हरियाणा
प्राइवेट नौकरी में स्थानीय युवाओं को 75% आरक्षण देने वाले कानून को पंजाब–हरियाणा हाई कोर्ट के रद्द करने वाले फैसले को चुनौती दी गई है। इसे लेकर हरियाणा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। एससी इस मामले पर सुनवाई करने के लिए तैयार हो गया है। हरियाणा सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पैरवी कर रहे हैं। उन्होंने सोमवार को कहा कि पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट का फैसला सही नहीं है। उन्होने कहा कि आरक्षण को रद्द करने के आदेश में उचित कारण नहीं बताए गए। साथ ही इस मामले पर जल्द सुनवाई होने चाहिए और इसे निपटाने की आखिरी तारीख भी बताई जानी चाहिए।
जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की बेंच ने आश्वासन दिया कि वह मामले को जल्द ही अंतिम निपटान के लिए लिस्टेड करेगी। बता दें कि हरियाणा के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय ने मार्च 2021 में हरियाणा राज्य स्थानीय उम्मीदवारों के रोजगार विधेयक को अपनी मंजूरी दी थी। राज्य के मूल निवासी अभ्यर्थियों के लिए निजी क्षेत्र की नौकरियों में 75 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करना 2019 विधानसभा चुनावों के समय जननायक जनता पार्टी (जजपा) का प्रमुख चुनावी वादा था। चुनावों के बाद जजपा ने भाजपा को समर्थन दिया और सरकार बनाई, क्योंकि भाजपा अपने दम पर बहुमत हासिल करने से चूक गई।
हाई कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा था?
पंजाब–हरियाणा हाई कोर्ट के फैसले को लेकर वकील अक्षय भान ने बताया था कि पीठ ने पूरे अधिनियम को रद्द कर दिया। भान ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने यह दलील दी कि 'हरियाणा राज्य स्थानीय उम्मीदवारों का रोजगार अधिनियम, 2020' संविधान के अनुच्छेदों 14 और 19 का उल्लंघन करता है। अदालत के आदेश में कहा गया, 'हमारी राय है कि रिट याचिकाएं मंजूर की जानी चाहिए। हरियाणा राज्य स्थानीय उम्मीदवारों का रोजगार अधिनियम, 2020 को असंवैधानिक और भारत के संविधान के भाग तीन का उल्लंघन करने वाला ठहराया जाता है। इसे अधिकारातीत माना जाता है और यह लागू होने की तारीख से निष्प्रभावी होगा।'