नई दिल्ली। वैक्सीन निर्माता कंपनी बायोलॉजिकल ई. लिमिटेड को अपने कोविड-19 टीके ‘कॉर्बेवैक्स’ (Corbevax) को बूस्टर डोज के लिए चरण तीन के क्लीनिकल ट्रायल करने की मंजूरी मिल गई है। यह मंजूरी ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया ने दी है। भारत बायोटेक के बाद बायोलॉजिकल ई. लिमिटेड दूसरी कंपनी है जिसे बूस्टर डोज के लिए क्लीनिकल ट्रायल करने की मंजूरी मिली है। विस्तृत विचार-विमर्श के बाद, विशेषज्ञ समिति ने प्रस्तावित चरण तीन के क्लीनिकल ट्रायल के संचालन की अनुमति देने की सिफारिश की।
परीक्षण के दौरान इन बातों का रखना होगा ध्यान
इस मंजूरी के तहत सबसे बहले बूस्टर खुराक पर अध्ययन छह और नौ महीने के दो समूहों में आयु-वार के साथ करना होगा वहीं उच्च जोखिम या गंभीर रोगों की स्थिति वाले 50 फीसदी विषयों को शामिल करना होगा। दूसरा यह कि सेफ्टी फॉलो-अप को नौ महीने तक बढ़ाया जाए।
इससे पहले बायोलॉजिकल ई की सामान्य कोरोना वैक्सीन को मिली थी अनुमति
इससे पहले केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) ने मंगलवार को कॉर्बेवैक्स वैक्सीन को आपात स्थिति में इस्तेमाल की अनुमति दे दी थी। यह भारत में निर्मित विकसित पहला प्रोटीन आधारित कोविड टीका है। बायोलॉजिकल ई ने अपने कोविड-19 टीके कॉर्बेवैक्स का उत्पादन 7.5 करोड़ डोज प्रति महीने की दर से करने की योजना बनाई है। कंपनी ने मंगलवार को एक बयान में कहा कि फरवरी, 2022 से वह कॉर्बेवैक्स टीके की हर महीने 10 करोड़ से अधिक खुराकों का उत्पादन कर पाने की स्थिति में होगी।
भारत में कोरोना से लड़ाई में क्यों अहम साबित होगी कोर्बिवैक्स
वैज्ञानिकों का कहना है कि प्रोटीन आधारित वैक्सीन्स के निर्माण का खर्च मौजूदा वेक्टर या एमआरएनए टीकों के मुकाबले काफी कम है। साथ ही प्रोटीन बेस्ड टीकों को दो से आठ डिग्री सेल्सियस तक के तापमान पर भी रखा जा सकता है, जिससे इन्हें भारत और अफ्रीका जैसे देशों में दूर-दराज के स्थानों तक पहुंचाना आसान होगा। mRNA वैक्सीन्स को माइनस तापमान में रखने की जरूरत होती है, जिसकी वजह से इन्हें स्टोर करने का इन्फ्रास्ट्रक्चर हर देश के लिए जुटाना नामुमकिन है। ऐसे में कोर्बिवैक्स भारत में पूर्ण टीकाकरण के साथ बूस्टर डोज की जरूरतों को पूरा करने में अहम साबित होगी।