नई दिल्ली। एएसजी अमन लेखी को सुना। हमें हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं दिखता। खारिज। यह आदेश पारित करते हुए उच्चतम न्यायालय ने भीमा कोरेगांव केस में सुधा भारद्वाज को बाम्बे हाईकोर्ट द्वारा मिली डिफॉल्ट जमानत के आदेश को बरकरार रखा।अब सुधा भारद्वाज के जमानत पर रिहा होने का मार्ग प्रशस्त हो गया है।
उच्चतम न्यायालय के जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस बेला त्रिवेदी की पीठ ने मंगलवार को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा दायर उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें वकील- एक्टिविस्ट सुधा भारद्वाज को भीमा कोरेगांव मामले में गिरफ्तारी के तीन साल बाद 1 दिसंबर को बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा दी गई डिफ़ॉल्ट जमानत को चुनौती दी गई थी। पीठ ने कहा कि बॉम्बे उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं है और एनआईए की विशेष अनुमति याचिका को खारिज कर दिया।
सुधा भारद्वाज को 1 दिसंबर को बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा इस निष्कर्ष के आधार पर डिफॉल्ट जमानत दी गई थी कि अतिरिक्त सत्र न्यायालय, पुणे, जिसने मामले में जांच के लिए 90 दिनों से अधिक समय बढ़ाया था, ऐसा करने के लिए सक्षम नहीं था क्योंकि इसे एनआईए अधिनियम की धारा 22 के तहत एक विशेष न्यायालय अधिसूचित नहीं किया गया था।
एनआईए की तरफ से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अमन लेखी ने तर्क दिया कि यूएपीए की धारा 43 डी (2) केवल धारा 167 (2) सीआरपीसी के प्रावधान को संशोधित करती है तथा यूएपीए की धारा 2 के तहत “कोर्ट” की परिभाषा “जब तक कि संदर्भ की आवश्यकता न हो” से शुरू होती है, जिसे उच्च न्यायालय ने ध्यान में नहीं रखा है।
गौरतलब है कि 30 नवंबर को बॉम्बे हाईकोर्ट ने सुधा भारद्वाज की डिफॉल्ट जमानत की याचिका को इस निष्कर्ष के आधार पर स्वीकार कर लिया था कि अतिरिक्त सत्र न्यायालय, पुणे, जिसने मामले में जांच के लिए 90 दिनों से अधिक समय बढ़ाया था, ऐसा करने के लिए सक्षम नहीं था क्योंकि उसे एनआईए अधिनियम के तहत विशेष न्यायालय के रूप में अधिसूचित नहीं किया गया था। अदालत ने निर्देश दिया कि जमानत की औपचारिकताएं पूरी करने के लिए भारद्वाज को आठ दिसंबर को निचली अदालत में पेश किया जाए।