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सुरक्षा कैंपों के खोले जाने मजबूर नक्सलियों ने तीन साल बाद लड़ाकू बटालियन को मैदान में उतारा

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जगदलपुर
छत्तीसगढ़ के बस्तर में लगातार सुरक्षा कैंपों के खोले जाने के बाद कमजोर पड़ चुके नक्सली अब अपनी रणनीति बदलने के लिए विवश हैं। सुरक्षा बल के जवान उनके गढ़ में प्रवेश कर चुके हैं, जिससे नक्सल संगठन को मजबूर होकर तीन वर्ष बाद अपनी लड़ाकू बटालियन को मैदान में उतारना पड़ा है। 30 जनवरी को टेकुलगुड़ेम हमले में इन्होंने इसी बटालियन का उपयोग किया था, जबकि बीते कुछ वर्षों से नक्सली अपनी उपस्थिति दिखाने स्माल एक्शन टीम के सहारे हत्या, आइईडी विस्फोट जैसे कृत्य कर रहे थे।

अंतिम लड़ाई लड़ रहे नक्सल

जानकारों का कहना है कि नक्सली अब अपनी अंतिम लड़ाई लड़ रहे हैं। टेकुलगुड़ेम सुरक्षा कैंप पर नक्सलियों ने एके-47, इंसास राइफल व बैरल ग्रेनेड लांचर (बीजीएल) से हमला किया था। पखवाड़े भर पहले बीजापुर जिले की सीमा पर स्थित धर्मावरम कैंप पर भी 300 से अधिक नक्सलियों ने बीजीएल और अत्याधुनिक हथियार से हमला किया था। धर्मावरम हमले के बाद नक्सलियों ने ही पर्चा जारी कर बता दिया था कि उन्हें नुकसान उठाना पड़ा है और तीन नक्सली मारे गए हैं।

कमजोर नक्सल संगठन का आखिरी दांव

नक्सल मामलों के विशेषज्ञ शुभ्रांशु चौधरी ने बताया कि तीन अप्रैल 2021 टेकुलगुड़ेम हमले के बाद से नक्सलियों ने सुरक्षा बल के विरुद्ध लड़ाकू बटालियन का प्रयोग नहीं किया था। इस बीच सुरक्षा बल ने भी नक्सल प्रभाव वाले क्षेत्र में सुरक्षा कैंपों की श्रृंखला खड़ी कर दी, जिससे नक्सली कमजोर पड़ते गए। अब उनके गढ़ पर प्रहार किया जा रहा है, जिससे नक्सलियों को रणनीति बदलनी पड़ी है। आधार बचाने अपने लड़ाकू बटालियन को मैदान में उतारना उनका अंतिम दाव है।

बस्तर के आईजी सुंदरराज पी ने कहा कि सुरक्षा बल की ओर से नक्सलियों के सबसे ताकतवर गढ़ में प्रहार के बाद नक्सली अपना गढ़ बचाने बौखलाहट में हमले कर रहे हैं। अगले कुछ माह में और भी तेजी से अभियान चलाया जाएगा। नए कैंपों को सामुदायिक केंद्र की तरह विकसित कर सुरक्षा के साथ ग्रामीणों को राशन, बिजली, पानी, सड़क व शासकीय योजनाओं से लाभान्वित करने का काम करेंगे।

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