बालाघाट.
किसानों को मौसम का सटीक पूर्वानुमान, फसल संबंधी सावधानियां बताने के लिए वर्ष 2019 से संचालित जिला कृषि मौसम इकाइयां अब बंद होने जा रही हैं। देशभर के 199 कृषि विज्ञान केंद्रों में संचालित इन इकाइयों को 31 मार्च के बाद बंद कर दिया जाएगा। दो दिन पहले भारत मौसम विज्ञान विभाग ने सभी कृषि विज्ञान केंद्रों को पत्र जारी कर इसकी सूचना दी है।
आर्थिक तंगी से जूझ रहा विभाग
जिला कृषि मौसम इकाइयों की स्थापना भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (नई दिल्ली) और भारत मौसम विज्ञान विभाग के बीच वर्ष 2019 में हुए करार (एमओयू) के बाद की गई थी। हालांकि, फरवरी 2022 में भारत मौसम विज्ञान विभाग ने इस योजना को 2026 तक बढ़ाने की घोषणा की थी, लेकिन समय से पहले ही वित्त विभाग की अनुशंसा पर इन इकाइयों को बंद करने का फैसला लिया गया है। इस फैसले के पीछे आर्थिक तंगी बड़ी वजह मानी जा रही है।
जानकारी के अनुसार, देश के 199 कृषि विज्ञान केंद्रों में संचालित प्रत्येक इकाई में दो कर्मचारी (एक कृषि विज्ञानी और एक आब्जर्वर) संविदा पर नियुक्त किए गए थे। देशभर में करीब 400 कर्मचारियों को वेतन के लिए सात से आठ महीनों का लंबा इंतजार करना पड़ता था। अब इनके सामने नौकरी का संकट खड़ा हो गया है।
मप्र के 13 जिलों में हैं ये इकाइयां
बता दें कि मध्य प्रदेश के 13 जिलों में जिला कृषि मौसम इकाई संचालित हो रही हैं, जो मार्च के बाद हमेशा के लिए बंद हो जाएंगी। इनमें बालाघाट, कटनी, रीवा, शहडोल, छतरपुर, दमोह, सिंगरौली, गुना, खंडवा, शिवपुरी, राजगढ़, अशोकनगर और बड़वानी शामिल हैं। मप्र की ये इकाइयां जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर और राजमाता कृषि विश्वविद्यालय, ग्वालियर द्वारा संचालित हो रही थीं। कर्मचारियों के वेतन संबंधी कार्य इन विश्वविद्यालयों द्वारा किए जा रहे थे।
जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर के अंतर्गत बालाघाट, कटनी, रीवा, शहडोल, छतरपुर, दमोह, सिंगरौली की इकाइयां, तो ग्वालियर के विश्वविद्यालय के अधीन गुना, खंडवा, शिवपुरी, राजगढ़, अशोकनगर और बड़वानी की इकाइयां शामिल हैं।