नई दिल्ली
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कैबिनेट मंत्रियों को आगामी लोकसभा चुनाव से पहले चेतावनी दी है। पीएम मोदी का कहना है कि मंत्री किसी राजनीतिक विश्लेषकों के बहकावे में न आएं और आगामी 2024 लोकसभा चुनाव के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करें। मंत्रियों को मोदी की नसीहत ऐसे समय में आई है जब अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा समारोह ने हिंदी पट्टी सहित देशभर में भाजपा के लिए अनुकूल माहौल पैदा किया है।
पीएम मोदी ने अपने मंत्रियों से कहा है कि जब तक काम पूरा नहीं हो जाता तब तक उसे पूरा हुआ नही माना जा सकता है। पार्टी को अभी भी 2004 के चुनावों का डर सता रहा है, जहां भाजपा नेतृत्व आखिरी पड़ाव पर लापरवाही बरत रहा था। सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस लोकसभा में भाजपा से केवल सात सीटें आगे रहकर सबसे बड़ी पार्टी बन गई और अगले 10 वर्षों तक सत्ता में बनी रही। कांग्रेस ने यूपीए गठबंधन बनाया और मनमोहन सिंह लगातार दो बार प्रधानमंत्री बने।
मौजूदा माहौल को देखते हुए भाजपा नेताओं ने "अबकी बार 400 पार" पर विश्वास करना शुरू कर दिया है। लेकिन पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का सीटों की संख्या को लेकर कोई लापरवाही नहीं बरतना चाहते हैं। यही वजह है कि जाति-प्रभुत्व वाले बिहार में जेडी(यू) के साथ गठबंधन किया गया और ओडिशा में बीजेडी के साथ सकारात्मक माहौल बनाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी है। बढ़ती अर्थव्यवस्था और वैश्विक दबदबे के चलते मोदी सरकार की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई है। हालांकि सरकार द्वारा किए गए चौतरफा काम के बावजूद, भाजपा को यह सुनिश्चित करने के लिए अपने "पन्ना प्रमुखों" पर निर्भर रहना होगा कि उसके समर्थक मतदान केंद्र तक पहुंचें और मतदान करें। नाकि यह सोचकर समय बर्बाद करें कि पीएम मोदी तीसरी बार सत्ता में आ ही रहे हैं।
भले ही इंडिया गठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर खींचतान मची है लेकिन फिर भी सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय सहित इसके समर्थक बड़ी संख्या में भाजपा को सत्ता से बाहर करने की एकमात्र इच्छा के साथ सामने आएंगे। विपक्ष का उद्देश्य संख्या बल के आधार पर सरकार गठन करना है और भाजपा को सत्ता से बाहर करना है। भाजपा 'रामलला के आशीर्वाद' से हिंदी पट्टी में फ्रंट-फुट पर खेल रही है। लेकिन इसके बावजूद पार्टी और आरएसएस नरेंद्र मोदी को तीसरी बार प्रधानमंत्री बनाने के लिए अपने समर्थकों को उत्साहित करने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती। हालांकि, पार्टी को कर्नाटक में अपनी संख्या और अधिक बनाए रखने और तमिलनाडु में डीएमके व केरल में वामपंथी गढ़ को तोड़ने कड़ी मशक्कत करनी होगी। यही बात पश्चिम बंगाल के लिए भी सच है क्योंकि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भाजपा के खिलाफ पूरी ताकत से लड़ेंगी और पिछली बार से लोकसभा सीटों की संख्या कम करने की कोशिश करेंगी।