टोक्यो
जापान के मानवरहित चंद्रयान का लैंडर 'मून स्नाइपर' चांद पर दो सप्ताह की दूसरी रात बिताने के बाद एक बार फिर से जाग गया है। जापान की अंतरिक्ष एजेंसी ने इसकी जानकारी देते हुए बताया कि लैंडर स्नाइपर ने चांद से धरती पर नई तस्वीरें भेजी हैं। जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी ने "हमें कल रात एसएलआईएम (स्मार्ट लैंडर फॉर इनवेस्टिगेटिंग मून) से एक प्रतिक्रिया मिली। इसने पुष्टि कर दी है कि एसएलआईएम ने चांद पर अपना दूसरा रात्रिकाल सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है।" एजेंसी ने एक्स पर क्रेटर की चट्टनी सतह की ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीर भी शेयर की है।
धरती पर भेजी तस्वीर
जापानी स्पेस एजेंसी ने आगे बताया, "चूंकि कल रात चांद पर सूरज अभी भी आसमान में था और उपकरण गर्म थे। इसलिए हमने थोड़े समय के लिए अन्य गतिविधियों के साथ नेविगेशनल कैमरे के साथ सामान्य दृश्यों की तस्वीरें रिकॉर्ड की।" जापान के पहले मून मिशन ने इसी साल जनवरी में चांद की सतह पर लैंडिंग की थी। इसके साथ ही जापान चांद पर पहुंचने वाला दुनिया का पांचवा देश बना था। हालांकि, लैंडिंग के समय इसका लैंडर 'स्नाइपर' गलत कोण पर चला गया, जिससे उसके सौर पैनल गलत दिशा में खुल गए थे। इसकी वजह से लैंडर की बैटरी चार्ज नहीं हो पा रही थी और लैंडिंग के तीन घंटे के भीतर ही जापान स्पेस एजेंसी ने इसे स्विच ऑफ करने का फैसला लिया। उस समय लैंडर में 12 फीसदी बैटरी बची थी।
जनवरी के आखिर में पहली बार हुआ था एक्टिव
जनवरी के आखिर में जब सूरज पैनल की सीध में आया तो लैंडर दो दिनों के लिए एक्टिव हुआ था। इस दौरान इसने कुछ वैज्ञानिक मिशन को पूरा किया था। दो दिन बाद चांद पर 15 दिनों की लंबी रात शुरू हो गई। इस दौरान चांद की सतह का तापमान माइनस 133 डिग्री पर पहुंच जाता है। लैंडर को इतने कम तापमान में काम करने के लिए नहीं बनाया गया था। ऐसे में इसे एक बार फिर से बंद कर दिया गया। चांद पर पहली लंबी रात बिताने के बाद स्नाइपर फरवरी में फिर से जिंदा हुआ था और चांद की जांच पड़ताल करके उसकी जानकारी धरती पर भेजी थी।
जापान के मून मिशन का उद्येश्य चंद्रमा की सतह के नीचे की गहरी परत की जांच करना है। जापान के चंद्रयान के जागने की खबर ऐसे समय आई है जब कुछ दिन पहले ही एक अमेरिकी लैंडर ओडीसियस ऐसा करने में फेल रहा था। ओडीसियस चांद पर सफलतापूर्वक उतरने वाला पहला निजी अंतरिक्ष यान था। शनिवार को ओडीसियस के निर्माता ने बताया कि इसके सौर पैनलों को रेडियो चालू करने के लिए पर्याप्त सूर्य की रोशनी प्राप्त करने का अनुमान लगाए जाने के बाद भी इसे फिर से जिंदा नहीं किया जा सका।