हाई कोर्ट का फैसला
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस की युगल पीठ ने मीसा बंदियों की रोकी गई सम्मान निधि (पेंशन) को जारी रखने का फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की तरफ से जारी दोनों नोटिफिकेशन को निरस्त करते हुए शासन की सभी अपील को ख़ारिज कर दिया है ।
मीसाबंदी याचिकाकर्ताओं के वकीलों में से एक एडवोकेट उपेन्द्र नाथ अवस्थी ने बताया कि छत्तीसगढ़ में वर्ष 2008 से ही आपातकाल के दौरान मीसा क़ानून के तहत जेल भेजे गए लोगों को सम्मान निधि दी जा रही थी. दिसंबर 2018 में कांग्रेस सरकार की वापसी के बाद राज्य शासन ने जनवरी 2019 से इस पेंशन पर रोक लगा दी थी। सरकार ने कहा कि जिन मीसा बंदियों को पेंशन दी जा रही है, उसकी जांच की जाएगी. सरकार ने भौतिक सत्यापन और समीक्षा के नाम पर पेंशन पर रोक लगा दी, लेकिन कोई जांच नहीं की। मामला हाईकोर्ट पहुंचा . हाईकोर्ट ने सरकार को पेंशन जारी करने के आदेश दिए।
इसी बीच छत्तीसगढ़ सरकार ने एक अध्यादेश जारी कर 2008 के उस नियम को ही समाप्त कर दिया, जिसके तहत ये पेंशन दी जा रही थी. पेंशन देने संबंधी कोर्ट के आदेश को राज्य शासन ने हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच में चुनौती दी । राज्य शासन की ओर से 38 रिट अपील दायर की गई। राज्य शासन द्वारा अध्यादेश जारी कर पेंशन निरस्त करने के विरुद्ध मीसाबंदियोंने भी अनेक याचिकाएं दायर की।
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस अरूप कुमार गोस्वामी और जस्टिस एन. के. व्यास की युगल पीठ में सभी रिट अपील व मीसाबंदियों की याचिकाओं पर पिछले माह अंतिम सुनवाई हुई . हाईकोर्ट ने मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था . मंगलवार को हाईकोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला सुनाया . हाईकोर्ट ने मीसाबंदियों की याचिकाएं स्वीकार करते हुए राज्य शासन के पेंशन रोकने संबंधी निर्णय को विधि विरुद्ध मानते हुए उसे निरस्त कर दिया . हाईकोर्ट ने शासन के द्वारा वर्ष 2020 में जारी दोनों नोटिफिकेशन को रद्द कर दिया है .
हाईकोर्ट ने राज्य शासन को मीसाबंदियों की बकाया पेंशन का भुगतान करने तथा आगे भी उसे जारी रखने का निर्देश दिया है जब तक कि विधि के अनुसार विचार कर कोई अन्य समुचित निर्णय नहीं लिया जाता है, जिसके लिए शासन स्वतंत्र है।
हाईकोर्ट ने शासन द्वारा एकल पीठ के निर्णय के विरुद्ध की गई सभी रिट अपील खारिज कर दी हैं।
मामले में मीसाबंदियों की ओर से सीनियर एडवोकेट उपेन्द्र नाथ अवस्थी, सुप्रिया उपासने, रणवीर सिंह मरहास, अमिय कांत तिवारी, अनुराग झा, महेंद्र दुबे, आलोक दुबे, गालिब द्विवेदी, अभिषेक सराफ,राकेश पांडे, राजकुमार गुप्ता तथा योगेश चंद्रा आदि ने पैरवी की थी ।
शासन की ओर से महाधिवक्ता सतीश चन्द्र वर्मा, उप महाधिवक्ता चंद्रेश श्रीवास्तव एवं जितेंद्र पाली ने बहस की।