को बनाया मजाक…जिला पंचायत और जनपद पंचायत में भ्रष्टाचार की बू…डिप्टी CM के क्षेत्र में अधिकारी हुए बेलगाम…आदेश के बाद नहीं मिली जानकारी….

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मुंगेली/ मुंगेली जिले में अधिकारी खुलेआम सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 की धज्जियां उड़ा रहे हैं, इन्हें न तो राज्य शासन का डर हैं और न ही उच्चाधिकारियों का… या यूं कहें ये बैखोफ होकर भ्रष्टाचार को अंजाम दे रहे और जब सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी जाती हैं तो इन अधिकारियों द्वारा जानकारी छिपा दी जाती हैं और आवेदक को जानकारी नहीं दी जाती। यही हाल मुंगेली जिला पंचायत और जनपद पंचायत का है जहां एक महत्वपूर्ण मामले की जानकारी आरटीआई के तहत जनपद पंचायत से चाही गई थी समय में जनपद पंचायत ने जानकारी नहीं दिया जिसकी अपील जिला पंचायत में की गई, जहां सुनवाई के दौरान जनपद पंचायत के अधिकारियों को नोटिस भी जारी हुआ और प्रथम अपील में जानकारी देने का आदेश भी दिया परंतु जनपद पंचायत के सीईओ द्वारा 3 महीने बाद भी जानकारी नहीं दी गई।
उसी तरह जिला पंचायत में भी सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी गई थी जहां जानकारी न मिलने पर प्रथम अपील की गई, पर जिला पंचायत में उस समय सूचना के अधिकार का बोर्ड नहीं था जिसके चलते प्रथम अपीलीय अधिकारी का नाम, पता अंकित न होने से असमंजस की स्थिति उत्पन्न हुई जिसके बाद जिला पंचायत के अधिकारी द्वारा प्रथम अपीलीय आवेदन में गलत, त्रुटिपूर्ण आदेश पारित कर दिया गया, हालांकि यह आदेश भी आवेदक के पक्ष में दिया गया लेकिन उसके बाद भी मुंगेली जनपद पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी ने जानकारी नहीं दी, जिससे ऐसा प्रतीत होता हैं कि जिला पंचायत और जनपद पंचायत के अधिकारियों की मिलीभगत के चलते भ्रष्टाचार को छिपाया जा रहा हैं इसी कारण सूचना के अधिकार के तहत जानकारी नहीं दी जा रही। बहरहाल मामले में राज्य सूचना आयोग में द्वितीय अपील और शिकायत की जा चुकी हैं।
एक तरफ भाजपा सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चला रही हैं तो वही दूसरी ओर प्रदेश के अधिकारियों द्वारा भ्रष्टाचार में अपने हाथ रंगते जा रहे हैं। जानकर मानते हैं कि कोई अधिकारी जानकारी तभी छिपाता हैं जब उसमें भ्रष्टाचार हो ? अगर कोई अधिकारी ईमानदारी से कार्य किया हैं तो सूचना के अधिकार कानून के तहत वह जानकारी क्यों नहीं दे रहा ? ऐसे कई प्रश्न और संदेह हैं।