राज्यपाल ने छत्तीसगढ़ कृषि शिक्षा प्रणाली पर राष्ट्रीय कार्यशाला का किया शुभारंभ
रायपुर। राज्यपाल अनुसुईया उइके ने कहा है कि राज्य की कृषि शिक्षा प्रणाली ऐसी होनी चाहिए जो विद्यार्थियों को कृषि एवं संबंधित विषयों के ज्ञानार्जन के साथ ही रोजगार-व्यवसाय अर्जन के योग्य बनाये। उन्होंने कहा कि देश की नवीन शिक्षा नीति के अनुरूप कृषि शिक्षा प्रणाली में भी उद्यमिता विकास पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए और यह प्रयास किया जाना चाहिए कि कृषि स्नातक अथवा स्नातकोत्तर विद्यार्थी अपनी आजीविका हेतु केवल नौकरी पर आश्रित न रहें बल्कि स्वयं का व्यवसाय स्थापित कर अन्य लोगों को रोजगार प्रदान करने में समर्थ बन सकें। सुश्री उइके आज यहां इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर में ‘‘राष्ट्रीय कृषि शिक्षा नीति 2020 के अनुरूप छत्तीसगढ़ कृषि शिक्षा प्रणाली’’ विषय पर आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का शुभारंभ कर रहीं थीं। उन्होंने इस अवसर पर विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित कृषि पंचांग-2022, कृषि ई-पंचांग एवं विश्वविद्यालय के अन्य प्रकाशनों का विमोचन किया। सुश्री उइके ने यहां इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के अंतर्गत संचालित विभिन्न कृषि महाविद्यालयों, अनुसंधान प्रक्षेत्रों, उत्कृष्टता केन्द्रों तथा कृषि विज्ञान केन्द्रों द्वारा आयोजित प्रदर्शनी का अवलोकन भी किया, जहां कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित नवीनतम कृषि प्रौद्योगिकी, अनुसंधान कार्याें तथा जैव विविधता को प्रदर्शित किया गया। प्रदर्शनी में विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान केन्द्रों के मार्गदर्शन में कार्य कर रहे स्व-सहायता समूहों के उत्पादों एवं मार्केटिंग माॅडल को भी प्रदर्शित किया गया था। राज्यपाल ने कृषि विश्वविद्यालय परिसर में त्रि-स्तरीय कृषि पद्धति, अक्ति जर्मप्लाज्म संग्रहालय सहित अन्य विकास गतिविधियों का जायजा लिया।
राज्यपाल उइके ने अपने संबोधन में सभी उपस्थित जनों को नव वर्ष की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि आज इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय परिसर में संचालित अनुसंधान एवं विकास कार्याें को देखकर उन्हें सुखद अनुभुति हुई। उन्होंने कहा कि अक्ति जर्मप्लाज्म संग्रहालय में धान की 24 हजार से अधिक धान की परंपरागत प्रजातियों के बीजों को देखकर उन्हें सुखद आश्चर्य हुआ। यहां धान के साथ-साथ अलसी और तिवड़ा की प्रजातियों के जननद्रव्य का संग्रहण एवं संरक्षण बहुत अच्छी तरह किया गया है। उन्होंने कहा कि कृषि विश्वविद्यालय द्वारा किसानों के हित में अनेक नवीन अनुसंधान किये जा रहे हैं तथा कृषकोपयोगी नवीन कृषि प्रौद्योगिकी विकसित की जा रही है। सुश्री उइके ने कहा कि कृषि विज्ञान केन्द्रों के माध्यम से इन नवीन कृषि प्रौद्योगिकी को किसानों के खेतों तक प्रसारित किया जा रहा है तथा कृषि विज्ञान केन्द्रों के मार्गदर्शन में कृषक उत्पादक संगठन एवं महिला स्व-सहायता समूह गठित कर उन्हें रोजगारमूलक गतिविधियों से जोड़ा जा रहा है, यह बहुत ही सराहनीय कार्य है।
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डाॅ. एस.एस. सेंगर ने विश्वविद्यालय ने विश्वविद्यालय के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि कृषि विश्वविद्यालय के अन्तर्गत संचालित महाविद्यालयों, अनुसंधान केन्द्रों एवं कृषि विज्ञान केन्द्रों के माध्यम से निरंतर नये अनुसंधान एवं कृषि प्रौद्योगिकी विकास का कार्य किया जा रहा है। विश्वविद्यालय द्वारा विभिन्न फसलों की 156 नवीन उन्नत किस्में विकसित की गई है। कोरिया, कबीर धाम, दंतेवाड़ा, बस्तर एवं कांकेर कृषि विज्ञान केन्द्रांे को राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत किया गया है। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय को देश भर में संचालित 73 कृषि विश्वविद्यालयों में 16वां स्थान प्राप्त हुआ है। आई.सी.ए.आर. नेट परीक्षा में इस वर्ष विश्वविद्यालय के 257 छात्र सफल हुए हैं।
राज्यपाल अनुसुईया उइके ने कृषि विश्वविद्यालय प्रवास के दौरान विश्वविद्यालय के प्रीसीजन फार्मिंग केन्द्र का भी आवलोकन किया। विश्वविद्यालय के प्रीसीजन फार्मिंग केन्द्र में त्रि-स्तरीय खेती का प्रदर्शन किया जा रहा है, प्रथम लेयर में मौसमी हाई वैल्यू फसलें जैसे- ब्रोकली, रेड कैबेज, नोल-खोल, लेट्यूस, कैप्सिकम, केल, चैरी टमाटर, पोक्चाई, जरबेरा, रजनीगंधा आदि की खेती की जा रही है। द्वितीय लेयर में छः माह के आस-पास की अवधि फसलें जैसे अदरक की खेती की जा रही है। इसके साथ ही तीसरे लेयर के रूप में पपीते जैसी लगभग दो साल अवधि की फसलों की खेती की जा रही है। इसी प्रकार सब्जियों के साथ ड्रैगन फ्रूट, पान जैसी हाई वैल्यू फसलों की खेती भी की जा रही है। खेती के इस माॅडल से किसानों को वर्ष भर आमदनी होती रहेगी।
राज्यपाल उइके ने विश्वविद्यालय के अक्ति जैव विविधता संग्रहालय का भ्रमण भी किया जहां धान, अलसी एवं तिवड़ा की लगभग 28 हजार प्रजातियों का संग्रहण किया गया है एवं डिजिटल माध्यम से प्रदर्शित किया गया है। सुश्री उइके ने वहां संरक्षित धान, तिवड़ा एवं अलसी की विभिन्न प्रजातियों के बारे में जानकारी प्राप्त की। उन्होंने धान की सुगंतिध एवं औषधीय परंपरागत प्रजातियों के बारे में जानकारी में काफी रूचि दिखाई। कृषि वैज्ञानिकों द्वारा उन्हें विश्वविद्यालय द्वारा विकसित धान की न्यूट्रिटिव किस्में जैसे मधुराज, प्रोटेजीन और जिन्को राइस के बारे में भी जानकारी दी गई। राज्यपाल ने वहां टिश्यू कल्चर तकनीक से उत्पादित बांस, गन्ना, केला एवं आॅरकिड के पौधों का भी अवलोकन किया।
कृषि शिक्षा प्रणाली पर आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला के तकनीकी सत्र में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डाॅ. एस.एस. सेंगर के साथ ही दाऊ वासुदेव चन्द्राकर कामधेनु विश्वविद्यालय के कुलपति डाॅ. एन.पी. दक्षिणकर, महात्मा गांधी उद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डाॅ. आर.एस. कुरील, पं. रवि शंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के कुलपति डाॅ. के.एल. वर्मा, स्वामी विवेकानंद तकनीकी विश्वविद्यालय के कुलपति डाॅ. एम.के वर्मा, छत्तीसगढ़ आयुष विश्वविद्यालय के कुलपति डाॅ. ए.के. चन्द्राकर मैट्स युनिवर्सिटी के कुलपति डाॅ. के.पी. यादव तथा आई.आई.आई.टी. एवं आई.आई.एम. के निदेशक एवं केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, इम्फाल के पूर्व कुलपति डाॅ. एस.एस. बघेल सहित अनेक विषय विशेषज्ञों ने कृषि शिक्षा प्रणाली पर आयोजित तकनीकी सत्रों में अपने विचार व्यक्त किये। कार्यशाला में कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डाॅ. एम.पी. ठाकुर, कृषि अभियांत्रिकी महाविद्यालय के अधिष्ठाता डाॅ. विनय पाण्डेय, निदेशक विस्तार सेवाएं डाॅ. आर.के. बाजपेयी, अधिष्ठाता छात्र कल्याण डाॅ. जी.के. श्रीवास्तव, सह संचालक अनुसंधान डाॅ. विवेक त्रिपाठी सहित अनेक कृषि वैज्ञानिक उपस्थित थे।