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सफलता की कहानी : 18 वर्षों से स्थानीय भाषा में शिक्षा दे रहे सिकन्दर खां उर्फ दादा जोकाल

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रायपुर। सिकन्दर खां उर्फ दादा जोकाल विगत 18 वर्षों से आदिवासी बच्चों की शिक्षा के लिए कार्य कर रहे हैं। उन्होंने गोंडी, हल्बी, दोरली, तेलगू आदि 7 भाषा-बोलियां सुदूर ग्रामीण अंचलों से ही सीखी है। दक्षिण बस्तर दंतेवाड़ा जिले में पहले जो शिक्षक पदस्थ होते थे, उन्हें क्षेत्रीय भाषा-बोली नहीं आती थी। स्थानीय बच्चों को पढ़ाने, समुदाय से वर्तालाप करने में दिक्कत आती थी। इसलिए उन्होंने हिन्दी भाषी शिक्षकों के लिए गुरुमित्र नामक छोटी सी पुस्तिका तैयार कर हिन्दी, अंग्रेजी, हल्बी, गोंडी में उपलब्ध कराई है।
शासन के मंशानुरूप गोंडी, हल्बी में मेरे मार्गदर्शन में शिक्षक साथियों के सहयोग से एससीआरटी रायपुर के मार्गदर्शन में पाठ्यपुस्तकें तैयार करवाकर जिले के समस्त शालाओं में प्रदाय की गई है। जिले में कोरोना काल में भी कोरोना गाईड लाईन का पालन करते हुए मोहल्ला क्लास, पढ़ई तुंहर दुआर आदि कार्यक्रम समस्त क्षेत्रों में इन बहुभाषी पाठ्य सामग्री का भरपूर उपयोग हमारे शिक्षक साथिओं के द्वारा किया गया है। स्थानीय बच्चें, एवं समुदाय इन पाठ्य सामग्री को हर्षित होकर अध्ययन करते है। जिसके अच्छे परिणाम हमारे दन्तेवाड़ा जिले को प्राप्त हो रहे हैं।
जिले में स्थानीय बच्चों के लिए गोंडी से हिन्दी एवं हल्बी से हिन्दी सीखने के लिए वर्णमाला चार्ट एवं गोंडी से अंग्रेजी सीखने के लिए अल्फाबेट चार्ट बनाकर स्कूलों में उपलब्ध कराया है। स्थानीय भाषा में गीत कहानी आदि की किताबें तैयार कर स्कूलों में प्रदाय किये गए हैं। बच्चों और समुदाय को जागरूक करने हेतु गोंडी, हल्बी बोलियों में शिक्षा एवं वृक्षारोपण, पर्यावरण संरक्षण के लिए आडियो-वीडियो गीत बनाकर मोबाईल के माध्यम से प्रदर्शित कर जन-जन को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
दादा जोकाल का बचपन और शिक्षा-दीक्षा आदिवासी सहपाठी भाई-बहनों के बीच हुई है। वे समग्र शिक्षा के जिला परियोजना कार्यालय दंतेवाड़ा में सहायक परियोजना समन्वयक के पद पर पदस्थ हैं।