केला, पपीता, अदरक, हल्दी और टमाटर की आपूर्ति करने में सक्षम हो रहे राज्य के किसान
रायपुर। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ सरकार की किसान हितैषी नीतियों और योजनाओं से खाद्यान्न उत्पादन एवं फसल विविधता को बढ़ावा मिलने के साथ ही उद्यानिकी फसलों की खेती को भी प्रोत्साहन मिला है। इसका परिणाम यह रहा है कि छत्तीसगढ़ राज्य में केला, पपीता, अदरक, हल्दी और टमाटर की उन्नत खेती किसान करने लगे हैं। बीते तीन सालों में कृषक साग-सब्जी के अलावा फल एवं मसालेदार फसलों की खेती में काफी रूचि लेने लगे हैं। इससे राज्य में फल एवं मसालों की मांग एवं आपूर्ति में काफी हद तक संतुलन की स्थिति बनी है। किसानों की आय में भी वृद्धि हुई है। राज्य में मुख्यत: केला, पपीता, टमाटर के खेती के अलावा हल्दी, अदरक तथा शकरकंद की खेती कृषकों द्वारा की जा रही है।
उद्यानिकी के तहत संचालित दो बडी योजना राष्ट्रीय बागवानी मिशन तथा राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत विगत तीन वषों में फलों की खेती में सबसे अधिक केला एवं पपीता का उत्पादन रहा है। राज्य के 19 जिलों में संचालित राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत विगत तीन वषों में केले की खेती 3227 हेक्टेयर में की गयी है और लगभग 96,810 मेट्रिक टन उत्पादन प्राप्त हुआ है। इस योजना से कुल 1901 कृषक लाभान्वित हुए हैं। वही राज्य के 8 जिलों में संचालित राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत विगत 3 वर्षों में 380 हेक्टेयर में केले की खेती की गयी एवं औसतन 11,400 मेट्रिक टन का उत्पादन प्राप्त हुआ है। इससे कुल 577 कृषक लाभान्वित हुए हैं।
इसी तरह बीते तीन सालों में राज्य में 1260 किसानों ने 1720 हेक्टेयर में पपीते की खेती को अपनाया हैं, जिससे औसतन 60200 मेट्रिक टन उत्पादन प्राप्त हुआ। रायपुर जिले के आरंग विकासखण्ड के गांव के कृषक श्री महावीर वर्मा द्वारा बीते तीन सालों से 7 एकड़ में केले की खेती की जा रही है। इनके द्वारा कृषकों को Óकेला, पपीता के खेती के बारे में लगातार प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। कृषक श्री वर्मा बताते हैं कि एक हेक्टेयर में केले की खेती कर से 60 टन से ज्यादा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।
राज्य में बीते तीन सालों में लगभग 4400 हेक्टेयर में हल्दी की खेती 8 हजार किसान कर रहे हैं, जिससे 1 लाख 9 हजार 575 मेट्रिक टन उत्पादन प्राप्त हुआ। हल्दी की खेती से होने वाले लाभ को देखते हुए अन्य कृषक भी अब तेजी से हल्दी की खेती की ओर अग्रसर हो रहे हैं। बलौदा बाज़ार की जागृति स्व सहायता समूह की दस महिलाओं ने इस साल एक एकड़ में हल्दी की खेती शुरूआत की है। सहायक संचालक उद्यानिकी बलौदाबाजार आर आर वर्मा ने बताया कि महिला स्व सहायता समूह को गौठानों में हल्दी की खेती हेतु अनुदान एवं तकनीकी मार्गदर्शन प्रदाय किया जा रहा है। हल्दी की खेती से एक हेक्टेयर से औसतन 25 टन उत्पादन प्राप्त होता है।
राज्य में बीते तीन सालों में लगभग 300 किसानों को योजनाओं के तहत प्रशिक्षण एवं अनुदान देकर उन्हें अदरक की खेती के लिए प्रेरित एवं प्रोत्साहित किया गया। जिन्होंने 130 हेक्टेयर में अदरक की खेती कर 2000 टन अदरक किया है। बालोद जिले के कृषक श्री मनोज जैन द्वारा अदरक की फ़सल लगातार दूसरे वर्ष ली जा रही है। गत वर्ष उन्होंने 2.5 एकड़ में अदरक की खेती की थी, जिसमें से आधा उन्होंने अच्छे दाम पर लोकल मार्केट में बेचा था बाक़ी बीज के तौर पर उपयोग कर के इस वर्ष कुल 8 एकड़ में अदरक की खेती की है। एक हेक्टेयर में लगभग 175 क्विंटल अदरक का उत्पादन प्राप्त होता है। कृषक श्री जैन का कहना है कि पूर्व में अन्य राज्यों से अदरक मंगाया जाता था पर पिछले कुछ वर्षों में राज्य में ही अदरक की खेती की जा रही है एवं लोकल मार्केट में इसकी माँग भी बहुत है।
वर्ष 2020-21 में शकरकंद की खेती 1050 हेक्टेयर में की गई। जिससे औसतन 10500 मेट्रिक टन उत्पादन प्राप्त हुआ। इस योजना से कुल 2632 कृषक लाभान्वित हुए हैं। इसी प्रकार 15 हेक्टेयर में हल्दी की खेती से औसतन 150 मेट्रिक टन का उत्पादन प्राप्त हुआ है। इस योजना से कुल 44 कृषक लाभान्वित हुए हैं। बस्तर जिले के बड़े देवड़ा ग्राम के कृषक हेमराज द्वारा एक हेक्टेयर में शकरकंद की खेती की जा रही है। उनके अनुसार लगभग चार महीने में फ़सल का उत्पादन हो जाता है एवं एक हेक्टेयर में औसतन 10 टन उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। अभी तक उन्होंने एक ही फ़सल ली है जिसमें उन्हें 40 रू प्रति किलो तक दाम प्राप्त हुआ था।
टमाटर की खेती विगत 03 वषों में राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत 4710 हेक्टेयर में की गयी जिससे औसतन 1,17,750 मेट्रिक टन उत्पादन प्राप्त हुआ। इस योजना से कुल 5779 कृषक लाभान्वित हुए हैं। अब तक की सस्ते ज़्यादा माँग वाली फ़सल टमाटर के उत्पादक कृषक श्री तिलक पटेल बालोद में लगभग 15-20 एकड़ में इसकी खेती कर रहें हैं। उनके अनुसार टमाटर की फ़सल इस बार दूसरे राज्यों में कम हुई, जिसकी वजह से इसकी काफी माँग रही। उन्हें सात एकड़ से लगभग 160 टन टमाटर का उत्पादन प्राप्त हुआ जिसे ज़्यादातर दूसरे राज्य के व्यापारी ख़ासकर बैंगलुरु से आकर अच्छे दाम देकर खऱीद लिया गया। औसतन न्यूनतम मूल्य 20-25 रुपए किलो में इसकी बिक्री हुई है।