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बस्तर की दंतेश्वरी फाइटर्स के नाम से कांपते हैं माओवादी, नक्सलियों से लोहा ले रहीं महिला कमांडो

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बस्तर

नक्सलियों के खिलाफ दक्षिण बस्तर के दंतेवाड़ा जिले में महिला कमांडोस द्वारा नक्सलियों के खिलाफ कई सफल अभियान चलाया जा चुका है। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस से एक दिन पहले दंतेवाड़ा में डीआरजी व बस्तर फ़ाईटर्स की महिला कमांडोस ने नक्सलियों के प्रभाव वाले इलाक़े में ऑपरेशन लाँच किया गया। महिला बल ने ऑपरेशन के दौरान नक्सलियों द्वारा गाँवों के बीच बनाया हुआ शहीद स्मारक को महिलाओं ने अपने हाथों से तोड़कर ध्वस्त कर दिया है।

गौरतलब है की नक्सली संगठन में महिलाओं की बड़ी संख्या है और महिला नक्सली पुरूष नक्सलियों से दोगुने तेज़ी से जवानों पर हमला करने में माहिर मानी जातीं हैं। जिसे देखते हुए डीआरजी और बस्तर फाईटर की भर्ती में महिलाओं को मौक़े देते हुए बल का हिस्सा बनाया गया है। दंतेवाड़ा में इन्हीं महिलाओं ने नक्सलियों के खिलाफ कई सफल कार्यवाही को अंजाम भी दिया जा चुका है। ऐसे में नक्सल समस्या से निपटने के लिए सरकार कई तरह के कदम उठा रही है।

दंतेवाड़ा एसपी गौरव रॉय ने बताया जिले में चलाये जा रहे माओवादी विरोधी अभियान के तहत् मिरतुर क्षेत्र के ग्राम गहनार बेच्चापाल के आसपास के क्षेत्र में माओवादियों  की उपस्थिति की आसूचना पर डीआरजी एवं बस्तर फाइटर्स  का संयुक्त बल गस्त, सर्चिग एवं एरिया डॉमिनेशन हेतु  रवाना किया गया था गस्त सर्चिंग एवं एरिया डॉमिनेशन के दौरान बेच्चापाल के जंगल में नक्सल स्मारक जो कि पूर्व में माओवादियों के द्वारा निर्माण किया गया था। जिसे डीआरजी एवं बस्तर फाइटर के महिला कमांडो द्वारा ध्वस्त कर दिया गया है।

छत्तीसगढ़ के कई इलाकों में नक्सल एक बड़ी समस्या मानी जाती रही है। ऐसे में इससे निपटने के लिए सरकार ने अपने स्तर पर कई तरह के प्रबंध किए हुए हैं। नक्सलियों से निपटने के लिए सरकारें बातचीत का तरीका भी अपनाती हैं। इस दौरान कई नक्सली सरेंडर भी कर देते हैं।  कई इनामी नक्सली अब तक सरेंडर कर चुके हैं।

पहले वो मर्दों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलती थीं। अब, वो एक-दूसरे के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ती हैं। जी हां! बस्तर की दंतेश्वरी फाइटर्स पहली पूर्ण महिला माओवादी विरोधी कमांडो इकाई है, जो एक प्रयोग से आज शक्तिशाली हथियार में बदल गई है। समूह की दो महिला कमांडो को दो माओवादियों को मारने के लिए आउट-ऑफ-टर्न प्रमोशन से सम्मानित किया गया है।

16 की इकाई के रूप में शुरुआत करने वाली दंतेश्वरी 'लड़ाके' अब मजबूत हैं। ये सभी स्वयंसेवक हैं और सभी अपने वर्दीधारी साथी को बचाने या उनकी रक्षा के लिए गोली खाने को तैयार हैं। पिछले साल उन्होंने मुठभेड़ में मारी गई एक महिला माओवादी का 'स्मृति स्तंभ' तोड़कर महिला दिवस मनाया था। दंतेवाड़ा जिले के जाबेली गांव में उग्रवादियों ने ग्रामीणों को खंभा बनाने के लिए मजबूर किया था और दंतेश्वरी कमांडो ने उसे कुचलकर मलबे में तब्दील कर दिया था।

पहले वे नक्सल विरोधी अभियानों पर सुरक्षा बलों के साथ जाते थे। अब, वे अपने दम पर मिशन चलाते हैं। जब वे युद्ध के लिए जाती हैं तो अपने कपड़ों के नीचे एके47 और पिस्तौल छिपा लेती हैं। दंतेश्वरी फाइटर्स की हेड कांस्टेबल सुनैना पटेल गर्भवती होने पर भी युद्ध अभियान पर जाती थीं। वह वीरता के लिए पदोन्नत होने वाले नामों में से एक हैं। उन्होंने और उनकी सहयोगी रेशमा कश्यप ने कटेकल्याण के जलमपाल में एक भीषण मुठभेड़ में दो माओवादियों को मार गिराया।

सुनैना बताती हैं कि, 'यह मौत की मांद में कदम रखने जैसा था, लेकिन हम अंदर गए और मिशन पूरा किया।' उसने अक्सर महसूस किया है कि मौत का झोंका हवा में गोली की तरह गुज़र रहा है। क्या यह एक मां को डराता है? इसके जवाब में सुनैना ने कहा कि, 'एक बार मैं माओवादियों के घात में फंस गई थी। यह बहुत करीबी हमला था, लेकिन मैं बाल-बाल बच गई। जब हम किसी मिशन पर होते हैं तो हम किसी और चीज के बारे में नहीं सोचते।'

उन्होंने कहा, 'अक्सर, हम लगातार 2-3 दिनों के लिए ऑपरेशन पर होते हैं। दंतेश्वरी फाइटर्स को अब महत्वपूर्ण कामरगुडा-जगरगुंडा मार्ग पर प्रोजेक्ट्स के लिए सड़क खोलने वाली पार्टियों के रूप में तैनात किया गया है। हम निर्माण टीम को सुरक्षा प्रदान करते हैं।' यह इकाई दंतेवाड़ा जिले से लेकर सुकमा और बीजापुर के जंगलों तक अपनी पहुंच बढ़ा रही है। इन कमांडो में कई पूर्व माओवादी या सलवा जुडूम पीड़ित हैं। ये माओवादी हिंसा से आहत और अक्सर लाभ से दूर रहने वाली आबादी को राहत पहुंचाते हैं। फील्ड मेडिसिन में प्रशिक्षित महिला कमांडो दूरदराज के गांवों का दौरा करती हैं, ग्रामीणों के स्वास्थ्य की जांच करती हैं और दवा देती हैं। दंतेश्वरी फाइटर्स दस्ते को किसी गांव में घूमते देखना ही आत्मविश्वास बढ़ाने वाला होता है।

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