असम
उत्तराखंड विधानसभा में पेश किए गए समान नागरिक संहिता बिल को सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने हिंदू कोड बिल बताया है। उन्होंने कहा कि यह कुछ नहीं बल्कि राज्य के सभी समुदायों पर हिंदू कोड थोपने की कोशिश है। उन्होंने कहा कि इसमें हिंदुओं और आदिवासियों को छूट दी गई है। उन्होंने एक्स पर लिखा, 'यह हिंदू कोड है, जो सब पर लागू होगा। पहली बात यह कि इसमें हिंदू अविभाजित परिवार की परिभाषा से छेड़छाड़ नहीं की गई है। ऐसा क्यों? यदि आप उत्तराधिकार और विरासत के लिए एक सा कानून चाहते हैं तो फिर हिंदुओं को इससे बाहर क्यों रखा गया? यदि कोई कानून बहुसंख्यकों पर ही लागू न हो तो उसे समानता वाला कहा जाता सकता है?'
एआईएमआईएम नेता ने कहा कि सिविल कोड में विवाहित रहते हुए दूसरी शादी, हलाला और लिव-इन रिलेशनशिप की बात की है। लेकिन कोई भी यह सवाल नहीं पूछ रहा है कि आखिर इससे अविभाजित हिंदू परिवारों को बाहर क्यों रखा जा रहा है। उन्होंने UCC पर सवाल उठाते हुए कहा कि आखिर जब उत्तराखंड जैसे राज्य को बाढ़ के चलते 1000 करोड़ का नुकसान झेलना पड़ा है तो इसकी क्या जरूरत है। उन्होंने कहा कि एक और सवाल यह है कि आखिर आदिवासियों को इससे बाहर क्यों रखा गया है। यदि एक समुदाय को बाहर ही रखना है तो फिर कैसी समानता है।
उन्होंने कहा कि एक और सवाल मूलभूत अधिकारों का भी है। मेरे पास अधिकार है कि मैं अपने धर्म और संस्कृति का पालन कर सकूं। यह बिल मुझे मजबूर करता है कि मैं दूसरे के धर्म और संस्कृति का पालन करूं। हमारे मजहब में उत्तराधिकार और शादी के नियम धार्मिक नियमों का हिस्सा हैं। ऐसे में इसे लेकर कानून बनाना संविधान के ही आर्टिकल 25 और आर्टिकल 29 का उल्लंघन है। हमें इस बिल के जरिए दूसरी व्यवस्था में जाने को मजबूर किया जा रहा है।
ओवैसी ने कहा कि एक और सवाल है- मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि UCC सिर्फ संसद से आ सकता है। इसके बाद भी राज्य सरकार ने ऐसा क्यों किया। यह बिल हिंदू मैरिज ऐक्ट, शरिया ऐक्ट जैसे कई कानूनों के विपरीत हैं। ये सभी कानून केंद्र सरकार के हैं। उन्होंने इस दौरान भीमराव आंबेडकर का भी जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने नहीं कहा था कि यूसीसी की कोई जरूरत है।