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प्रदूषणकारी चूना पत्थर खदान होने जा रही शुरू मे. जगदंबा स्पंज प्राइवेट लिमिटेड, मे. नितिन सिंघल, में. श्रीमती तुलसी बंसल लाइमस्टोन माइंस की जनसुनवाई 30 अक्टूबर को

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रायगढ़ से सुशिल पांडेय की रिपोर्ट
गुढेली में संचालित है तीनो फार्म, क्षेत्र के लोगों में आक्रोश
रायगढ़।
जिले के सारंगढ़ ब्लॉक अंतर्गत आने वाले ग्राम गुढेली में तीन और प्रदूषणकारी लाइमस्टोन माइनिंग प्रोजेक्ट की शुरुआत होने जा रही है। पहले से ही प्रदूषण की विभीषिका झेल रहे इस गुढेली गांव में तीन और चूना पत्थर खदान के स्थापित होने से इस गांव को बर्बादी के कगार पर ले आएगा। 30 अक्टूबर को मेसर्स जगदंबा इस्पात प्राइवेट लिमिटेड, मेसर्स नितिन सिंघल, मेसर्स श्रीमती तुलसी बंसल के नाम से लाइमस्टोन माइन्स की स्थापना के लिए पर्यावरणीय जन सुनवाई रखी गई है। ग्रामीण अब इस बात से नाराज है कि पहले से ही खदानों की भरमार इस गांव में तीन और बड़े माइंस के खुल जाने से यहां उनका रहना मुश्किल हो जाएगा। पहले से ही नदी, तालाब और खेतों में भयंकर प्रदूषण और डस्ट के कारण लोगों का जीना मुहाल है । अब ऐसे में पर्यावरण विभाग किन मापदंडों के आधार पर तीन बड़े माइंस को खोलने की अनुमति प्रदान कर रहा है । ग्रामीण अब इस बड़े स्थापित होने वाले माइंस का पुरजोर विरोध करने की तैयारी कर रहे हैं।
पर्यावरण विभाग से मिली जानकारी के अनुसार गुढेली पंचायत में खुलने जा रहे हैं 3 और चूना पत्थर खदान में मेसर्स जगदंबा स्पंज प्राइवेट लिमिटेड जिसके प्रोपराइटर शिवकुमार अग्रवाल है इनका गुढेली कलस्टर में 1,10829.38 टन प्रतिवर्ष उत्खनन क्षमता माइंस स्थापित होने जा रहा है । इसी प्रकार मेसर्स नितिन सिंघल का माईनस 1,55, 06125 टन प्रति वर्ष पत्थर उत्खनन करेगा। वहीं मेसर्स श्रीमती तुलसी बंसल का माईनस प्रतिवर्ष 1,70038 टन पत्थर का उत्खनन करेगा। इन तीनों बड़े खदानों की उत्खनन क्षमता को देखकर ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि इन तीनों के शुरू होने से किस बड़े पैमाने पर यहां प्रदूषण की बाढ़ आ जाएगी। उक्त तीनों माइंस की स्थापना के लिए एक ही दिन यानी 30 अक्टूबर को पर्यावरणीय जनसुनवाई ग्राम गुढेली के सेवा सहकारी समिति मैदान में रखी गई है। कहा जा रहा है कि माइनिंग विभाग और पर्यावरण संरक्षण मंडल ने इन तीन माईनस के खुलने को लेकर कोई पर्यावरण अध्यन नहीं किया है या ये कहें कि लोगों को होने वाली परेशानियों के खुले तौर पर आँख चुरा लिया गया है। अब ग्रामीण हदप्रद हैं कि वे इतने प्रदूषित माहौल में कैसे अपना जीवन सफर तय कर पाएंगे।