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5 में से 3 लोकसभा सीटों के निर्णायक मजदूर, असम के चाय बागानों में खिलेगा ‘कमल’ या मजबूत होगा हाथ?

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असम  
आगामी लोकसभा चुनाव असम में तीन चरणों में होना है। इससे पहले अलग-अलग राजनीतिक दल राज्य के चाय बागानों के श्रमिकों पर विशेष ध्यान दे रहे हैं। दरअसल, असम के 5 लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में से कम से कम 3 के नतीजों को प्रभावित करने में ये सक्षम हैं। आंकड़ों पर नजर डालें तो राज्य में 70 लाख से अधिक चाय जनजाति समुदाय के लोग हैं, जिनमें 856 चाय बागानों में काम करने वाले लगभग 10 लाख श्रमिक हैं। खास बात यह भी है कि असम भारत की लगभग 55 प्रतिशत चाय का उत्पादन करता है। टी-प्रोडक्शन राज्य की पहचान और अर्थव्यवस्था का अभिन्न अंग बन चुका है।

लोकसभा चुनाव को लेकर डिब्रूगढ़, काजीरंगा और सोनितपुर में चाय श्रमिकों का अच्छा-खासा असर है। इनके अलावा, जोरहाट में भी चाय जनजाति के मतदाताओं की पर्याप्त संख्या है। चुनाव प्रचार के दौरान खासकर भाजपा और कांग्रेस की ओर से चाय जनजाति समुदाय पर काफी जोर दिया जा रहा है। इससे यह समझा जा सकता है कि राज्य के चाय उत्पादक चुनावी नतीजों को किस हद तक प्रभावित कर सकते हैं। इस बीच, चाय जनजाति समुदाय के लोगों की कुछ शिकायतें भी हैं और इनका कहना है कि वे आजादी के बाद से ही कई समस्याओं का सामना कर रहे हैं। इस इलेक्शन में भी इनकी ओर से अपनी मांगें उठाई जा रही हैं।

चाय बागानों के मजदूरों की दिहाड़ी बढ़ाए जाने की मांग
असम टी ट्राइब्स स्टूडेंट्स एसोसिएशन (ATTSA) के पूर्व नेता भास्कर कालिंदी ने कहा, 'राज्य भर में लगभग 55 लाख चाय जनजाति समुदाय के मतदाता हैं। इनमें से अधिकांश मतदाता डिब्रूगढ़, काजीरंगा, जोरहाट, सोनितपुर में रहते हैं।' उन्होंने कहा कि असम की मौजूदा बीजेपी सरकार ने चाय बागान मजदूरों की दिहाड़ी 251 रुपये तक बढ़ाई है। हालांकि, हमारी मांग है कि इसे और ज्यादा बढ़ाए जाने की जरूरत है। कालिंदी ने कहा कि इससे पहले चाय बागानों के आसपास से होकर गुजरने वाली सड़कों की हालत बहुत खराब थी। मगर, अब इसमें कुछ सुधार हुआ है। साथ ही राज्य में मौजूदा सरकार ने चाय बागानों के आसपास स्कूल और आंगनवाड़ी केंद्र खुलवाए हैं। यह हम सबके बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के लिहाज से अच्छा कदम उठाया गया है।  

 

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