नई दिल्ली। भारतीय वैज्ञानिक, चीन, रूस और ब्राजील के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर एसएआरएस सीओवी-2 का गुणसूत्रीय अनुक्रमण की (जीनोमिक सीक्वेंसिंग) करेंगे और कोविड-19 महामारी के महामारी विज्ञान और उसके गणितीय मॉडलिंग पर अध्ययन करेंगे। इससे इस वायरस के आनुवंशिक उत्परिवर्तन और पुनर्संयोजन के साथ-साथ इसके वितरण का पता लगाने में मदद मिलेगी और इस वायरस के भविष्य में प्रसार के बारे में अनुमान भी लगाया जा सकेगा। आनुवंशिक उत्परिवर्तन (जेनेटिक म्यूटेशन) और वायरस के पुनर्संयोजन (रीकम्बीनेशन) की पहचान के लिए एक संपूर्ण-गुण सूत्रीय (जीनोम) अनुक्रमण की आवश्यकता होती है जबकि महामारी विज्ञान के अध्ययन इसके वितरण का आकलन करने में मदद कर सकते हैं। भविष्य में इसके प्रसार का आकलन करने के लिए गणितीय मॉडलिंग की आवश्यकता पडती है। इसको ध्यान में रखते हुए विभिन्न पृष्ठभूमियों के वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की विशेषज्ञता को एक साथ समाहित करते हुए एक शोध योजना बनाई गई है। पर्यावरण केंद्र, विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान, जवाहरलाल नेहरू प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय हैदराबाद, की प्रोफेसर डॉ. सी. शशिकला, इंस्टीट्यूट ऑफ माइक्रोबायोलॉजी, चीनी विज्ञान अकादमी, बीजिंग, चीन, प्रोफेसरेट सीनियर इंजीनियर युहुआ शिन, मौलिक और परिवर्तनीय औषधि के संघीय अनुसंधान केंद्र (फेडरल रिसर्च सेंटर ऑफ फंडामेंटल एंड ट्रांसलेशनल मेडिसिन), टिमकोवा, रूस के वरिष्ठ शोध कर्ता इवान सोबोलेव, श्वसन वायरस और खसरा प्रयोगशाला, ब्राजील के ओस्वाल्डो क्रूज़ संस्थान (रेस्पिरेटरी वायरस एंड मीजल्स लेबोरेटरी, ओसवाल्डो क्रूज़ इंस्टीट्यूट), फियोक्रूज़, रियो डी जनेरियो, ब्राजील की डॉ मारिल्डा मेंडोंका सिकीरा मिलकर इस ब्रिक्स-बहुपक्षीय अनुसंधान और विकास परियोजना के विभिन्न पक्षों पर अध्ययन करेंगे। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा समर्थित इस शोध के तहत, भारत और ब्राजील के वैज्ञानिक अपशिष्ट जल आधारित महामारी विज्ञान (डब्ल्यूबीई) निगरानी के लिए मेटाजेनोम विश्लेषण के माध्यम से पर्यावरणीय नमूनों में एसएआरएस सीओवी-2 वायरस के वितरण का आकलन करेंगे। चीनी और रूसी वैज्ञानिक श्वसन रोगों के लक्षणों वाले रोगियों से ली गई जैविक सामग्री (नासोफेरींजल स्वैब) में एसएआरएस सीओवी-2 की वास्तविक (रीयल-टाइम ) पीसीआर पहचान करेंगे और जीनोमिक परिवर्तनशीलता, तुलनात्मक जीनोमिक्स और फ़ाइलोजेनेटिक विश्लेषण की जांच करेंगे।