पटना.
भारतीय प्रशासनिक सेवा के दोनों ही सीनियर अफसर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की आंखों के तारे हैं। एक आनंद किशोर- बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के अध्यक्ष। दूसरे केके पाठक- शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव। बिहार बोर्ड भी शिक्षा विभाग से ही जुड़ा है, लेकिन वह परीक्षा लेने वाली इकाई है। बिहार बोर्ड ने शनिवार को इंटरमीडिएट, यानी 12वीं की सरकारी बोर्ड परीक्षा का रिजल्ट दिया है।
रिजल्ट ने शिक्षा विभाग के दावों की कलई तो खोली ही है, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सपनों को भी चकनाचूर दिखा दिया है। इंटर रिजल्ट एक साथ कई सवाल उठा रहा है, जिसका जवाब देने के लिए कोई नहीं। बोर्ड परीक्षा लेकर रिजल्ट दे सकता है और केके पाठक कार्रवाई के अलावा किसी कारण चर्चा में नहीं हैं। पहले देखें, कि आखिर खेल कहां हुआ?
सिमुलतला का नाम गायब होना बड़ी बात
सीएम नीतीश कुमार अबतक सिर्फ एक ही सरकारी स्कूल को लेकर ज्यादा संजीदा रहे और दरअसल पहली बार बिहार में सरकार बनाने के बाद वही उनका ड्रीम प्रोजेक्ट भी था- सिमुलतला आवासीय विद्यालय। इस बार इंटर टॉपर्स की सूची में इस स्कूल से एक भी नहीं। वर्षों तक माना जाता रहा कि सिमुलतला आवासीय विद्यालय के बगैर बिहार बोर्ड की टॉपर्स सूची बनती ही नहीं। बोर्ड परीक्षाओं में देखा जाता रहा है कि कई बार सूची का आधा से ज्यादा हिस्सा इसी विद्यालय के नाम रहता था। ऐसा नहीं कि सीएम के नाम के कारण इस स्कूल में दाखिला वालों को टॉपर बना दिया जाता था। टॉपर घोटाला भी खुला, तब भी स्कूल का नाम नहीं खराब हुआ। अब खराब दिख रहा है।
पढ़ाई के कारण चर्चित था, अब इन कारणों से
केके पाठक वहां तक पहुंच चुके हैं और अब सिमुलतला आवासीय विद्यालय पर कार्रवाई की ही खबरें आती हैं। फिलहाल यहां पढ़ाने वाले शिक्षक इस सदमे में हैं कि उनके पदों को शिक्षा विभाग ने मरणशील घोषित कर दिया है। मतलब, जबतक हैं- यह पद है। जो नए बीपीएसीसी से आएंगे वह ट्रेंड ग्रेजुएट टीचर नौवें स्केल पर, पोस्ट ग्रेजुएट टीचर 11वें स्केल पर और प्रिंसिपल 13वें स्केल पर आएंगे। शिक्षक ही नहीं, प्रिंसिपल भी कई तरह से घेरे जाने के कारण सदमे में हैं। नतीजा है कि इंटर रिजल्ट में एक भी टॉपर नहीं है। बिहार बोर्ड किसी को जबरदस्ती तो बना नहीं सकता, इसलिए सीएम नीतीश का ड्रीम प्रोजेक्ट धम्म से गिर पड़ा है।
…तो, क्या 23 जिलों का खाली रहना गलत नहीं
बिहार बोर्ड के इंटर रिजल्ट में एक और बेहद चौंकाने वाली बात सामने आयी है। बिहार के 38 जिलों में से महज 15 जिलों से टॉपर हैं। टॉपरों के बीच मारामारी की नौबत रहती थी और हालत यह रहती थी कि एक ही रैंक पर कई जिलों के कई बच्चे रहते थे। लेकिन, इस बार पटना के पांच, नवादा के चार, सीवान के तीन के अलावा सारण, सीतामढ़ी, गोपालगंज, लखीसराय, नालंदा, औरंगाबाद, भागलपुर, वैशाली, कैमूर, शेखपुरा, अररिया और पश्चिम चंपारण से एक-एक टॉपर निकले हैं। शेष 23 जिलों का खाता भी नहीं खुला है। शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव के आदेश पर पिछले दिनों जारी संकल्प पत्र में लिखा गया था कि राज्य के स्कूलों में मानव संसाधन और सामान्य-संसाधनों की कमी पूरी कर ली गई है। लेकिन, यह रिजल्ट सवाल खड़े कर रहा है कि कार्रवाई की खबरों से इतर शैक्षणिक परिणाम क्या है? कभी पढ़ाई के मामले में आगे रहे बेगूसराय, पिछली बार टॉपर देने वाले खगड़िया, ज्ञान की धरती गया, विश्वविद्यालय के लिए नामी मुजफ्फरपुर-दरभंगा समेत मुंगेर, जमुई, पूर्णिया, पूर्वी चंपारण, शिवहर, बांका, भोजपुर, बक्सर, रोहतास, सहरसा, मधेपुरा, मधुबनी, समस्तीपुर, सुपौल, अरवल, जहानाबाद, कटिहार और किशनगंज के सरकारी स्कूल में प्रतिभाएं नहीं जा रही हैं।