भोपाल
शासकीय कन्या महाविद्यालय सिवनी मालवा में महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. उमेश कुमार धुर्वे के मार्गदर्शन में “सतत जीवनशैली- स्थलीय एवं जलीय जैव विविधता संरक्षण” विषय पर दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया । कार्यशाला का शुभारम्भ माँ सरस्वती की पूजा अर्चन कर किया गया । महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. उमेश कुमार धुर्वे द्वारा स्वागत भाषण में बताया गया कि हमें अपनी जीवनशैली सादी रखनी चाहिए, प्रकृति से जुड़े रहना आवश्यक हैं जैसे हमारे देश में भाषा, पहनावे, बोलचाल के आधार पर विविधता है उसी प्रकार पृथ्वी पर जीवों और वनस्पतियों की विभिन्न प्रजातियां पाई जाती है जिसमें से कई प्रजातियाँ विलुप्ति की कगार पर है, आज की यह कार्यशाला जागरूकता का एक प्रयास है ।
शा. गृह विज्ञान महाविद्यालय की प्राचार्या डॉ. कामिनी जैन मैडम ने ऑनलाइन माध्यम से कार्यशाला में शामिल होकर महाविद्यालय के इस सराहनीय प्रयास पर शुभकामनाएँ प्रेषित की और बताया की यह विषय आज के परिपेक्ष में जागरूकता का प्रमुख आयाम है । शा. कुसुम महाविद्यालय सिवनी मालवा के प्राचार्य डॉ. आर. के. रघुवंशी ने बताया कि जैसे धर्मग्रंथों में 84 लाख योनियों के बारे में बताया गया है उसी प्रकार वनस्पति तथा जीवों में भी विभिन्न प्रजातियाँ पाई जाती है, पहले के लोग पहाड़ों, नदियों, जंगलों की पूजा करते थे उसकी रक्षा करते थे परन्तु आज मानव आधुनिकता की दौड़ में प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन तथा दुरूपयोग कर रहा है
आजकल की भाग दौड़ भरी जीवनचर्या में मनुष्य प्रकृति से दूर होता जा रहा है । कार्यशाला में अतिथि वक्ता डब्लू. डब्लू. एफ. इंडिया के डॉ. अमित दुबे द्वारा बताया गया कि दलदली क्षेत्र चाहे प्राकृतिक हो या मानव निर्मित जिसमे पानी मीठा हो या खरा तथा जिसकी गहराई 6 मीटर से ज्यादा न हो वेटलैंड कहलाते है, वेटलैंड के अंतर्गत तालाब, झील तथा दलदली भूमि आती हैं पृथ्वी पर 1% हिस्सा वेटलैंड है परन्तु 40% जैविक विविधता यहाँ पाई जाती है, आज कल ये क्षेत्र ख़त्म होते जा रहे हैं, जल संरक्षण की दिशा में भी काम करने की बहुत आवश्यकता है, वेटलैंड भूमि के जल स्त्रोतों को भी बढ़ाते हैं ।
अतिथि वक्ता डॉ. रवीन्द्र अभ्यंकर द्वारा आदिवासी क्षेत्रों में पाई जाने वाली विभिन्न वनस्पतियों की प्रजातियों और उनके औषधीय महत्व को बयाता गया उन्होंने बताया की जंगलों में रहने वाले आदिवासी बहुत सी बिमारियों का इलाज जंगली औषधियों से ही कर लेते है, ये वैद्य आज भी आयुर्वेदिक ज्ञान को जानते है तथा उसका उपयोग भी करते हैं, परन्तु आजकल वन उपज का व्यवसाय हो जाने के कारण बहुत सी जंगली वनस्पतियाँ विलुप्ति की कगार पर है, इस दिशा में सरकार द्वारा आमजनों को जागरूक करने की जरुरत है । शा. नर्मदा महाविद्यालय के विभागाध्यक्ष डॉ. आर. के. दीवान द्वारा बताया कि पृथ्वी पर 70% जल है परन्तु उसमें से मात्र 2% जल ही पीने योग्य है जो की धीरे धीरे ख़त्म होता जा रहा है हमारे दैनिक जीवन में पानी का बहुत अधिक दुरूपयोग हो रहा है जिसे रोक पाना मुश्किल है हमें ऐसे उपाय करने होने जिससे पानी को बचाया जा सके, हमें अपनी दिनचर्या में परिवर्तन की आवश्यकता है सभी का सम्मलित प्रयास ही सफलता दिला सकता है ।
कार्यशाला के प्रभारी डॉ बाऊ पटेल द्वारा सभी अतिथि वक्ताओं तथा गणमान्य अतिथियों का इस कार्यशाला को सफल बनाने के लिए आभार व्यक्त किया । कार्यक्रम में सस्टेनेबल लाइफस्टाइल विषय पर छात्राओं द्वारा मॉडल तथा पोस्टर प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया । शा. नर्मदा महाविद्यालय से पधारे डॉ. महेश मानकर तथा अन्य अतिथियों मॉडल निर्माण तथा पोस्टर निर्माण प्रतियोगिता के निर्णायक रूप में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शनकरने वाली छात्राओं का चयन किया ।
मॉडल निर्माण प्रतियोगिता में प्रथम स्थान बी. ए. तृतीय वर्ष की यशस्वी ठाकुर द्वितीय स्थान बी.एस.सी. तृतीय वर्ष की पूर्वा रघुवंशी तथा ग्रुप एवं तृतीय स्थान बी.एस. सी. प्रथम वर्ष की प्राची साहू ने प्राप्त किया, पोस्टर निर्माण प्रतियोगिता में प्रथम स्थान बी.एस.सी द्वितीय वर्ष की नेहा पुकेशिया द्वितीय स्थान बी.एस.सी द्वितीय वर्ष की नेहा जाट एवं तृतीय स्थान बी.एस. सी. प्रथम वर्ष की आस्था अग्निहोत्री ने प्राप्त किया ।
सभी प्रतिभागियों को मुख्यअतिथियों द्वारा प्रमाणपत्र वितरित किये गए इको क्लब प्रभारी डॉ. सतीश बालापुरे ने बताया कि इस दो दिवसीय कार्यशाला में पहले दिन अतिथियों के व्याख्यान, मॉडल तथा पोस्टर प्रदर्शनी प्रतियोगिता हैं तथा दुसरे दिन छात्राओं को प्राकृतिक क्षेत्र का भ्रमण कराया जायेगा । कार्यशाला कार्यक्रम में रसायन शास्त्र के डॉ. मनीष दीक्षित तथा ग्रंथपाल श्रीमती काजल रतन द्वारा मंच संचालन किया गया । कार्यक्रम में महाविद्यालय के इको क्लब प्रभारी डॉ. सतीश बालापुरे, डॉ. टी. टी. एक्का तथा सभी प्राध्यापक, स्टाफ एवं छात्राएं उपस्थित रहीं ।